अमेरिकी बच्चे पढ़ रहे प्रो. भरतराज सिंह की किताब का अध्याय
राजधानी लखनऊ के वैज्ञानिक ने वर्ष 2014 में की थी भयंकर तूफान से तबाही की आशंका
-डी.एन. वर्मा
लखनऊ : वरिष्ठ वैज्ञानिक व पर्यावरणविद प्रो. भरत राज सिंह ने पर्यावरण के प्रभाव पर अपनी ग्लोबल वार्मिंग की किताब के माध्यम से इतनी सटीक जानकारी उपलब्ध कराई है कि उनकी पुस्तक का एक अध्याय “द मेल्टिग आफ ग्लैसियर कैन नाट बी रिवर्स्ड विद ग्लोबल वार्मिग’ स्कूली बच्चों के पाठ्यक्रम मे शामिल कर लिया है। जर्मनी, फ्रांस, कनाडा में भी यह पुस्तक अलग से पढ़ाई जा रही है। इस पुस्तक में विनाशकारी तूफानों का भी जिक्र है। प्रो. सिंह की लिखी पुस्तक ‘ग्लोबल वार्मिंग- काजेज, इम्पैक्ट एंड रेमेडीज’ जो न्यूयार्क शहर में 21 मार्च, 2014 मे विमोचित हुई तथा लिम्का बुक आफ रिकार्ड-2015 में पहले भारतीय लेखक का अध्याय अमेरिका मे पढ़ाये जाने हेतु दर्ज किया गया। अमेरिका में सैंडी तूफान ने जमकर कहर बरपाया और न्यूयार्क शहर का एक तिहाई समुद्र में समा गया, का भी पूर्व ही आशंका उन्होंने अपनी 2014 में प्रकाशित पुस्तक में व्यक्त कर दी थी।
स्कूल आफ मैंनेजमेंट साइंसेज (एसएमएस) लखनऊ के महानिदेशक प्रो. सिह का दावा- ग्लोबल वार्मिंग से उत्तरी ध्रुव पर जमी बर्फ तेजी से पिघल रही है व ग्लेशियर सिकुड़ रहे हैं। पिघलने की इस गति से वर्ष 2040 तक उत्तरी ध्रुव पर नाम मात्र की बर्फ बचेगी। अप्रैल 2013 के आकड़ों के अनुसार आर्कटिक क्षेत्र मे बर्फीली चट्टानें दस लाख टन प्रति वर्ष की दर से पिघल रही हैं। सदी के अंत तक समुद्र तल में लगभग 13 फुट तक बढोत्तरी की सम्भावाना है।
तटीय शहरों में भीषण बारिश व नये ग्लेशियर का निर्माण- प्रो. सिंह की लिखी दूसरी पुस्तक ‘ग्लोबल वार्मिंग-2015 में बताया गया है कि आने वाले समय में यूएसए, इंग्लेंड आदि देशों के कुछ प्रमुख तटीय शहर समुद्र में समा सकते है। इसके साथ ही उत्तरी पश्चिमी सीमाओं पर बहुतायत में बर्फवारी होगी। नये ग्लेशियर का निर्माण होगा। विशाल हिमखंड टूटकर अटलांटिक में बहते हुये प्रमुख तटीय शहरो से टकरायेंगे। भारत के सभी प्रमुख तटीय शहरों में भीषण वारिश व हिमालय से सटे प्रदेशों में भारी बर्फवारी व भीषण ठंड का प्रकोप बढ़ जायेगा जबकि उत्तर प्रदेश व बिहार मे सूखे पड़ने की सम्भावना से नकारा नही जा सकता है।
पृथ्वी की गति धीमी होने व भूकम्प की संख्या मे बढोत्तरी- प्रो. सिंह ने यह भी अपने शोध में बताया है कि 1100-1350 ट्रिलियन टन बर्फ उत्तरी-दक्षिणी ध्रुवों से पिघलने से समुद्र की सतह का स्तर जहा बढ़ा देगी, वही पृथ्वी की गति धीमी होने व भूकम्प की संख्या में बढोत्तरी 20-30 होने से जनजीवन की क्षति व प्रगति में अस्त-व्यस्तता होने की सम्भावना है। उनके इस शोध का जर्मनी, कनाडा व अमेरिका आदि देशों के शोधकर्ता इसकी विवेचना कर इसे आगे बढ़ा रहे हैं।