नईदुनिया, भोपाल। आंसू पोंछते हुए गोद में बच्चे को लेकर बदहवास भागती एक मां और उससे लिपटा बच्चा. यह वह मूर्ति है जो भोपाल गैसकांड का नाम आते ही जेहन में उभरती है। पिछले 32 सालों से यूनियन कार्बाइड के बाहर जेपी नगर में स्थापित यह मूर्ति ही इस भीषण त्रासदी का एकमात्र स्मारक है। मां-बच्चे की यह मूर्ति जितनी मार्मिक है उतनी ही मार्मिक इसके बनने की कहानी भी है।
गैसकांड की पहली बरसी से पहले ही 1985 में यह मूर्ति एक महिला रूथ वाटरमैन ने बनाई थी। डच नागरिक रूथ ने जब भोपाल गैसकांड की खबर सुनी तो उन्हें अपने मां-बाप की याद आई जिन्हें हिटलर के नाजी कैंप में गैस चैंबर में बंद करके मार दिया गया था क्योंकि वे यहूदी थे। रथ इन यातना शिविरों से किसी तरह बचा कर निकाल ली गई थीं। रूथ को भोपाल के गैस पीडि़तों में अपने मां-बाप नजर आए और इनके लिए कुछ करने के लिए वे तुरंत भोपाल पहुंच गई और यह मूर्ति बनाई।
ऐसे तय हुई डिजाइन
भोपाल गैसकांड के तुरंत बाद रूथ भोपाल पहुंचीं और पेशे से एक मूर्तिकार होने के नाते उन्होंने इस गैसकांड का एक स्मारक बनाने की सोची। लेकिन बनाया क्या किया जाए यह एक बड़ा सवाल था। उन्होंने अपने साथी कोलकाता के फोटोग्राफर संजय मित्रा के साथ मिलकर पीडि़त बस्तियों में लोगों से पूछा कि त्रासदी वाली रात का वो कौन सा नजारा था जो उन्हें सबसे ज्यादा याद आता है, फिर इस बातचीत के आधार पर स्मारक का मां-बच्चो वाला डिजाइन फाइनल किया गया।
पीडि़तों ने बनाया स्मारक
रूथ इस मूर्ति को बनाने के लिए दो महीने तक भोपाल में रुकीं और गैस पीडि़तों की मदद से ही डिजाइन तैयार करने से लेकर मूर्ति की स्थापना तक की। उडि़या बस्ती में रहने वाले गंगाराम भी इस मूर्ति को तैयार करने में जुटे रहे। व बताते हैं उन्होंने ही इस मूर्ति की ढलाई की थी। इसमें दूसरे गैस पीडि़तों ने भी मदद की थी। गैस पीडित संगठनों से जुड़े सामाजिक कार्यकर्ता अब्दुल जब्बार और रशिदा बी के मुताबिक यह मूर्ति गैस पीडि़तों के संघर्ष की भी एक पहचान बन गई है। इस मूर्ति के जरिए रूथ की संवेदना आज भी गैस पीडि़तों से जुड़ी हुई है।
हिटलर के गैस चैंबर में मारे गए थे 3 लाख लोग
जर्मनी के नाजियों ने सोवियत यूनियन के ऑशविच (अब पौलेंड में) में 1500 यहूदियों को गैस चैंबर में रखकर जहरीली गैसों से मार डाला था। एक अनुमान के मुताबिक नाजियों ने दूसरे विश्व युद्ध के दौरान इस तरीके से करीब तीन लाख हत्याएं की थीं। सामाजिक कार्यकर्ता सतीनाथ षडंगी ने बताया कि रूथ वाटरमैन आज भी भोपाल को याद करती हैं। उनकी 90 साल से ज्यादा उम्र की हो चुकी हैं और हॉलैंड में रहती हैं। बेहद बीमार होने के बाद भी भोपाल में कई पीडि़तों के संपर्क में हैं।