दस्तक-विशेष

आंवले के पेड़ के संरक्षण की जरूरत

awlaरायपुर (एजेंसी)। छत्तीसगढ़ ही नहीं पूरे विश्व में आंवले के वृक्ष का आयुर्वेदिक तथा देश में धार्मिक महत्व है। श्रद्धा स्वरूप हर घर के आंगन में अनिवार्य रूप से आंवले का एक पेड़ लगाया जाता था  तथा दीपावली के बाद नवमी के दिन आंवले के वृक्ष की पूजा किए जाने की परंपरा रही है। आवंले के वृक्ष की पूजा किए जाने की परंपरा तो आज भी विद्यमान है  लेकिन महिलाओं को पूजा करने के लिए अब अपने आस पड़ोस में आंवले का पेड़ तलाशना पड़ता है। शहरों में तो आंवले के वृक्ष खोजे नहीं मिलते।
इस महीने से आंवला बाजार में आने लगा है  लेकिन आंवले की आवक अब पहले जैसी नहीं रही। घर आंगन की तरह जंगलों से भी अवैध कटाई के चलते आंवले के पेड़ तेजी से विलुप्त होते जा रहे हैं। आंवले के वृक्ष का लगातार कटाई का नतीजा अब सबके सामने है। चिकित्सीय रूप से आंवला सेहत के लिए काफी उपयोगी माना जाता है  क्योंकि इसमें विटामिन सी प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। यह पाचन के लिए उपयोगी होने के साथ साथ रोग प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ाता है। आंवला से आचार  मुरब्बा  कैंडी आदि भी बनाई जाती है। आयुर्वेदिक चिकित्सक प्रदीप दुबे ने बताया कि एक आंवले के फल में बीस संतरे के बराबर विटामिन सी पाया जाता है। विटामिन सी के साथ आंवले में कैल्शियम  फास्फोरस  आयरन  कैरो टिन और विटामिन बी कांप्लेक्स भी प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। आंवला का चूर्ण कब्ज नाशक  पाचन शक्ति बढ़ाने वाला  बालों को झरने से रोकने वाला  नेत्र ज्योति को बढ़ाने वाला होता है। पतंजलि आयुर्वेद के संचालक गौरव वर्मा ने कहा  कि आंवला च्यवनप्राश का प्रमुख घटक है। आंवला पेड़ की हो रही कमी पर ध्यान देना चाहिए। जन विज्ञान केंद्र मुड़पार के प्रभारी लालाराम  ने कहा कि आंवले का पौधा शुष्क जमीन पर लगाया जाता है। यह आंत की बीमारी के साथ-साथ नेत्र और बालों के लिए भी अत्यंत उपयोगी है।चिकित्सक जे. एम. जैन ने कहा कि आंवला फल सेहत के लिए काफी उत्तम है। इस पेड़ के संरक्षण व संवर्धन की जरूरत है क्योंकि अन्य वृक्षों की तरह आंवले के पेड़ की संख्या में काफी कमी आई है। वनस्पति शास्त्र के व्याख्याता ओंकार जैन ने कहा कि आंवले से आयुर्वेदिक दवाइयों के अलावा आचार  मुरब्बा भी बनाया जाता है। टिकरापारा के राजेश शुक्ला ने कहा कि गांवों में अब पहले जितनी संख्या में आंवले के वृक्ष नहीं रहे। बहरहाल आज जरूरत है इस महत्वपूर्ण औषधीय वृक्ष के संरक्षण और संवर्धन की  इसलिए हमें सिर्फपूजा-पाठ के समय ही इस वृक्ष की याद न कर इसे वर्ष भर सहेजने पर ध्यान देना चाहिए।

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