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आज के युवाओं में कर्ज लेकर अपने सपने पूरे करने की मची है होड़

अपने भविष्य निर्माण के लिए सामाजिक एवं वित्तीय संकट के दौरान युवाओं में उधार लेने की प्रवृत्ति बढ़ी है। इस तरह हम एक बचतकर्ता से एक खर्च करने वाले देश में तब्दील हो रहे हैं। हम एक दिलचस्प समय में रह रहे हैं, देश की आबादी का साठ फीसदी हिस्सा युवा है और उनकी संख्या बढ़ रही है। इस युवा भारत ने जनसांख्यिकीय लाभांश को कई गुना बढ़ा दिया है और यह तब और विश्वसनीय लगता है, जब कोई कहता है कि यह किस तरह से हमें बढ़ती और विकसित अर्थव्यवस्थाओं के बीच पहुंचाएगा।आज के युवाओं में कर्ज लेकर अपने सपने पूरे करने की मची है होड़

इसके साथ ही हम कई वित्तीय समस्याओं से जूझ रहे युवाओं से रूबरू होते हैं-बेरोजगारी और रोजगार सृजन की धीमी गति बताते हैं कि हमारे युवा एक चुनौतीपूर्ण और कठिन भविष्य का सामना कर रहे हैं। भौतिकवादी सुख-साधनों की तीव्र इच्छा के साथ युवाओं की बेचैनी स्पष्ट है। वर्ष 2000 से पहले के युवा अपनी पहली कार तब खरीदते थे, जब वे तीस वर्ष की उम्र के करीब होते थे, लेकिन 2010 के बाद के युवा पच्चीस वर्ष की उम्र से पहले कार चाहते हैं।

आसान कर्ज के विकल्प ने घर और कार खरीदना आसान बना दिया है। छोटी उम्र में वित्तीय लक्ष्यों एवं सपनों को साकार करने के लिए व्यक्तिगत कर्ज लेना एक वास्तविकता है। वित्तीय लक्ष्यों को साकार करने के लिए कर्ज लेने में कोई बुराई नहीं है, अगर यह आवश्यक एवं जरूरी हो। लेकिन मोबाइल फोन, बाइक, कार का लगातार उन्नयन और उसके लिए तुरंत कर्ज लेना चिंता का कारण जरूर है। एक बचतकर्ता से हम एक खर्च करने वाले देश में तब्दील हो रहे हैैं।

केंद्रीय सांख्यिकी संगठन द्वारा जारी आंकड़े के मुताबिक, वर्ष 2016-17 में घरेलू बचत सकल घरेलू उत्पाद का 18.5 फीसदी थी, जबकि वर्ष 2010-11 में यह 25 फीसदी थी। अगर कोई पिछले दो दशक की बचत दर की तुलना करे, तो पता चलेगा कि 1990 के दशक में हमारी बचत दर जितनी थी, अभी उसकी आधी है। वित्तीय सेवा क्षेत्र के खुलने, वेतन में वृद्धि और कम ब्याज दर-इन सब ने भारतीयों के बीच, खासकर युवाओं में उधार की संस्कृति को बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। उधार लेने की सुविधा, ईएमआई संस्कृति के साथ कर्ज चुकाने में आसानी के चलते युवा अपनी वर्तमान इच्छाओं को पूरा करने के लिए भविष्य की आय को घटा रहे हैं। 

इस प्रवृत्ति का स्वाभाविक नतीजा यह है कि उधार देने वाला व्यवसाय तेजी से बढ़ा है-सुरक्षित और असुरक्षित, दोनों। आज न केवल आपके सपनों के घर के लिए, बल्कि सपनों की छुट्टी बिताने के लिए भी कर्ज उपलब्ध है। ईएमआई संस्कृति सफलतापूर्वक लोगों का शोषण कर रही है, कई व्यापारी ईएमआई के जरिये अपने उत्पाद की वास्तविक कीमत से बहुत ज्यादा कीमत वसूल रहे हैं। इसलिए ईएमआई पर एक नया फोन लेना सामान्य बात है, लेकिन वही फोन नकद भुगतान पर नहीं।

विक्रेताओं ने उधारदाताओं के साथ मिलकर सौदेबाजी का ऐसा ढांचा तैयार किया है, जिसमें ईएमआई आकर्षक होती है और लोगों को उत्पाद के सही मूल्य का पता नहीं चलता, क्योंकि ब्याज का अंश कीमत में निहित होता है। तत्काल संतुष्टि की अपनी सनक में युवा ऐसी बहुत सी चीजें खरीद लेते हैं, जिनकी उन्हें जरूरत नहीं होती, इसके सामाजिक परिणाम भी होते हैं। मसलन दूसरों को पीछे छोड़ने की होड़ में युवा अपनी ईएमआई का इंतजाम करने के लिए भारी दबाव में काम करते हैं, जो उनके स्वास्थ्य पर असर डालता है।

इसने पारिवारिक ढांचे को भी प्रभावित किया है, क्योंकि अत्यधिक उपभोक्ता वस्तुओं वाले घरों को उन घरों की तुलना में बेहतर माना जाता है, जहां इन वस्तुओं की कमी होती है। अपने समकक्षों की बराबरी के होड़ में कई लोग बिना समझे कर्ज लेते चले जाते हैं। बचत में कमी का मतलब यह भी है कि भविष्य के वित्तीय लक्ष्य जैसे सेवानिवृत्ति के बाद का जीवन और बच्चों की पढ़ाई जोखिम में है। असल में हम उसी स्थिति में फंस रहे हैं, जिसमें 1970 के दशक में अमेरिका फंसा था। यह वैसा ही है कि लोग कर्ज चुकाने के लिए नौकरी करते हैं। यह बहुत ही खतरनाक स्थिति है, क्योंकि ऋण पर निर्भर रहने से समाज पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।

ऐसी परिस्थिति में पहुंचने का परिदृश्य है, जहां कोई व्यक्ति हमेशा ईएमआई चुकाने के लिए जीता है। इसमें वित्तीय सेवा उद्योग और सरकारों को उपभोक्ताओं की कीमत पर लाभ होता है, जो यह सोचते हैं कि उन्होंने अच्छा सौदा किया है, जबकि वास्तव में वे कच्चा सौदा करते हैं। यह उस समय से बिल्कुल कठिन बदलाव है, जब परिवार के हर सदस्य की देखभाल के लिए संयुक्त परिवार होता था।

अपने प्रत्येक वित्तीय लक्ष्य को शुरू में ही हासिल करने के उत्साह में युवा वास्तव में वित्तीय सफलता और कल्याण के लिए कठिन मेहनत करने की खुशी का अनुभव नही कर पाते। पैसे को संभालने की यह अल्पकालिक मानसिकता इतनी प्रचलित है कि ज्यादातर लोग यह भूल जाते हैं कि जीवन में किसी भी स्तर पर वे बेरोजगारी और सेवानिवृत्ति का सामना करेंगे।

लेकिन बाद के वर्षों में अपनी वित्तीय जरूरतों को पूरा करने के लिए उनके पास पर्याप्त मौका नहीं होता, क्योंकि उनके सामने वित्तीय चुनौतियां ज्यादा होती हैं, जबकि वास्तव में तब कोई व्यक्ति अपनी बचत पर आसाना जिंदगी जीना चाहता है। इस तरह किसी सार्थक बचत के अभाव में यह युवा आबादी आर्थिक रूप से सबसे गरीब लोग होंगे, जब उन्हें धन पर अधिक निर्भर रहने की आवश्यकता होगी।

इस तरह की स्थिति में फंसने के बजाय युवा भारतीयों के लिए यही वक्त है कि वे कर्ज की अपनी भूख को कम करें, निवेश में अपना योगदान बढ़ाएं और यह सुनिश्चित करें कि वह अपने भविष्य के बारे में सोच रहे हैं। बैंकों और कर्जदाताओं को भी अपने स्तर पर युवाओं को वित्तीय शिक्षा देनी चाहिए, ताकि इससे पहले कि देर हो जाए, वे लंबे समय तक कर्ज को चलाने के प्रभाव को समझ सकें। ऐसी दुनिया में जहां भविष्य अनिश्चित है, युवाओं को बेहद सावधानी के साथ अपने पैसे को खर्च करना चाहिए। कर्ज के दुश्चक्र में फंसने के बजाय अगर वे अपने प्रियजनों के करीब रहेंगे, तो बेहतर स्थिति में होंगे। यदि आज हम बचत करेंगे, तो भविष्य में अपनी वित्तीय जरूरतों को पूरा करने की संभावना ज्यादा रहेगी।

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