इंफोसिस के खिलाफ कर्मचारियों से भेदभाव को लेकर अमेरिका में मुकदमा दर्ज
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उल्लेखनीय है कि एरिन ग्रीन ने टेक्सास के पूर्वी जिले की जिला अदालत में 19 जून को मामला दर्ज करवाया। इसमें कंपनी के दो वरिष्ठ अधिकारियों वैश्विक आव्रजन प्रमुख वासुदेव नायक और कार्यकारी उपाध्यक्ष बिनोद हंपापुर के खिलाफ गंभीर आरोप लगाए गए हैं। ग्रीन नायक को रिपोर्ट करते थे जिन्होंने पिछले साल ही कंपनी छोड़ दी थी।
जानकारी के मुताबिक, ग्रीन के वकील किलगोर और किल्गोरे ने बताया कि ग्रीन को इस बात के लिए ऑफिस से निकाल दिया गया क्योंकि उन्होंने कंपनी के गैर-दक्षिण एशिया क्षेत्र के कर्मचारियों के लिए आवाज उठाई और इसी के चलते नायक और बिनोद ने उस भेदभावपूर्ण टिप्पणी कसनी शुरू कर दी जिसे लेकर ग्रीन ने उनके खिलाफ मामला दर्ज करवाया।
उन्होंने आगे बताया कि ग्रीन को कंपनी से प्रतिवादी नीति को ताक पर रखकर निकाला गया है। जबकि इसके लिए पहले कर्मचारी को नोटिस दिया जाता है। लेकिन ग्रीन को ऐसा कोई नोटिस नहीं दिया गया और ना ही उनसे इस मामले में कोई चर्चा की गई।
मुकदमे वाली 53 पेजों की इस फाइल में ये भी बताया गया है कि अक्टूबर 2011 से 28 जून 2016 तक ग्रीन को टेक्सास के प्लेनो में कर्मचारी के रूप में रखा गया था और अपने कार्यकाल के दौरान ग्रीन और गैर-दक्षिण एशिया क्षेत्र के कर्मचारियों को भेदभाव का सामना करना पड़ा। लेकिन इस मामले को लेकर कंपनी इंफोसिस से अभी तक किसी भी तरह की कोई टिप्पणी नहीं आई है।
वहीं, इस मामले ने जोर जब पकड़ा तब कंपनी ने आने वाले दो सालों में दस हजार अमेरिकी नागरिकों को नौकरी देने का ऐलान किया। क्योंकि कंपनी इन कर्मचारियों को मौजूदा गैर-दक्षिण एशिया क्षेत्र के कर्मचारियों की छटनी करके ऐसा करने वाली थी।
इसके पहले वर्ष 2012 में इंफोसिस पर अमेरिकी वीजा की धोखाधड़ी का मुकदमा दर्ज किया गया था। उस समय कंपनी की याचिकाकर्ता, जैक पामर के साथ सुलह की कोशिश नाकामयाब रही थी। इंफोसिस ने खुद ये जानकारी दी थी। अमेरिका में मुकदमा शुरू करने से पहले सुलह कराने की परंपरा है।
पूर्व इंफोसिस कर्मचारी जैक पामर का आरोप था कि इंफोसिस एच1बी वीजा की संख्या कम होने के बाद अपने कर्मचारियों को बिजनेस मीटिंग के नाम पर भेजती थी, जबकि इनका काम दूसरे इंफोसिस कर्मचारियों की तरह ही होता था। इतना ही नहीं, भारत से आये कर्मचारियों को इंफोसिस अमेरिकी हिसाब से काफी कम तनख्वाह देती है।