आतंकियों के शव की डेढ़ महीने तक रखवाली करती रही मुंबई पुलिस
हमले के मुख्य जांच अधिकारी रहे रमेश महाले जल्द ही इस हादसे से जुड़ी एक किताब दुनिया की सामने लाने वाले हैं। इस किताब में वे ऐसे कई राज खोलेंगे जिनसे अब तक सभी अंजान हैं। रमेश महाले तीन साल पहले ही मुंबई पुलिस से स्वैच्छिक रिटायरमेंट ले चुके हैं। इस किताब को लिखने के लिए क्राइम ब्रांच के एडिशनल सीपी के एम प्रसन्ना ने उनको सुझाव दिया था। रमेश महाले द्वारा लिखी जा रही ये किताब तीन भाषाओं अंग्रेजी, मराठी और गुजराती में छापी जाएगी।
लंबे समय तक गोपनीय रखी गई थी ये बातें
मुंबई हमले में मारे गए आतंकियों के शवों के दफन को लेकर मामला कितना गोपनीय रखा गया इसका जिक्र इस किताब में किया गया है। रमेश महाले बताते हैं 9 आतंकियों को दफनाने के लिए 26 लोगों की टीम बनाई गई थी। इस टीम में 25 सिपाही थे। सभी अतंकियों के शवों को रात के समय में एक वैन में ले जाया गया था। मामला इतना गोपनीय था कि मॉर्चरी पर पहरा दे रहे गार्डों को भी इसकी भनक तक नहीं लगी कि कब जेजे हॉस्पिटल से उन आतंकियों के शवों को ले जाकर अज्ञात स्थान पर दफना दिया गया। मुंबई पुलिस के गार्ड डेढ़ महीने तक खाली मॉर्चरी का पहरा देते रहे। जबतक कि महाराष्ट्र के तत्कालीन गृहमंत्री आर आर पाटिल ने विधानसभा में इसकी अधिकारिक रुप से घोषणा नहीं कर दी।
कसाब को दो दिनों तक मुंबई के सेंट जार्ज हॉस्पिटल में जांच के लिए रखा गया था। यह बात पुलिस को भी मालूम नहीं थी। इसके बाद उसे तीन दिन के लिए कंफेशनल कस्टडी के लिए जेल भेज दिया गया। तीन दिनों तक कोर्ट में कसाब के बयान दर्ज किए जाते रहे। इसकी भी मुंबई पुलिस को भनक नहीं थी। जब कसाब को वापस जेल कस्टडी में भेज दिया गया। तब इसकी जानकारी मुंबई पुलिस को दे दी गई।
एनकाउंटर स्पेशलिस्ट विजय सालस्कर क्यों कर रहे थे गाड़ी को ड्राइव?
मुंबई पर हुए अचानाक इतने बड़े हमले से हर ओर अफरातफरी मची हुई थी। जब एटीएस चीफ हेमंत करकरे को मालूम चली वे सीधे कामा हॉस्पिटल पहुंचे। उस वक्त उनके साथ एडिशनल कमिश्नर अशोक काम्टे, सीनियर इंस्पेक्टर विजय सालस्कर समेत गाड़ी में 7-8 लोग सवार थे। गाड़ी सीनियर इंस्पेक्टर विजय सालस्कर चला रहे थे। चूंकी गाड़ी में हेमंत करकरे और अशोक काम्टे पहले से ही मौजूद थे जिसके चलते उन्हें पीछे बैठना पड़ता। इसलिए इंस्पेक्टर सालस्कर ने गाड़ी ड्राइव करने का निर्णय लिया। उनके साथ वाली सीट पर अशोक काम्टे थे बीच में हेमंत करकरे थे। तभी कामा हॉस्पिटल की सामने वाली सड़क पर टीम का आतंकियों से सामना हो गया। पुलिस को देखते ही कसाब और उसके साथी ने गाड़ी पर फायरिंग शुरू कर दी। करकरे की टीम की ओर से भी फायरिंग की गई थी जिसकी एक गोली कसाब को लगी। इसकी गवाही महाराष्ट्र के तत्कालीन हेल्थ सचिव के ड्राइवर ने कोर्ट में दी थी।
बुलेट प्रूफ जैकेट भी नहीं बचा पाती शहीद एटीएस चीफ हेमंत करकरे की जान-
इस घटना के बाद जांच में पाया गया कि हमले में शहीद हुए अधिकारियों ने बुलेट प्रूफ जैकेट नहीं पहनी थी। जिसके चलते वे आतंकियों की गोलियों के शिकार हुए। रमेश महाले ने बताया कि हेमंत करकरे की पोस्टमार्टम रिपोर्ट में ये खुलासा हुआ कि आतंकियों द्वारा चलाई गई गोलियां उनके गले में लगी थी। जबकि बुलेट प्रूफ जैकेट सिर्फ सीने और पेट को कवर करती है।
हालांकि मुंबई हमले के मुख्य जांच अधिकारी रहे रमेश महाले के मुताबिक उनकी पब्लिश होने वाली किताब का नाम अभी तक नहीं निर्धारित नहीं हो पाया है। किताब आने के बाद कई ऐसे खुलासे हो सकते हैं, जिनकी जानकारी अभी तक किसी को नहीं है।