इस खुनी दरवाज़े से हर समय टपकता था खून
अटेर का क़िला, एक विशाल – शानदार, मध्ययुगीन किला है। यह किला चंबल नदी के उत्तरी किनारे पर स्थित है जो अपनी महिमा के साथ – साथ अपनी भव्यता के लिए विख्यात रहा है अटेर का क़िला चम्बल नदी के किनारे एक ऊंचे स्थान पर स्थित है।
महाभारत में जिस देवगिरि पहाड़ी का उल्लेख आता है यह किला उसी पहाड़ी पर स्तिथ है। इसका मूल नाम देवगिरि दुर्ग है। इस किले का निर्माण भदौरिया राजा बदनसिंह ने 1664 ई. में शुरू करवाया था। भदौरिया राजाओं के नाम पर ही भिंड क्षेत्र को पहले ‘बधवार’ कहा जाता था। गहरी चंबल नदी की घाटी में स्थित यह क़िला भिंड ज़िले से 35 कि.मी. पश्चिम में स्थित है।
चंबल नदी के किनारे बना यह दुर्ग भदावर राजाओं के गौरवशाली इतिहास की कहानी बयां करता है। भदावर राजाओं के इतिहास में इस क़िले का बहुत महत्व है। यह हिन्दू और मुग़ल स्थापत्य कला का बेजोड़ नमूना है।
‘खूनी दरवाज़ा’, ‘बदन सिंह का महल’, ‘हथियापोर’, ‘राजा का बंगला’, ‘रानी का बंगला’ और ‘बारह खंबा महल’ इस क़िले के मुख्य आकर्षण हैं। लेकिन इस महल की सबसे चर्चित चीज़ है खुनी दरवाज़ा। भदावर राजाओं की शौर्यगाथाओं के प्रतीक लाल दरवाजे से ऐतिहासिक काल में खून टपकता था, इस खून से तिलक करने के बाद ही गुप्तचर राजा से मिल पाते थे।