आपकी लाइफ भी चल रही है Out of control तो अभी पढ़े यह न्यूज़
संयम एक बहुत महत्वपूर्ण शब्द है सीमा। हर बात की सीमा होती है। गांव पूरा होता है, सीमा हो गई नगर की सीमा पर लिखा हुआ मिलता है-सीमा समाप्त। भवन की सीमा होती है। अगर सीमा नहीं होती तो व्यवस्था नहीं बनती। व्यवस्था और सीमा दोनों में गहरा संबंध है। सीमा के साथ हर कार्य होना अच्छा है। सीमा का अपना मूल्य होता है। एक शिष्य अपने गुरु के पास बहुत बोल रहा था। दूसरा व्यक्ति आया और कहा, ‘‘मैं आपकी क्या सेवा कर सकता हूं।’’ गुरु ने कहा, ‘‘सबसे पहले यही सेवा करो कि इसको वाणी का संयम सिखाओ।’’
बोलना अच्छा है, पर बहुत बोलना अच्छा नहीं है। खाना आवश्यक है, पर बहुत खाना अच्छा नहीं है। वाणी की भी एक सीमा है, आहार की एक सीमा है। वाणी का संयम, आहार का संयम, गति का संयम, प्रवृत्ति का संयम-जीवन के प्रत्येक कार्य में संयम आवश्यक होता है। जो व्यक्ति संयम करना नहीं जानता, वह अपने लिए भी खतरा बनता है और दूसरों के लिए भी खतरा बनता है। संयम की चेतना कैसे जागे? संयम का विकास कैसे हो? प्रत्येक बात को सीखने के लिए कला और कौशल की आवश्यकता होती है। कला और कौशल के बिना दक्षता नहीं आती। जो व्यक्ति दक्ष नहीं बनता, वह ठीक काम नहीं करता। अस्तु जीवन में उन्नति के लिए संयम आवश्यक है। संयम आने पर ही हम देश, समाज, घर के लिए उपयोगी बन सकते हैं। इसलिए ऋषियों ने संयम के पालन पर बल दिया था।