आखिर कश्मीरी क्या चाहते हैं भारत या पाकिस्तान
फ़िरोज़ बख्त अहमद
हाल ही में केंद्र सरकार ने पीडीपी को तलाक कह दिया है। इसके साथ ही साथ, महबूबा मुफ्ती, जोकि पहले केंद्र के लिए महबूबा थीं अब देशद्रोही हो गई हैं। खैर, देशद्रोही शब्द थोड़ा संगीन सा लगता है, मगर वास्तविकता यही है कि उन्हें केंद्र के साथ सरकार चलाने का एक सुनहरा मौका प्राप्त हुआ था जिसे उन्होंने गंवा दिया। हालांकि केंद्र ने महबूबा पर पूर्ण रूप से भरोसा कर उन्हें कश्मीर के हालात को सुधारने का मौका दिया, मगर वे कुछ विशेष कर नहीं पाईं। अब वहां राष्ट्रपति राज लग गया है और राज्यपाल एनएन वोहरा ने कमान संभाल ली है।
वास्तव में, शुजाअत बुखारी और सिपाही औरंगजेब का आतंकवादियों द्वारा मारा जाना ऐसा जघन्य कुकर्म था कि भारत सरकार का सब्र का पैमाना लबरेज हो गया और उसने महबूबा से जान छुड़ाने में ही अपनी खैर समझी। जबसे भारत सरकार और महबूबा का जम्मू-कश्मीर गठबंधन हुआ, तब से ही लगभग तीन वर्ष में शायद एक दिन भी कोई ऐसा नहीं गया कि जब सरकार और महबूबा में न ठनी हो।
बहुत से लोग और विशेष रूप से विपक्षी, भाजपा के मुफ्ती से पल्ला झाड़ लेने का अर्थ यह निकाल रहे हैं कि भाजपा ने यह कदम 2019 चुनाव को देखते हुए उठाया है। विपक्ष का पूरा अधिकार है कि वह जो चाहे समझे क्योंकि भारत में अभिव्यक्ति की पूरी आजादी है। वास्तव में भाजपा सरकार का महबूबा से रिश्ता तोड़ना, 2019 से अधिक इस बात की ओर इशारा करता है कि उन्हें कश्मीर की कमान इसलिए दी गई कि वे वहां शांतिपूर्ण हालात बनाएं और आतंकवादी गतिविधियों पर अंकुश लगाएं। ऐसा कुछ नहीं हुआ।
आखिर क्या कारण है कि महबूबा मुफ्ती के रहते कश्मीर में पाकिस्तानी सब्ज झण्डे फहराए जा रहे हैं। यही नहीं, वहां विश्व की सबसे घृणात्मक आतंकी संस्था आईएसआईएस के झण्डे भी फहराए जा रहे हैं। यह बड़े खेद का विषय है कि भारत को आजाद हुए 70 वर्ष से भी अधिक हो गए हैं मगर यहां अब तक पाकिस्तानी घुसपैठ समाप्त नहीं हुई है। दूसरी ओर कश्मीर के अलगाववादियों के प्रति भी महबूबा का रवैया नर्म रहा है। पाकिस्तानी विचारधारा से प्रेरित यह अलगाववादी बड़े ठाठ का जीवन व्यतीत कर रहे हैं। भारत से सारी सुविधाएं ले रहे हैं। अपने बच्चों को विदेशी संस्थानों में पढ़ा रहे हैं और उधर हाफिज सईद जैसे अपने पाकिस्तानी आकाओं से हाथ मिलाए बैठे हैं।
बकौल वरिष्ठ संघ विचारक एवं नेता इंद्रेश कुमार, कश्मीरी आतंकवादियों को समझना चाहिए कि ‘‘गन कल्चर’’ से नहीं बल्कि ‘‘मन कल्चर’’ से कश्मीर में रहना होगा। जो आतंकवादी कश्मीर में गन चलाएगा, उसका इलाज भी गन से ही किया जाएगा। हां, जो मन की बात करेगा, उससे मन मिलाया जाएगा। संघ के मुस्लिम धड़े को पिछले लगभग 25 वर्ष से संभाले इंद्रेशजी का मानना है कि कश्मीर का हल बुलेट से नहीं बल्कि बैलेट से ही होगा। कश्मीरी नौजवानों के लिए भारत सरकार रेड कार्पेट वेलकम करने को तैयार है यदि वे अपने पाकिस्तानी आकाओं, चांद सितारा झण्डे और बंदूक को सच्चे दिल से त्यागकर गले मिलने को तैयार हों।
सच्चाई तो यह है कि कश्मीर घाटी को नियंत्रित करने के लिए जितना समय इंद्रेश कुमार ने वहां के युवकों एवं परिवारों के साथ गुजारा है, उन्हें नेकी के रास्ते पर उतारने का प्रयत्न किया है, ऐसा किसी भारतीय नेता ने नहीं किया। कई मर्तबा ऐसी घटनाएं भी हुईं कि जिसमें उनको अपनी जान की बाजी लगानी पड़ी, मगर कश्मीरी नौजवान और देश प्रेम के लिए, वे पीछे नहीं हटे। आज बहुत से कश्मीरी युवक उन्हीं के समझाने के बाद न केवल सेना की परीक्षा में बैठे हैं बल्कि संघ लोक सेवा आयोग की परीक्षाओं में बढ़िया नंबरों से उत्तीर्ण हुए हैं।
दूसरी ओर, बकौल प्रतिष्ठित मुस्लिम विचारक, डा. ख्वाजा इफ्तिखार अहमद जब प्रधानमंत्री मोदी ने नई-नई कमान संभाली थी तो उस समय कश्मीर में भीषण तूफान के कारण लगभग 80 प्रतिशत आबादी के मकान, दुकान आदि डूब गए थे तो उस समय प्रधानमंत्री राहत कोष से जबर्दस्त मदद की गई। यही नहीं, उन्हीं भारतीय सैनिकों ने जिन पर आए दिन पत्थर फेंके जाते हैं और उनकी जानें ली जाती हैं, उन्होंने ही अपने प्राणों को खतरे में डालकर हजारों कश्मीरियों की जानें बचाईं। सोशल मीडिया पर आए दिन भारतीय फौज के साथ किए गए जुल्म को देख आंखें नम हो उठती हैं।
विपक्ष के नेता, असदुद्दीन ओवैसी और उनके दूसरी पार्टियों के साथी आए दिन कहते रहते हैं कि कश्मीर में भारतीय सेना जुल्म ढा रही है, फौजी बलात्कार कर रहे हैं, कश्मीरियों का जीवन अजीर्ण हो चुका है आदि। ऐसी उनकी सोच को भी, मगर उनको चाहिए कि प्रधानमंत्री का हाथ बंटाने के लिए आगे आएं और इस प्रकार की भाषा को त्याग दें। यही बात विपक्ष को भी सोचनी होगी, मगर विडम्बना तो यह है कि विपक्ष भी यह सोचता है कि वह मानो भारत में नहीं बल्कि पाकिस्तान में रह रहा है।
जब तक सारे कश्मीरी इस बात का प्रण नहीं कर लेते कि भारत ही उनकी जन्म एवं कर्म स्थली है, विदेशी पाकिस्तानियों से उनका कोई लेना-देना नहीं है और यह कि भारत ही उनकी माता है, तब तक उनके हालात में सुधार नहीं आएगा। इसी कश्मीर से आईएएस टॉपर शाह फैसल, जूडो कराटे विश्व चैंपियन 10 वर्षीय तजम्मुल इस्लाम, एक्टर जायरा वसीम, क्रिकेटर परवेज रसूल आदि भी निकले हैं जिन्होंने मौलाना आजाद की तरह इस शेर में यकीन रखा है।
जो चला गया उसे भूल जा
हिंद को अपनी जन्नत बना!
(लेखक वरिष्ठ टिप्पणीकार एवं मौलाना आज़ाद के पौत्र हैं)