दस्तक-विशेषस्तम्भ
इंसान की जिद और दाकियानुसी सोच ने विश्व स्तर पर जंगल राज बना रखा है
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हिरोशिमा तथा नागासाकी के सबसे बड़े परमाणु हमलों से हमने कोई सबक न सीखकर उससे सैकड़ों गुना अधिक विनाश की तैयारी कर ली है?
डा. जगदीश गांधी : नाभिकीय अस्त्र परीक्षण या परमाणु परीक्षण उन प्रयोगों को कहते हैं जो डिजाइन एवं निर्मित किये गये नाभिकीय अस्त्रों के प्रभाविकता, उत्पादकता एवं विस्फोटक क्षमता की जाँच करने के लिये किये जाते हैं। परमाणु परीक्षणों से कई जानकारियाँ प्राप्त होती हैं। जैसे- ये नाभिकीय हथियार कैसा काम करते हैं, विभिन्न स्थितियों में ये किस प्रकार का परिणाम देते हैं, भवन एवं अन्य संरचनायें इन हथियारों के प्रयोग के बाद कैसा बर्ताव करती है। सन् 1945 के बाद बहुत से देशों ने परमाणु परीक्षण किये। इसके अलावा परमाणु परीक्षणों से वैज्ञानिक, तकनीकी एवं सैनिक शक्ति का प्रदर्शन करने की कोशिश भी की जाती है। परमाणु परीक्षण मुख्य चार प्रकार के होते हैं—
— हवाई परीक्षण,
— जलगत परीक्षण,
— बाह्य वातावरणीय और
— भूमिगत परीक्षण
परमाणु परीक्षण तथा परमाणु युद्ध से होने महाविनाश को ध्यान में रखते हुए संयुक्त राष्ट्र संघ ने 29 अगस्त को अन्तर्राष्ट्रीय परमाणु परीक्षण विरोधी दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की है। सारे विश्व में 29 अगस्त का दिन अन्तर्राष्ट्रीय परमाणु परीक्षण विरोधी दिवस के रूप में मनाया जाता है।
दो परमाणु बमों के विस्फोट से मानवता कराह उठी : द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान 6 अगस्त, 1945 को अमेरिका ने जापान के हिरोशिमा शहर पर ‘लिटिल बॉय’ नाम का परमाणु बम का विस्फोट किया था। उसके तीन बाद 9 अगस्त को जापान के ही नागासाकी नगर पर अमेरिका ने ‘फैट मेन’ नाम का परमाणु बम गिराया था। इन दोनों परमाणु बमों का हिरोशिमा एवं नागासाकी नगर तथा इन दोनों शहरों में रहने वाले लोगों पर पड़ा प्रभाव इस प्रकार रहा:-
— हिरोशिमा में गिरे बम के कारण 13 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में तबाही फैल गई थी।
— शहर की 60 प्रतिशत से अधिक इमारतें नष्ट हो गई।
— एक अनुमान के अनुसार हिरोशिमा की कुल 3 लाख 50 हजार की आबादी में से 1 लाख 40 हजार लोग मारे गए थे।
— इनमें सैनिक और वह लोग भी शामिल थे जो बाद में परमाणु विकिरण की वजह से मारे गये। इसके पश्चात् भी बहुत से लोग लंबी बीमारी कैंसर और अपंगता के भी शिकार हुए।
— तीन दिनों बाद अमरीका ने नागासाकी शहर पर पहले से भी बड़ा हमला किया, जिसमें लगभग 74 हजार लोग मारे गए थे और इतनी ही संख्या में लोग घायल हुए थे।
— नागासाकी शहर के पहाड़ों से घिरे होने के कारण केवल 6.7 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में ही तबाही फैल पाई।
— इसके अलावा इन दोनों बमों के रेडिएशन के प्रभाव से बाद के वर्षों में भी हजारों बच्चों में कैंसर जैसी बीमारी होती रही और वे असमय काल के ग्रास में समाते रहें।
— इन बमों से निकलने वाली विषैली गैसों ने 18 हजार किलोमीटर तक के क्षेत्र को अपने प्रभाव में ले लिया था।
— इन बमों के प्रभाव से इतनी ऊर्जा पैदा हुई जिससे 20,000 फॉरेनहाइट डिग्री तक गर्मी पैदा हुई, जिससे बिलिं्डग व मकान आदि कागजों की तरह उड़ने लगे।
— इन बमों के धुंए की गुबार 18 किमी तक ऊँची उठ गई थी।
— इन बमों के प्रभाव से बच्चों व बड़ों की चमड़ी तक गल कर आपस में चिपक गई।
हिरोशिमा तथा नागासाकी के महाविनाश से मानव जाति के अस्तित्व का खतरा दुनिया ने महसूस किया था। भविष्य में ऐसी घटना दोबारा न हो इसके लिए शान्ति की सबसे बड़ी संस्था संयुक्त राष्ट्र संघ का गठन किया गया था, लेकिन संयुक्त राष्ट्र संघ शान्ति के प्रयासों की अनदेखी करते हुए दुनिया के सभ्य राष्ट्रों ने अपनी जिद्द तथा दाकियानुसी सोच के चलते विश्व स्तर पर जंगल राज स्थापित कर रखा है। ऐसे अराजकता के वातावरण में आतंकवाद तथा युद्धों की तैयारी चोरी-छिपे करने का पूरा मौका मिल रहा है। अफसोस के साथ कहना पड़ता है कि यह बात कब दुनिया को समझ में आयेगी जिस प्रकार देश कानून तथा संविधान से चलता है उसी प्रकार विश्व को चलाने के अन्तर्राष्ट्रीय कानून तथा संविधान की आवश्यकता है।
अब हिरोशिमा और नागासाकी जैसी घटनाएं दोहराई न जायें : आज की परिस्थितियाँ ऐसी हैं, जिनमें मनुष्य तबाही की ओर जा रहा है। दो महायुद्ध हो चुके हैं और अब तीसरा हुआ तो दुनियाँ का अस्तित्व नहीं रहेगा; क्योंकि वर्तमान में घातक शस्त्र इतने जबरदस्त बने हैं, जो आज दुनिया में कहीं भी चला दिए गए तो एक परमाणु बम पूरी दुनियाँ को समाप्त कर देने के लिए काफी है। नागासाकी और हिरोशिमा पर तो आज की तुलना में छोटे-छोटे दो खिलौना बम गिराए गए थे। आज उनकी तुलना में एक लाख गुनी ताकत के बम बनकर तैयार हैं। यदि एक सिरफिरा आदमी बस, एक बम चला दे, तो करोड़ों आदमी तो वैसे ही मर जाएँगे, बाकी बचे आदमियों के लिए हवा जहर बन जाएगी। जहरीली हवा, जहरीला पानी, जहरीले अनाज और जहरीले घास-पात को खा करके आदमी जिंदा नहीं रह सकता। तब सारी दुनिया की लगभग 7 अरब आबादी खत्म हो जाएँगी। मानव जाति की हिंसा तथा जिद्द का परिणाम इस धरती पर पलने वाले अरबों की संख्या में जीव-जन्तु, पशु-पक्षी सबका विनाश हो जायेगा।
एटम बमों के जोर पर ऐठी है यह दुनियाँ, बारूद के ढेर पे बैठी है यह दुनियाँ : विज्ञान की प्रगति इस युग की अभूतपूर्व उपलब्धि है। प्रकृति की शक्तियों को हाथ में लेने की क्षमता शायद ही कभी इतनी बड़ी मात्रा में मनुष्य के हाथ आई हो। विज्ञान दुधारी तलवार है। इससे जहाँ स्वर्गोपम सुख-शांति की प्राप्ति की जा सकती है, वहाँ ब्रह्मांड के इस अप्रतिम सुंदर ग्रह को-पृथ्वी को, चूर्ण-विचूर्ण करके भी रखा जा सकता है। दुष्ट मानव उसी दिशा में बढ़ रहा है। हाइड्रोजन और एटम अस्त्रों की इतनी बड़ी मात्रा उसने सर्वनाश के लिए ही सँजोई है। प्रस्तुत दुर्बुद्धि के बाहुल्य को रहते हुए यह असंभव नहीं कि इस बारूद में कोई उन्मादी किसी भी क्षण आग लगा दे और यह ईश्वरीय अरमानों से सँजोई, सींची हुई दुनियाँ क्षण भर में धूलिकण बनकर किसी नीहारिका के इर्द-गिर्द चक्कर लगाने लगे। विश्व का ऐसा दुःखद अंत काल्पनिक नहीं, वर्तमान परिस्थितियों में उस स्तर का खतरा पूरी तरह मौजूद है।
वसुधैव कुटुम्बकम् तथा भारतीय संविधान का अनुच्छेद 51 ही सर्वमान्य समाधान है : वसुधैव कुटुम्बकम् तथा भारतीय संविधान के अनुच्छेद 51 के विश्व एकता एवं विश्व शान्ति के प्राविधानों को संसार के समक्ष एकमात्र एवं सर्वमान्य समाधान के रूप में प्रस्तुत करना होगा। भारतीय संविधान का अनुच्छेद 51 भारत सरकार और उसके समस्त सरकारी तंत्र को अंतर्राष्ट्रीय शांति, अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा तथा विश्व एकता को बढ़ावा देने के प्रयास के लिए संवैधानिक जनादेश देता है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 51 के चार प्राविधानों में कहा गया है कि भारत का गणराज्य संसार के विभिन्न राष्ट्रों के बीच अन्तर्राष्ट्रीय शांति एवं सुरक्षा के लिए प्रयत्न करेगा। संसार के विभिन्न राष्ट्रों के बीच न्यायपूर्ण एवं सम्मानजनक सम्बन्ध स्थापित करने का प्रयत्न करेगा। अन्तर्राष्ट्रीय कानून के प्रति सम्मान की अभिवृद्धि करेगा तथा अन्तर्राष्ट्रीय संघर्षों को मध्यस्थम् (आरबीट्रेशन) द्वारा हल करने का प्रयत्न करेगा। प्राचीन काल से हमारे चारों वेद वसुधैव कुटुम्बकम् अर्थात ‘सारी वसुधा एक कुटुम्ब के समान है’ का सन्देश दे रहे हैं। वसुधैव कुटुम्बकम को सिटी मोन्टेसरी स्कूल ने 60 वर्ष पूर्व अपनी स्थापना के समय से जय जगत के ध्येय वाक्य के रूप में अपनाया है। पृथ्वी एक देश है तथा मानव जाति इसके नागरिक है। धर्म की अज्ञानता को दूर करने के लिए बच्चों को बाल्यावस्था से ही यह शिक्षा देनी चाहिए कि ईश्वर एक है, धर्म एक है तथा मानव जाति एक है। युद्ध के विचार मानव मस्तिष्क में पैदा होते हैं। इसलिए मानव मस्तिष्क में ही शान्ति के विचार डालने होंगे। मनुष्य को विचारवान बनाने की श्रेष्ठ अवस्था बचपन है। संसार के प्रत्येक बालक को विश्व एकता एवं विश्व शांति की शिक्षा बचपन से अनिवार्य रूप से दी जानी चाहिए। मानव इतिहास में वह समय आ गया है जब शिक्षा को सामाजिक परिवर्तन लाने का सशक्त माध्यम बनकर विश्व भर में हो रही उथल-पुथल का समाधान विश्व एकता तथा विश्व शान्ति की शिक्षा द्वारा प्रस्तुत करना चाहिए। संयुक्त राष्ट्र संघ को शक्ति प्रदान करके एक सशक्त विश्व संसद में परिवर्तत किया जाना चाहिए। विश्व की एक न्यायपूर्ण विश्व व्यवस्था आज की सबसे बड़ी आवश्यकता है।
मानवता के लिए शांति ही एकमात्र और सर्वमान्य रास्ता : हिरोशिमा एवं नागासाकी पर हुए परमाणु हमले के बाद सारे विश्व ने यह जान लिया है कि शान्ति का रास्ता ही सबसे अच्छा और मानवीय है। लेकिन इस परमाणु हमले की विभीषिका को जानने के बाद भी विश्व के अधिकांश देश परमाणु हथियारों की होड़ में शामिल हैं। लेकिन हमें अब यह समझना होगा की अगर फिर से तीसरा विश्व युद्ध हुआ तो उसमें स्वाभाविक तौर पर परमाणु बम से हमलें होंगे जिससे सम्पूर्ण मानवता के अस्तित्व के ही समाप्त हो जाने का खतरा है। इसलिए विश्व के सभी देशों को सुनिश्चित करना होगा कि भविष्य में परमाणु हमलें न होने पायें क्योंकि मानवता के लिए शांति ही एकमात्र और सर्वमान्य रास्ता है।
वल्र्ड जुडीशियरी मानव जाति की अन्तिम आशा : इस प्यारी धरती को परमाणु बमों की विभीषका से भरी अंधी होड़ तथा आतंकवाद से मुक्त कराने के लिए मेरे संयोजन में वर्ष 2001 से प्रतिवर्ष लखनऊ मेरे विद्यालय सिटी मोन्टेसरी स्कूल द्वारा भारतीय संविधान के अनुच्छेद 51 पर आधारित विश्व के मुख्य न्यायाधीशों के अब तक 19 अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलन सफलतापूर्वक आयोजित किये गये हैं। विश्व के 2.5 अरब बच्चों के भविष्य को सुरक्षित बनाने के उद्देश्य से विश्व के मुख्य न्यायाधीशों का 20वां अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन आगामी 8 से 12 नवम्बर, 2019 तक लखनऊ में आयोजित किया जा रहा है। विश्व के मुख्य न्यायाधीशों के अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलनों में अब तक 133 देशों के 1222 मुख्य न्यायाधीश, न्यायाधीश, हेड आॅफ दि स्टेट/गवर्नमेन्ट, संसद के स्पीकरों ने प्रतिभाग किया है। इन सम्मेलनों में मुख्य न्यायाधीशों, न्यायाधीशों, कानूनविदों एवं शांति प्रचारकों ने प्रतिभाग करके विश्व संसद, विश्व सरकार तथा वल्र्ड कोर्ट आॅफ जस्टिस के गठन को अपना सर्वसम्मति से समर्थन दिया है। इन आयोजनों के माध्यम से हम विश्व के राजनैतिज्ञ नेतृत्व के लिए ऐसी सीढ़ी अर्थात विश्व जनमत तैयार कर रहे हैं जिस पर चढ़कर संसार के दो अरब चालीस करोड़ बच्चों के सुरक्षित भविष्य के लिए संसार के राष्ट्राध्यक्षों के द्वारा एक विश्व व्यवस्था के अन्तर्गत विश्व संसद, विश्व सरकार तथा वल्र्ड कोर्ट आॅफ जस्ट्सि का गठन शीघ्र किया जा सके।
सभी देशों के राष्ट्राध्यक्षों को मिलकर विश्वव्यापी समझ दिखानी चाहिए : हमारा मानना है कि संसार के प्रत्येक बालक को विश्व एकता एवं विश्व शांति की शिक्षा बचपन से अनिवार्य रूप से दी जानी चाहिए। किसी भी पूजा स्थल में की गई प्रार्थना को सुनने वाला परमात्मा एक ही है इसलिए एक ही छत के नीचे अब सब धर्मों की प्रार्थना होनी चाहिए। संसार के प्रत्येक नागरिक द्वारा चुनी हुई विश्व सरकार, लोकतांत्रिक ढंग से गठित विश्व संसद (वीटो पाॅवर रहित) तथा प्रभावशाली विश्व न्यायालय जिसके निर्णय संसार के प्रत्येक व्यक्ति पर समान रूप से लागू हो! का गठन होना चाहिए। इस दिशा में विश्व के सभी देशों के राष्ट्राध्यक्षों को मिलकर समय रहते शीघ्र निर्णय लेकर विश्वव्यापी समझदारी दिखानी चाहिए।
‘जय जगत’ अर्थात वसुधैव कुटुम्बकम्
(29 अगस्त – अन्तर्राष्ट्रीय परमाणु परीक्षण विरोधी दिवस पर विशेष
लेखक शिक्षाविद् एवं सिटी मोन्टेसरी स्कूल, लखनऊ के संस्थापक-प्रबन्धक हैं।)