राष्ट्रीय
इन 5 वजहों से समय से पहले आम बजट नहीं चाहता विपक्ष
पांच राज्यों में चुनावों की घोषणा होते ही केंद्र सरकार का 1 फरवरी को पेश होने वाला आम बजट विपक्षी दलों के निशाने पर आ गया है। कांग्रेस, तृणमूल जैसे विपक्षी दलों के साथ केंद्र सरकार में एनडीए के सहयोगी शिवसेना ने भी एक फरवरी को आम बजट पेश करने पर आपत्ति जताई है।
ऐसे में बड़ा सवाल है कि एक फरवरी को आम बजट पेश करने को लेकर विपक्षी दलों में इतनी बेचैनी क्यों हैं? क्यों वो इस मुद्दे पर सरकार के साथ साथ चुनाव आयोग को भी घेरने के लिए तैयार बैठे हैं। आइए डालते हैं ऐसे ही पांच कारणों पर एक निगाह।
किसानों की कर्ज माफी का मुद्दा
राजनीतिक हलकों में पिछले कुछ समय से किसानों की कर्ज माफी का मुद्दा लगातार छाया हुआ है। कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी और उनकी पार्टी लगातार इस मुद्दे पर सरकार को घेरती रही है। नोटबंदी के दौरान भी राहुल गांधी लगातार सरकार से किसानों का कर्ज माफ करने की मांग करते रहे थे।
उत्तर भारत में किसानों की तादाद और समस्याओं को देखते हुए केंद्र सरकार ने भी किसानों के कर्ज माफी की तैयारी कर ली थी लेकिन विपक्ष द्वारा इस मुद्दे का क्रेडिट ले उडने की आशंका से सरकार ने ऐन टाइम पर अपने कदम पीछे खींच लिए। अब कांग्रेस समेत तमाम विपक्ष को आशंका है कि सरकार बजट के दौरान इसकी घोषणा कर बड़ा दांव खेल सकती है।
किसानों की कर्ज माफी का प्रयोग कर पहले भी कई सरकारें सत्ता में लौट चुकी हैं खुद कांग्रेस नीत यूपीए 2009 के लोकसभा चुनावों से पूर्व किसानों का कर्ज माफ कर दोबारा सत्ता का मजा चख चुकी है। इसलिए विपक्ष नहीं चाहता कि केंद्र सरकार को भी पांच राज्यों के चुनावों से पहले कोई ऐसा मौका दिया जाए जिससे वह इन पांच राज्यों के बड़े वोटर यानि किसानों को सीधे सीधे अपने पक्ष में कर सके।
किसानों की कर्ज माफी का प्रयोग कर पहले भी कई सरकारें सत्ता में लौट चुकी हैं खुद कांग्रेस नीत यूपीए 2009 के लोकसभा चुनावों से पूर्व किसानों का कर्ज माफ कर दोबारा सत्ता का मजा चख चुकी है। इसलिए विपक्ष नहीं चाहता कि केंद्र सरकार को भी पांच राज्यों के चुनावों से पहले कोई ऐसा मौका दिया जाए जिससे वह इन पांच राज्यों के बड़े वोटर यानि किसानों को सीधे सीधे अपने पक्ष में कर सके।
आम जनता को लुभाने के लिए टैक्स में राहत
विपक्ष की एक आशंका ये भी है कि नोटबंदी को लेकर देशभर में जिस तरह से असमंजस का माहौल बना है वैसे में मध्यमवर्ग को लुभाने के लिए सरकार टैक्स में छूट जैसी बड़ी घोषणा भी कर सकती है। जिसकी लंबे समय से मध्यमवर्ग की ओर से मांग की जाती रही है। ऐसे में सरकार का यह कदम सीधे सीधे मध्यम वर्ग के बड़े वोट बैंक पर असर डाल सकता है।
सरकार के लिए इसमें बड़ी दिक्कत इसलिए भी नहीं आने वाली है कि नोटबंदी के बाद उसका खजाना भरा हुआ है। जानकारों की मानें तो सरकार टैक्स छूट की सीमा को ढाई लाख से बढ़ाकर 3.5 लाख तक कर सकती है। अगर ऐसा होता है तो मध्यम वर्ग के लिए यह बड़ा राहतभरा कदम होगा। ऐसे में जनता की सहानभूति सरकार के साथ होगी और विपक्ष इस मुद्दे पर खाली हाथ रह जाएगा।
सरकार के लिए इसमें बड़ी दिक्कत इसलिए भी नहीं आने वाली है कि नोटबंदी के बाद उसका खजाना भरा हुआ है। जानकारों की मानें तो सरकार टैक्स छूट की सीमा को ढाई लाख से बढ़ाकर 3.5 लाख तक कर सकती है। अगर ऐसा होता है तो मध्यम वर्ग के लिए यह बड़ा राहतभरा कदम होगा। ऐसे में जनता की सहानभूति सरकार के साथ होगी और विपक्ष इस मुद्दे पर खाली हाथ रह जाएगा।