इवीएम घपला : चुनाव की जरूरत ही क्या है?
जिस देश-प्रदेश में सत्ताधारी दल के पक्ष में वोट उगलने वाली इलेक्ट्रानिक वोटिंग मशीनें (इवीएम) हों वहां के मतदाताओं का ठगा रह जाना और यह व्यंग्यबाण छोड़ना कि ‘जब वोट सत्ताधारी पार्टी को ही जाना है तो फिर चुनाव कराने की जरूरत ही क्या है? बगैर चुनाव के ही यह घोषित कर दिया जाना चाहिए सत्ताधारी दल का उम्मीदवार विजयी रहा।’ जी हां, हम चर्चा कर रहे हैं देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में चल रहे नगर निकाय चुनाव की। राज्य में पहले चरण का मतदान 22 नवम्बर को हो चुका है। दूसरे चरण का मतदान 26 नवम्बर को होगा। इससे पूर्व 22 नवम्बर को हुए मतदान के बाद इवीएम की गड़बड़ियों का शोर पूरे देश-प्रदेश में गूंज रहा है। खास बात यह है कि जब शोर की गूंज राज्य निर्वाचन आयोग की कानों तक पहुंची तो इस मुद्दे पर उसे स्पष्टीकरण देना पड़ा। उत्तर प्रदेश में नगर निकाय चुनाव के पहले चरण में ईवीएम में कथित गड़बड़ी के मामले को राज्य निर्वाचन आयोग ने महज़ अफ़वाह बताया है। जबकि राजनीतिक दलों और सोशल मीडिया में इसे लेकर हो-हल्ला मचा हुआ है। खास बात यह है कि राज्य निर्वाचन आयोग का स्पष्टीकरण यह सिद्ध करता है कि जरूर दाल में काला है। वरना हल्के-फुल्के मामलों पर निर्वाचन आयोग की जुबां थोड़े हिलने वाली है।
आपको बता दें कि उत्तर प्रदेश राज्य निर्वाचन आयुक्त एसके अग्रवाल ने पहले चरण के मतदान के दिन 22 नवम्बर की शाम को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में स्वीकारा कि कुछ जगह मशीनों में तकनीकी ख़ामियां ज़रूर थीं जिन्हें तत्काल बदल दिया गया, लेकिन सत्ताधारी पार्टी को ही वोट जाने संबंधी शिकायतों के बारे में कानपुर और मेरठ के ज़िलाधिकारियों से रिपोर्ट मंगाई गई है। रिपोर्ट आने के बाद ही कोई कार्रवाई की जाएगी। उनका कहना था कि मशीनें कई स्तर पर जांच के बाद ही भेजी जाती हैं। उसके बाद भी कई मशीनें इसलिए रिज़र्व में रखी जाती हैं ताकि गड़बड़ी की स्थिति में उन्हें तत्काल बदला जा सके। निकाय चुनाव के पहले चरण में 22 नवम्बर को 24 ज़िलों के 5 नगर निगम, 71 नगर पालिका परिषद और 154 नगर पंचायतों के लिए वोट डाले गए। मतदान के बाद चुनाव आयोग ने मतदान शांतिपूर्ण होने की बात कही, लेकिन मतदान के दिन सुबह से ही कई जगहों से विवाद और हिंसक झड़पों की ख़बरें आने लगीं थी। सबसे पहले विवाद कानपुर में हुआ जब कई मतदान केंद्रों पर ईवीएम में ख़राबी को लेकर मतदाताओं ने आपत्ति जताई। विवाद इतना बढ़ा कि पुलिस को कई जगह बल प्रयोग करना पड़ा। मतदाताओं की शिकायत इस बात पर थी कि वो वोट किसी भी उम्मीदवार को दे रहे हैं लेकिन उसके साथ भाजपा उम्मीदवार के सामने भी लाइट जल रही थी। मेरठ समेत कई दूसरी जगहों से भी इस तरह की शिकायतें आने लगीं।
राज्य निर्वाचन आयुक्त ने इस मामले में भले ही कानपुर और मेरठ के डीएम से रिपोर्ट मांगी है, लेकिन निर्वाचन आयोग के ही एक वरिष्ठ अधिकारी जेपी सिंह का कहना था कि ये सब सिर्फ़ अफ़वाह है। वहीं राजनीतिक दलों ने ईवीएम में ख़राबी को गंभीर मानते हुए चुनाव आयोग से शिकायत करने की बात कही है। कांग्रेस प्रवक्ता वीरेंद्र मदान कहते हैं कि सरकार ये चुनाव जीतने के लिए सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग कर रही है। सपा और बसपा ने भी ईवीएम में ख़राबी को लेकर सरकार को आड़े हाथों लिया है। लेकिन भाजपा का कहना है कि ये आरोप विपक्षी दल हताशा में लगा रहे हैं। उन्नाव में तो बीजेपी सांसद साक्षी महराज और कांग्रेस की पूर्व सांसद अनु टंडन भी मतदाता सूची में अपना नाम ढूंढ़ते रहे और अंत में दोनों को बिना मतदान किए ही लौटना पड़ा। उधर, दिल्ली में कांग्रेस प्रवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने 23 नवम्बर को प्रेस कांफ्रेंस में बीजेपी पर देश में लोकतंत्र को मजबूत करने वाली हर संस्था को कमजोर करने का आरोप लगाया है। उन्होंने कहा कि रिश्वतखोरी, खरीद-फरोख्त, प्रलोभन और लालच बीजेपी की कार्यशैली का हिस्सा है। इन सबके बिना बीजेपी चल ही नहीं सकती। ईवीएम में गड़बड़ी का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि 22 नवंबर को यूपी के निकाय चुनाव के पहले चरण में कई जगहों पर ईवीएम मशीनों में गड़बड़ी पाई गई। इनमें से कुछ मशीनों पर तो कोई भी बटन दबाने पर वोट बीजेपी को जाने की बात सामने आई। सिंघवी ने कहा कि गुजरात में इस तरह की गड़बड़ी को लेकर किसी भी भ्रम की स्थिति से निपटने को चुनाव आयोग को सुप्रीम कोर्ट के किसी कार्यरत जज या किसी सेवानिवृत्त जज से सभी ईवीएम की जांच करानी चाहिए।
उल्लेखनीय है कि इसी वर्ष अप्रैल माह में चुनाव आयोग ने इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन में वोट डालने के बाद काग़ज़ की पर्ची निकलने की व्यवस्था यानी (वीवीपीएटी) पर मध्य प्रदेश के मुख्य निर्वाचन अधिकारी सलिना सिंह को तलब किया था। दरअसल, मध्य प्रदेश की मुख्य निर्वाचन अधिकारी सलिना सिंह ने दो विधानसभाओं के लिए 9 अप्रैल को होने वाले उपचुनाव में इस्तेमाल होने वाली मशीनों का डेमॉन्सट्रेशन रखा था। डेमॉन्सट्रेशन के दौरान दो अलग अलग बटन दबाने पर भाजपा के चुनाव निशान कमल की ही पर्ची निकली थी। तबसे ही ईवीएम के साथ वोटर वेरीफ़ाइएबल पेपर ऑडिट ट्रेल (वीवीपैट) भी शक के घेरे में है। इस बाबत वहां मौजूद पत्रकारों ने यह मामला उठाया तो सलिना सिंह ने कहा कि यह ख़बर छपनी नहीं चाहिए, वर्ना उन्हें थाने में बिठा दिया जाएगा। कांग्रेस ने तुरंत इसे मुद्दा बनाया और चुनाव आयोग में होने वाली सियासी दलों की बैठक का बहिष्कार कर दिया। इसके बाद बसपा ने भी बैठक का बहिष्कार किया। चुनाव आयोग ने इस घटना का संज्ञान लेते हुए मुख्य चुनाव अधिकारी को तलब किया था। तब कांग्रेस के मध्य प्रदेश अध्यक्ष अरुण यादव ने भी चुनाव आयोग से सूबे में ईवीएम गड़बड़ी की आशंका जताते हुए मतपत्रों से चुनाव कराने की मांग की थी। कहा कि अगर मुख्य चुनाव पदाधिकारी के सामने मशीन कमल उगल रही है तो चुनाव में क्या होगा। इससे पूर्व यूपी में विधानसभा चुनाव हारने के बाद बसपा प्रमुख मायावती व दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल ने भी ईवीएम पर सवाल उठाए थे। भाजपा नेता किरीट सोमैया व सुब्रमण्यम स्वामी भी ईवीएम से छेड़छाड़ की आशंका जता चुके हैं।
दिलचस्प यह है कि भाजपा की सहयोगी पार्टी शिव सेना ने भी उत्तर प्रदेश निकाय चुनाव में ईवीएम में कथित गड़बड़ियों की खबरों को लेकर बीजेपी पर निशाना साधा है। शिवसेना ने 23 नवम्बर सामना के संपादकीय में लिखा है कि यूपी निकाय चुनाव में कई जगहों पर कोई भी बटन दबाने पर वोट बीजेपी को ही गया है। आमतौर पर होता तो यह है कि मतदान के बाद क्षेत्र में चाय पर चर्चाएं यह होती थी कि किस सीट पर किसका कब्जा होगा, कौन मेयर बनेगा। लेकिन यूपी में चर्चाओं का विषय कुछ और ही था। लोगों को मतदाताओं के रुख से ज्यादा ईवीएम के रुख का डर सता रहा था। ईवीएम इन दिनों सिर्फ अपने मिजाज से नतीजे उगलती है, मतदाताओं का तो कोई रोल ही नहीं रह गया है, इसलिए मेयर तो वही बनेगा जिसे ईवीएम ‘एवमस्तु’ कहेगी। एक दिसबंर को आने वाले नतीजों का असर गुजरात चुनाव पर पड़ेगा, इसलिए डर्टी पॉलीटिक्स तो करनी पड़ेगी। सामना में लिखा है कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जब ईवीएम से वोटिंग के उपरांत बाहर आकर ऐसा दावा करते है जैसे भगवान से आशीर्वाद लेकर लौटे हों और जनता को दावे के साथ कहते है, जितेगी तो बीजेपी ही। योगी आत्मविश्वास भी यह चीख-चीख कर रहा है कि जब सबकुछ मालूम ही है तो चुनाव कराने की जरूरत क्या है। वोटर यह कहते हुए अपना गुस्सा निकाल रहा है कि भाजपा को चाहिए कि बिना चुनाव कराए ही वह घोषित कर दे कि भाजपा प्रत्याशी चुनाव जीत गया।