इनमें से मान लेंगे एक भी बात तो कभी नजदीक नहीं आएगी गम की काली छाया
खुशी एक खास स्टेट ऑफ माइंड यानी दिमाग की एक खास दशा है। इसका बाहरी चीजों से कोई लेना-देना नहीं है।
यह अपनी परिस्थितियों को समझने का तरीका है। हमें इस बात को समझना होगा कि हमारे पास जो है, उसकी हम कितनी कद्र कर रहे हैं और जो हमारे पास नहीं है हम उसके लिए कितने फिक्रमंद हैं। कभी सोचकर देखिए, आखिर हमारी संतुष्टि की मूल वजह क्या है?
कहीं न कहीं यह तुलना करने की हमारी आदत में छुपी है। जब हम आज की परिस्थितियों से बीत चुके कल की परिस्थितियों के दुखों और परेशानियों से तुलना करते हैं तो हम खुश हो जाते हैं।
हालांकि इस तरह की खुशी स्थायी नहीं होती। कुछ दिनों बाद इस वक्त की अच्छी परिस्थितियां भी नॉर्मल मालूम पडऩे लगती हैं। हालांकि हमेशा खुश रहना मुमकिन है लेकिन इस स्थिति को हासिल कर पाना आसान नहीं है।
बौद्ध धर्म में इसके कई स्तर हैं। सही मायने में धन-दौलत, सांसारिक संतुष्टि, अध्यात्म और परमज्ञान के साथ संतुलन बनाने पर ही खुशियों की चाबी मिल सकती है।
अब अगर व्यावहारिकता की बात करें और किसी भी धर्म और अध्यात्म को किनारे रख कर बात करें तो हमारी दिमागी स्थिति ही हमारी खुशी में अहम योगदान देती है।