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असली सूर्य से कम नहीं है यह मशीन, चुटकियों में कर देती है बड़े-बड़े हैरतअंगेज काम

बॉन. दिखने में सामान्य सा लगने वाला यह ढांचा कितना कारगर है यह आप सोच भी नहीं पाएंगे. जर्मन शहर यूलिष में 149 रिफ्लेक्टर लैंपों का यह ढांचा ही कृत्रिम सूर्य है. इससे 3,000 डिग्री सेल्सियस की गर्मी पैदा की जा सकती है. यह जानकर आपको हैरानी होगी कि इससे सूरज की रोशनी के मुकाबले 10 गुना ज्यादा विकिरण निकलता है.

असली सूर्य से कम नहीं है यह मशीन, चुटकियों में कर देती है बड़े-बड़े हैरतअंगेज काम

धातु को सेकेंडों में पिघला देती हैगर्मी

149 शक्तिशाली लैंपों की प्रोजेक्टर रोशनी को एक ही जगह पर केंद्रित किया जाता है. सारी रोशनी एक गोल्फ की गेंद के बराबर छोटे आकार पर फोकस की जाती है और तब जाकर 3,000 डिग्री सेल्सियस की गर्मी पैदा होती है. इतनी गर्मी किसी भी धातु को सेकेंडों में पिघला देती है.

घटाई-बढ़ाई जा सकती है रोशनी

आम तौर पर पृथ्वी पर पड़ने वाली सूर्य की रोशनी हर वक्त बदलती रहती है. वायुमंडल में मौजूद नमी, धूल और अन्य तत्व हर वक्त विकिरण में परिवर्तन करते रहते हैं. विशाल लैब के भीतर मौजूद कृत्रिम सूर्य के साथ ऐसा नहीं होता. लैब के भीतर एक जैसा माहौल रहने से विकिरण संबंधी शोध किए जाते हैं. यह देखा जाता है कि अलग अलग रसायनों और प्राकृतिक तत्वों पर विकिरण का कैसा असर पड़ता है. प्रयोग के दौरान रोशनी घटाई या बढ़ाई जा सकती है. अब भी वैज्ञानिकों के सामने एक बड़ी समस्या यह आ रही है कि 3,000 डिग्री के तापमान को बर्दाश्त करने के लिए कौन सा मैटीरियल इस्तेमाल किया जाए? पृथ्वी पर मौजूद ज्यादातर पदार्थ अधिकतम 1,800 या 2,000 डिग्री सेल्सियस तक का ही तापमान बर्दाश्त कर सकते हैं.

किए जाते हैं ताप संबंधी प्रयोग

आखेन के पास यूलिष शहर में डीएलआर ने एक मिरर पार्क भी बनाया है. असल में यह सोलर थर्मल पावर प्लांट हैं. 2,100 विशाल दर्पण सूर्य की रोशनी को परावर्तित कर एक टावर पर फोकस करते हैं. इससे करीब 1600 से 2000 डिग्री तक तापमान पैदा होता है.

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