कर्नाटक चुनाव की सरगर्मियों के बीच भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने रायबरेली में रैली और उसके बाद राजधानी लखनऊ में पार्टी मुख्यालय पर चुनिंदा नेताओं और कुछ अधिकारियों से बातचीत करके बड़े सियासी संदेश के संकेत दे दिए हैं।
कुछ ही महीने के अंतर में पहले अमेठी और अब रायबरेली में सभा कर और कांग्रेस पर हमला कर शाह ने बता दिया है कि लोकसभा चुनाव में परचम फहराने के लिए भाजपा ने सियासत का अंदाज बदलने का फैसला कर लिया है। पार्टी का लक्ष्य सिर्फ एक है-हर हाल में विजय प्राप्त करना। इसके लिए भाजपा की तैयारी विपक्ष के बड़े नेताओं पर कड़े तेवर में हमले और पुख्ता घेराबंदी करने की है।
दरअसल, जिस समय भाजपा के सामने कर्नाटक विजय के साथ दक्षिण में भाजपा के विजय रथ के लगातार आगे बढ़ने का संदेश देने की चुनौती हो, उस समय एक पखवाड़े में शाह का दो बार लखनऊ आना बहुत कुछ कह देता है।
साफ है कि शाह यूपी की सियासत को गंभीरता से ले रहे हैं। वह हवा के रुख के भाजपा के पक्ष में बहने का संदेश दे देना चाहते हैं। यही वजह रही कि दस दिन पहले लखनऊ आकर मुख्यमंत्री आवास पर 10 घंटे से अधिक लंबी मैराथन बैठक करने वाले शाह ने दिल्ली जाने के तुरंत बाद ऑपरेशन विपक्ष की शुरुआत करने का फैसला ले लिया।
कोशिश इस तरह
शाह ने कांग्रेसी एमएलसी दिनेश प्रताप सिंह को भाजपाई बनाने की रणनीति को अमली जामा पहनाने के लिए सोनिया गांधी के इलाके रायबरेली को यूं ही नहीं चुना। शाह संदेश देना चाहते हैं कि भाजपा की हवा का रुख कांग्रेस के सर्वशक्तिमान चेहरों के घर के लोगों को भी भगवा झंडे तले सुरक्षित भविष्य दिखा रहा है।
वह भी तब जब प्रदेश में सपा और बसपा गठबंधन की तरफ बढ़ चुके हैं और कांग्रेस ने भी इसमें शामिल होने का मन बना लिया है। शाह इस मकसद में कामयाब भी रहे। उन्होंने रायबरेली की रैली में जिस तरह कर्नाटक में जीत का दावा किया, उसमें शाह की लोगों को यह बताने की बेकरारी भी दिखी कि फिलहाल भाजपा का कोई विकल्प नहीं है।
कर्नाटक में लाभ लेने की कोशिश
इस बहाने शाह ने कर्नाटक सहित दक्षिण के राज्यों में भाजपा के लिए यह कहने का आधार भी तलाश लिया कि कांग्रेस अपने घर में ही मजबूत नहीं है तो उसकी सरकार किसी राज्य को कैसे मजबूत करेगी। यही वजह रही है कि शाह ने रायबरेली में हिंदुत्व के साथ विकास का एजेंडा भी सेट करने की कोशिश की ताकि लोगों को संदेश मिल जाए कि कांग्रेस के ताकतवर चेहरे जब अपने घर का विकास नहीं कर पाए तो किसी राज्य या देश का विकास क्या करेंगे।
तेवर वाली राजनीति
अभी तक देश की राजनीति में आम तौर पर सभी दल दूसरे दलों के प्रमुख चेहरों को लेकर चुनाव में भी सदाशयता की सियासत की राह पर चलते थे। पर, 2014 में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में आक्रामक हमले करने वाली भाजपा ने शाह के इस दौरे के साथ बता दिया है कि इस बार पार्टी सिर्फ हमले ही नहीं करेगी, बल्कि कड़े तेवरों और पुख्ता तैयारी के साथ बड़े कद वाले विपक्षियों को भी घेरेगी।
सियासी ऑपरेशन के संकेत
शाह के रायबरेली के दौरे से साफ हो गया है कि यूपी में शाह के नेतृत्व में विपक्ष का बड़ा ऑपरेशन हो सकता है। विपक्ष के कई प्रमुख और इलाकाई मजबूत चेहरे भाजपा का झंडा थाम सकते हैं। इनमें विरोधी दलों के कुछ प्रमुख विधायक भी शामिल हैं। यह भी साफ हो गया है कि यूपी में भाजपा की स्थिति को लेकर शाह बहुत निश्चिंत नहीं हैं। इसलिए यूपी में उनकी सक्रियता और बढ़ेगी।
मिशन 2019 के लिए भाजपा हिंदुत्व और विकास को एक साथ लेकर लोगों के बीच जाएगी। प्रदेश की भाजपा सरकार और संगठन में भी बड़े परिवर्तन देखने को मिलेंगे।