बेगूसराय। साल 1975 के 25-26 जून की रात प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा लागू किए गए आपातकाल को 46 साल बाद भी लोग भूल नहीं पाए हैं। आजाद भारत के इतिहास का वह अमिट काला धब्बा शायद ही भविष्य में भी लोगों के जेहन से समाप्त हो सकेगा। देश में जारी भ्रष्टाचार, कुव्यवस्था और सरकारी नाकामी से आक्रोशित लोग जब आंदोलन पर उतारू हुए और आपातकाल लगा तो यहां के चार सौ से अधिक लोकतंत्र के सेनानियों को जबरदस्ती जेल भेजा गया। लोकतंत्र की हत्या करने वाली तानाशाही सरकार ने अपने तमाम विरोधियों को जबरदस्ती जेल में ठूंसकर आवाज दबाने का प्रयास किया।
प्रेस पर सेंसरशिप लगा दी गई, 253 पत्रकारों को मारपीट कर जेल में बंद कर दिया गया था। सात विदेशी पत्रकारों को देश से निष्कासित कर दिया गया था। प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया को भंग कर अखबारों के सरकारी विज्ञापन को बंद कर दिया गया। 51 अखबारों की मान्यताएं रद्द कर दी गई। इस दौरान बेगूसराय में छात्र, जनसंघ से जुड़े लोग, समाजवादी कार्यकर्ता के साथ सांगठनिक कांग्रेसी और मार्क्सवादी को भी जेल में जबरन ठूंस दिया गया था। आपातकाल के दौरान सरकार द्वारा अपने राजनीतिक विरोधियों को जब जबरदस्ती जेल भेजा जाने लगा तो बेगूसराय भी उससे अछूता नहीं रहा। लोगों पर आंतरिक सुरक्षा व्यवस्था अधिनियम (मीसा कानून) की धाराएं लगाई गई।
बेगूसराय में पूर्व सांसद और बिहार सरकार में कृषि मंत्री रह चुके रामजीवन सिंह, जनसंघ के संस्थापक सदस्य सीताराम शास्त्री, राजेन्द्र प्रसाद सिंह, जगन्नाथ प्रसाद सिंह समेत सैकड़ों लोग आजाद देश को आजादी दिलाने लोकतंत्र को बचाने के लिए संघर्ष कर रहे थे। आपातकाल में गिरफ्तार करने के दौरान सारी संवेदनाएं समाप्त हो गई थी। आज घर-घर भगवा छा गया है, भगवा अपने शरीर पर रखना लोग शान समझ रहे हैं। उस समय भी लोग शान से भगवा वस्त्र धारण करते थे। लेकिन आपातकाल के दौरान भगवा देखते ही पुलिस पागल हो जाती थी, भगवा रखने वालों को पकड़ कर मारपीट किया गया, उन्हें यातनाएं दी गई।
आपातकाल लागू होने से पहले जयप्रकाश नारायण बेगूसराय आए थे। जी.डी. कॉलेज के परिसर में जब जयप्रकाश नारायण की सभा हुई थी तो मंच से आवाज उठी थी ‘जाग उठा है आज देश का वह सोया अभिमान, जाग उठी है वानर सेना-जाग उठा वनवासी।’ यह बात बेगूसराय युवाओं के मन में बैठ गया था और आपातकाल के बाद तक यह घर-घर गाया जाता रहा। आपातकाल लागू होने के बाद बेगूसराय में 30 जून की रात से गिरफ्तारी का सिलसिला शुरू हो गया था। देर रात सबसे पहले जनसंध के संस्थापक सदस्य और तात्कालीन जिला मंत्री आचार्य सीताराम शास्त्री को गिरफ्तार किया गया।
आपातकाल के 46 साल पूरा होने पर सीताराम शास्त्री ने हिन्दुस्थान समाचार से बातचीत में बताया कि 25 जून 1975 को भारतीय प्रजातंत्र का काला दिवस था, आपातकाल के अनुमति पत्र पर तत्कालीन राष्ट्रपति के हस्ताक्षर करने से पहले ही अटल बिहारी वाजपेयी, जयप्रकाश नारायण, मोरारजी देसाई समेत कई बड़े नेताओं को सैकड़ों समर्थकों के साथ रातों-रात जेल भेज दिया गया। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने आपातकाल लागू कर पूरे देश के लाखों लोगों को जेल भेज दिया। जेल में मारपीट किया गया, यातनाएं दी गई, लोगों की जानें गई। स्वतंत्र भारत के इतिहास में यह सबसे विवादास्पद और अलोकतांत्रिक काल था।
श्री शास्त्री बताते हैं कि आपातकाल में चुनाव स्थगित हो गए तथा नागरिक अधिकारों को समाप्त करके सरकार ने प्रशासनिक सहयोग से पूरे देश में जमकर तांडव मचाया था। 30 जून को एसपी रामचन्द्र खान के स्पेशल आदेश पर रात करीब एक बजे ऑफिसर इंचार्ज अमरेन्द्र कुमार सिंह के नेतृत्व में पुलिस ने आतंकवादी की तरह उठा लिया, वारंट मांगने पर मारपीट शुरू कर दिया गया और कपड़ा तक पहनने नहीं दे रहे थे। भगवा लूंगी देखते ही ऑफिसर इंचार्ज भड़क गए और लूंगी फेंक कर पिटाई कर दी। बेगूसराय जेल में कुव्यवस्था के खिलाफ आंदोलन किया तो उन्हें साथियों के साथ भागलपुर सेंट्रल भेज दिया गया। लेकिन जेल में भी छात्रों और कैदियों की लौ को बरकरार रखने के लिए गीत-कविता के माध्यम से प्रेरित करते रहे। आज भी लोग उनसे आपातकाल और उस दौर की कहानियां सुननेे-समझने आया करते हैं।