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इसराइल और फिलिस्तीन के संघर्ष की वजह है ‘नकबा’!


येरुशलम : इसराइल में 14 मई को राष्ट्रीय अवकाश होता है, 70 साल पहले इसी दिन एक नए राष्ट्र की स्थापना हुई थी और उधर फिलिस्तीनियों की त्रासदी की शुरूआत भी उसी दिन से हो गई थी। फिलिस्तीनी लोग इस घटना को 14 की बजाय 15 मई को याद करते हैं, वह इसे साल का सबसे दुखद दिन मानते हैं और 15 मई को वो ‘नकबा’ का नाम देते हैं, नकबा का अर्थ है ‘विनाश’। बीते बीस साल में 15 मई के दिन प्रदर्शन होते रहे हैं, इस साल भी हो रहे हैं। अंतर यह है कि इस बार ये पहले से कहीं अधिक हिंसक हो सकते हैं क्योंकि सोमवार को यरूशलम में अमरीकी दूतावास खोले जाने का विरोध कर रहे 55 फिलिस्तीनी इसराइली सेना की गोलियों से मारे गए हैं। यरूशलम का स्टेट्स इसराइल और फिलिस्तीन के बीच हमेशा से ही विवाद और संघर्ष का मुद्दा रहा है क्योंकि इसराइल इसे अपना ‘अविभाज्य राजधानी’ मानता है और फ़लस्तीनी इसे अपने भविष्य के राष्ट्र का मुख्यालय बनाने की ख़्वाहिश रखते हैं।
नकबा यानि विनाश के दिन की शुरुआत 1998 में फिलिस्तीनी क्षेत्र के तब के राष्ट्रपति यासिर अराफ़ात ने की थी, इस दिन फिलिस्तीन में लोग 14 मई 1948 के दिन इसराइल के गठन के बाद लाखों फिलिस्तीनियों के बेघर बार होने की घटना का दुख मनाते हैं। 14 मई 1948 के अगले दिन साढ़े सात लाख फिलिस्तीनी, इसराइली सेना की वजह से घर छोड़ कर भागे या भगाए गए थे। कइयों ने ख़ाली हाथ ही अपना घरबार छोड़ दिया था, कुछ घरों पर ताला लगाकर भाग निकले, यही चाबियां बाद में इस दिन के प्रतीक के रूप में सहेज कर रखी गईं। वहीँ इसराइल दावा है कि फिलिस्तीनी लोग उनकी वजह से नहीं बल्कि मिस्र, जॉर्डन, सीरिया और इराक़ के हमले की वजह से भागे थे क्योंकि इन देशों की सेनाएं यहूदी जीत को रोकना चाहती थीं।
बहरहाल हर साल 15 मई को फिलिस्तीनी इसराइल के साथ हुए संघर्षों को याद करते हैं और उनकी राय में नकबा 15 मई 1948 को ही ख़त्म नहीं हुआ था, वो तब से लेकर अब तक इसराइल के साथ तनावग्रस्त संबंधों को नकबा का हिस्सा मानते हैं। 1956 में स्वेज़ नहर पर नियंत्रण को लेकर मिस्र और इसराइल एक बार फिर आमने-सामने थे, हालांकि ये मसला मैदान-ए-जंग में नहीं बल्कि इसराइल, फ़्रांस और इंग्लैंड पर अंतरराष्ट्रीय दवाब से सुलझा।

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