नई दिल्ली: कोरोना संकट में अस्पतालों के महंगे बिल ने मरीजों के परिजनों को इस कदर परेशान किया है कि पहले जहां वो अपनों के लिए अस्पताल के चक्कर काटते थे. वहीं, अब अस्पताल के बिल को लेकर बैंक के चक्कर काटने पड़ रहे हैं. गांधीनगर के रहने वाले राजन भलाणी की आंखें आज भी नम हो जाती है, जब वो अपने पिता को याद कर उनकी तस्वीर को देखते हैं.
दरअसल राजन भलाणी के पिता जयेश भलाणी की मौत कोरोना की वजह से हुई थी. 40 दिन गांधीनगर के दो अलग-अलग अस्पताल में रहने के बाद वो कोरोना से जंग हार गए. इलाज के बाद अस्पताल ने जो बिल दिया उसे देख खुद राजन के पैरो तले ज़मीन खिसक गयी.
राजन के पिता करीब 10 दिनों तक वेंटिलेटर पर रहे और अस्पताल ने उन्हें वेंटिलेटर के लिए हर रोज 50 हज़ार चार्ज किया. दवाई और इन्जेक्शन के चार्ज के नाम पर प्रतिदिन 75 हज़ार के आसपास वसूला. अस्पताल का टोटल बिल 18 लाख रुपये का हुआ जबकि इंजेक्शन और दवाई बहार से लाने का बिल 15 लाख.
राजन भालाणी सबसे ज़्यादा परेशान इस बात से थे कि अस्पताल हर रोज उन्हें बिल थमा रहा था. यहां तक कि रेमडेसिविर, टोसिलोजुम्बे, ब्लड प्लाजमा, ये सारी चीज़ें का इंतेजाम उन्होंने पिता को बचाने के लिए किया. जिसके लिये उन्होंने बैंक से खुद के ओवरड्राफ्ट पर करीब 35 लाख का लोन लिया ताकी इलाज के लिए पैसे उधार देने वालों का कर्ज चुकाया जा सके.
आज हालात ये है कि जो भी तनख्वाह आती है वो सीधा ईएमआई में चली जाती है. राजन अब यही चाहते है कि सरकार कोई ऐसी पॉलिसी बनाए जिससे अस्पताल मरीज़ों से इतने पैसे ना वसूल करे.