अमेरिकी थिंक का दावा, कम सोने से प्रभावित होती है देश की जीडीपी
कहते हैं कि स्वस्थ्य शरीर के लिए भरपूर नींद बहुत जरुरी होती है। पुरानी कहावत है कि अगर कोई व्यक्ति भरपूर नींद लेता है तो समझिए की उसके साथ सब कुछ ठीक नहीं है। दुनिया के कई देश इन दिनों अपने कर्मचारियों सोने की समस्या से परेशान हैं। कर्मचारियों के कम सोने से उनके काम पर असर पड़ रहा है। लिहाजा जहां एक ओर कुछ कंपनियां पूरी नींद सोने वालों को इन्सेंटिव दे रही हैं तो कुछ ऑफिस में ही सोने की व्यवस्था कर रही हैं।
पांच देशों में कम सोने को लेकर एक सर्वे हुआ है। यह सर्वे अमेरिकी थिंक टैंक रैंड कॉर्पोरेशन ने किया है। सर्वे की मानें तो कम सोने का सीधा संबंध आर्थिक नुकसान से है क्योंकि कर्मचारियों के कम सोने से देश की जीडीपी में गिरावट आती है।
सर्वे में कम अमेरिका में प्रति वर्ष का 2.28% यानी 29 लाख करोड़ रुपए का नुकसान होता है। सर्वे में कहा गया है कि अगर अमेरिका के लोग रोजाना 6-7 घंटे सोने लगें तो देश की इकोनॉमी को 15.8 लाख करोड़ होगा। इसी तरह जापान में लोगों के कम सोने से जीडीपी का करीब 3 % का नुकसान होता है। रोजाना 6-7 घंटे सोने से जापान की इकोनॉमी को 5.3 लाख करोड़ रुपए का फायदा होगा।
सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन ने अमेरिका में कम सोने को आम स्वास्थ्य समस्या बताया है। रिपोर्ट की मानें तो 6 घंटे से कम सोने वालों की मौत का खतरा 7-9 घंटे सोने वालों की तुलना में 13% अधिक होता है।
जापान में बने स्पीलिंग रूम
तेजी से बढ़ते जापान में ओवर टाइम की समस्या आम बात है। कम नींद की समस्या से पार पाने के लिए टोक्यो में नेक्स्टबीट नाम की आईटी कंपनी ने महिलाओं और पुरुषों के लिए अलग स्लीपिंग रूम बनवाए हैं। यह स्लीपिंग रूम साउंड प्रूफ है और इनमें मोबाइल फोन, टैबलेट या लैपटॉप का उपयोग प्रतिबंधित है। जापान में लोग अंतरराष्ट्रीय औसत से 45 मिनट कम सोते हैं। यहां के लोग औसतन 6 घंटे 35 मिनट सोते हैं। महिलाएं 6 घंटे 40 मिनट जबकि पुरुष रोजाना औसतन 6 घंटे 30 मिन सोते हैं।