अमेरिकी प्रतिबंध के साए में हो गई S-400 डील, क्या रुपया-रूबल से निकलेगी काट?
अमेरिकी प्रतिबंध के साए में भारत और रूस एस-400 डिफेंस मिसाइल सिस्टम डील पर सहमति बन चुकी है. रूस के राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन अपने भारते दौरे के दूसरे दिन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के साथ इस सहमति पर हस्ताक्षर होते देखेंगे. सूत्रों का दावा है कि अमेरिकी से आर्थिक प्रतिबंध की संभावना को देखते हुए भारत और रूस इस डील को रुपया और रूबल में करने की संभावना तलाश रहे हैं.
गौरतलब है कि सितंबर में रूस ने चीन के साथ एस-400 मिसाइल की डील की थी जिसके तुरंत बाद अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने चीन पर प्रतिबंध लगाने का फैसला किया था. इस प्रतिबंध के चलते चीन के लिए अमेरिकी डॉलर का इस्तेमाल करते हुए मिसाइल खरीदना नामुमकिन हो गया. हालांकि बीते कुछ वर्षों के दौरान चीन ने अपनी मुद्रा युआन को डॉलर के मुकाबले बतौर अंतरराष्ट्रीय मुद्रा खड़ा करने की कोशिश की थी. इस पहल के बाद अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चीन लगातार कोशिश कर रहा है कि वह युआन को डॉलर समेत यूरो, येन और पाउन्ड की तर्ज पर अंतरराष्ट्रीय मुद्रा बना ले. वहीं अंतरराष्ट्रीय व्यापार में चीन के पास अमेरिकी डॉलर का सबसे बड़ा रिजर्व मौजूद है.
पांच बिलियन डॉलर की इस मेगा डिफेंस डील पर अमेरिका काटसा प्रतिबंध (काउंटरिंग अमेरिकन एडवर्सरीज थ्रू सैंकशन्स- CAATSA) लगाया जा सकता है. जब पिछले महीने अमेरिका ने चीन पर एस-400 मिसाइल सिस्टम खरीदने यह बैन लगाया था भारत और रूस ने इस डील के लिए वैकल्पिक व्यवस्था कायम करना शुरू कर दिया था. गौरतलब है कि इससे पहले भी रूस से लीज पर ली गई INS Chakra की रिपेयर डील पर अमेरिकी प्रतिबंध के चलते भारत और रूस के बीच लगभग 2 बिलियन डॉलर की डील पर ग्रहण लगा था. आर्थिक जानकारों का दावा है कि ऐसी स्थिति से बाहर आने के लिए भारत को रुपया-रूबल एक्सचेंज को अंतरराष्ट्रीय मुद्रा के तौर पर इस्तेमाल करते हुए डील की कवायद करनी चाहिए. गौरतलब है कि अभी तक भारत ने रूस से किए सभी रक्षा सौदों को डॉलर के माध्यम से किया है.
क्यों बना अमेरिका का काटसा कानून?
राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अगस्त में रूस की इस आधुनिक डिफेंस मिसाइल सिस्टम को ध्यान में रखते हुए काटसा कानून को मंजूरी दी थी. अमेरिका ने रूस को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अमेरिका के हितों के खिलाफ काम करने से रोकने के लिए यह कानून तैयार किया है. गौरतलब है कि अमेरिका के इस कानून को रूस की गतिविधियों के मद्देनजर बनाया गया है. इनमें 2014 में रूस की ओर से यूक्रेन पर हमला कर क्रीमिया पर कब्जा करने, सीरिया गृह युद्ध में शरीक होने और 2016 के अमेरिकी राष्ट्रपति के चुनाव में दखल देना शामिल है.