अरे मन धीरज क्यों न धरें?
(1) उठ जाग रे मुसाफिर! अब हो चला सबेरा!:-
संत सूरदास जन्म से अन्धे थे। संत सूरदास से 400 वर्ष पूर्व उनके एक शिष्य ने पूछा कि गुरूजी, संसार में अपराध बढ़ते जा रहे हैं? संसार का क्या होगा? संत सूरदास ने कहा प्रिय शिष्य चिंता न करो घोर रात के बाद सुबह आती है तथा सुबह के बाद फिर रात आती है। सूरज के उगने तथा डूबने के साथ ही रोजाना धीरे-धीरे रात-दिन के आने-जाने का सिलसिला करोड़ों वर्षो से चला आ रहा है। इसी प्रकार जीवन में सुख-दुःख के आने-जाने का सिलसिला चलता रहता है। एक प्रेरणादायी गीत की पंक्तियाँ इस प्रकार हैं – चल जाग मुसाफिर भोर भयइ, सब जागत है तू सोवत है। जो सोवत है सो खोवत है, जो जागत है सो पावत है। यह प्रीत करन की रीत नहीं, प्रभु जागत है तू सोवत है।।
(2) संत सूरदास महानतम युग दृष्टा थे:-
एक प्रचलित मान्यता के अनुसार कालचक्र के चार युग (1) सतयुग (2) त्रेता (3) द्वापर और (4) कलियुग होते हैं। कलियुग के बाद सीधे सतयुग आता है। युगों के परिवर्तन की कोई एक निश्चित तारीख नहीं होती है। ‘सूरदास’ जी मानवजाति को सूरपदावली देने वाले संसार के महानतम युग दृष्टा थे। घोर कलियुग संध्या काल में धीरे-धीरे शान्त होता है तथा प्रतीक्ष्य काल में सतयुग की बेल धीरे-धीरे बढ़ती है। दो युगों के बीच का समय संक्रमण काल होता है। प्रत्येक 12,000 वर्ष में एक चतुर्युगी पूरी होकर पुनः नई चतुर्युगी प्रारम्भ हो जाती है और सृष्टि का यह क्रम (गति चक्र) सदैव चलता रहता है।
(3) सतयुग के आगमन का स्पष्ट संकेत सूरपदावली में निम्न पद में मिलता है:-
अरे मन धीरज क्यों न धरै। मेघनाद रावण कौ बेटा सो पुनि जन्म धरै।। पूरब पश्चिम उत्तर दक्षिण चहंुदिशि राज करे।। अकाल मृत्यु जगमाहीं व्यापै प्रजा बहुत मरे।। दुष्ट दुष्ट को ऐसे काटे जैसे काठ जरै। एक सह नौ सौ से ऊपर ऐसौ योग पड़े सह बरस तक सतयुग बीतै धर्म की बेल बढ़े। स्वर्ण फूल पृथ्वी पर फूले पुनि जग दशा फिरे। ‘सूरदास’ यह ‘हरि’ की लीला टारे नाहिं टरे।। अरे मन धीरज क्यों न धरै……….। सूरदास जी के अनुसार एक सह नौ सौ के ऊपर ऐसा योग पड़ा है अर्थात संवत 1901 से युग परिवर्तन हो चुका है। एक सह नौ सौ के ऊपर अर्थात संवत 1901 में से 57 वर्ष घटा देने से ईसवी सन 1844 होता है अर्थात सतयुग की बेला ई0 1844 से शुरू हो गयी है। एक हजार बरस के लिए सतयुग की बेल बढ़ेगी। 23 मई 1844 को बहाई संत एवं ईश्वरीय संदेशवाहक बाब की घोषणा के अनुसार नया युग शुरू हो गया है।
(4) युग दृष्टा संत ‘सूरदास’ ने तीनों लोकों तथा चारों युगों का दर्शन किया था:-
संत सूरदास ने अपने प्रचण्ड आ
त्मबल तथा अन्दर की दिव्य दृष्टि से युगों की स्थिति को देख लिया था। यह इस बात का द्योतक है कि पवित्र आत्मा की अंदर की आँख में दृष्टि दोष नहीं होता है। भौतिक आँख वाला संसार की भावी स्थिति का इतनी सही तथा स्पष्ट व्याख्या नहीं कर सकता। जन्म से अंधे संत सूरदास ने जो भी साहित्य इस संसार की मानव जाति को दिया वह सब ईश्वरीय प्रेरणा से दिया है। उन्होंने अपनी पवित्र आत्मा में ब्रह्माण्ड का दर्शन किया था। सूर पदावली में समस्त ब्रह्माण्ड का आदि और अंत का पूरा ज्ञान समाया हुआ है। जन्म से अन्धे होने के कारण उन्होंने तीनों लोकों तथा चारों युगों के ज्ञान के दर्शन अपनी पवित्र अन्तर-आत्मा से किया था। संत सूरदास ने सूरपदावली में अपनी आत्मा का पूरा ज्ञान उड़ेल दिया है।
(5) युग-युग से जिस समय की प्रतीक्षा थी वह समय आ गया!:-
‘एक कर दे हृदय अपने सेवकों के हे प्रभु!’ अब समय आ गया है कि हम सबके हृदय ईश्वरीय प्रेम में एकाकार होकर एक हो जाये। प्रत्येक विचारशील व्यक्ति के लिए ‘एक दिन दुनियाँ एक करूँगा’ का संकल्प लेने का सबसे उपयुक्त समय अब आ गया है। ”युद्ध के विचार पहले मनुष्य के मस्तिष्क में पैदा होते हैं अतः दुनियाँ से युद्धों को समाप्त करने के लिये मनुष्य के मस्तिष्क में ही शान्ति के विचार उत्पन्न करने होंगे।“ शान्ति के विचार देने के लिए मनुष्य की सबसे श्रेष्ठ अवस्था बचपन ही है। विश्व एकता, विश्व शान्ति एवं वसुधैव कुटुम्बकम् के विचारों को बचपन से ही प्रत्येक बालक-बालिका को ग्रहण कराने की आवश्यकता है ताकि आज के ये बच्चे कल बड़े होकर सभी की खुशहाली एवं उन्नति के लिए संलग्न रहते हुए ”वसुधैव कुटुम्बकम्“ के स्वप्न को साकार कर सकें। युग-युग से जिस समय की प्रतीक्षा थी वह समय आ गया!
– जय जगत –