आचार्य श्रीराम शर्मा उन दिनों क्रांति धर्मी साहित्य का सृजन कर रहे थे। सन 1988 की सरदियां थीं, एक ही प्रवाह में लगातार ऐसा क्रांतिकारी चिंतन उभरकर आ रहा था- कि लगता था, नवयुग की आधारशिला रखी जा रही है। अपने साथ बैठे शिष्यों से वे कहते हैं-हमारे ये विचार क्रांति के बीज हैं। ये थोड़े भी दुनिया में फैल गये तो धमाका कर देंगे, सारे विश्व का नक्शा बदल देंगे। यह मेरे अब तक के सारे साहित्य सार है। सारे जीवन का लेखा-जोखा है। इसमें जीवन और चिंतन को बदलने के सूत्र हैं। यह वसीयत है हमारे उच्चाधिकारियों के लिए इन्हें समझे बिना भगवान के इस मिशन को न तो तुम समझ सकते हो, न ही किसी को समझा सकते हो। विधेयात्मक चिंतन में विश्वास रखने वाले प्रत्येक व्यक्ति को नियमित रूप से इसे पढ़ना और जीवन में उतारना जरुरी है। तभी वे अगले चरण में प्रवेश कर सकेंगे। यह इस युग की गीता है। यदि हम परमपूज्य गुरुदेव द्वारा रचित इस साहित्य का मनन-अनुशीलन करें तो यही विलक्षण अनुभूति हमें होती है।
और जीवन, समाज, देश, विश्व को विश्वबंधुत्व की भावना से भर सकता है।