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आदिशक्ति नवदुर्गा के नौवें स्वरूप से पाएं ब्रह्मांड पर विजय

10256415_786569864735738_1807188346745938228_nदस्तक टाइम्स/एजेंसी-
आदिशक्ति नवदुर्गा के रूपों में देवी सिद्धिदात्री नौवीं शक्ति हैं। शास्त्रानुसार नवरात्र पूजन की नवमी पर देवी सिद्धिदात्री की पूजा का विधान है। नवरात्र की नवमी पर शास्त्र अनुसार तथा संपूर्ण निष्ठा के साथ साधना करने वाले साधक के लिए सृष्टि में कुछ भी अगम्य नहीं रह जाता। ब्रह्मांड पर पूर्ण विजय प्राप्त करने की सामर्थ्य उसमें आ जाती है। जो भी साधक सम्पूर्ण समर्पण के साथ देवी सिद्धिदात्री की भक्ति करता है देवी उसी पर अपना स्नेह लुटाती हैं। शास्त्रानुसार भगवान शंकर ने इन्हीं की कृपा से सिध्दियों को प्राप्त किया था तथा इन्हें के द्वारा भगवान शंकर को अर्धनारीश्वर रूप प्राप्त हुआ। यह देवी इन सभी सिद्धियों की स्वामिनी हैं। इनकी पूजा से भक्तों को ये सिद्धियां प्राप्त होती हैं। देवी सिद्धिदात्री की भक्ति से मनुष्य को अर्थ, कर्म, काम, मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है। इनकी पूजा का सर्वश्रेष्ठ समय ब्रह्म महूर्त वेला है अर्थात प्रातः 4 बजे से 6 बजे के बीच इनकी उपासना करना श्रेष्ठ है। इनकी पूजा सफेद रंग के फूलों विशेषकर तुलसा मंजीरी से करनी चाहिए। इन्हें केले का भोग लगाना चाहिए तथा श्रृंगार में इन्हें केसर अर्पित करना शुभ होता है। इनकी साधना से सिद्दियों की प्राप्ति होती है। मां सिद्धिदात्री अमोघ फलदायिनी हैं। इनका ध्यान इस प्रकार है जिन व्यक्तियों की कुण्डली में केतु ग्रह नीच अथवा केतु की चंद्रमा से युति हो अथवा केतु मिथुन या कन्या राशि में हो षष्ट भाव में आकार नीच एवं पीड़ित हो उन्हें सर्वश्रेष्ठ फल देती है देवी सिद्धिदात्री की साधना। जिन व्यक्तियों की आजीविका का संबंध धर्म से है जैसे संयासी, पंडित, अथवा अध्यन (शिक्षक-आचार्य), दुग्ध उत्पादन, ज्योतिष, अंकशास्त्री, धर्मशास्त्री हो उन्हें सर्वश्रेष्ठ फल देती है देवी सिद्धिदात्री की साधना।

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