काशीपुर के गिरीताल निवासी डॉ. संतोष श्रीवास्तव ने जब बीमारी की हालत में ससुर को देखा तो उनकी सोच ही बदल गई। अब वह गरीब मरीजों की सेवा को ही अपना कर्म मानते हैं।
काशीपुर: जब अमीर बनने की होड़ में लोग शॉर्टकट अपनाने से भी परहेज न करते हों, तब शहर के एक निजी अस्पताल का गरीब मरीजों के प्रति सेवा भाव समाज को सोचने के लिए मजबूर करता है। इस अस्पताल में गरीब मरीजों का निश्शुल्क डायलिसिस किया जाता है। ऐसा भी कह सकते हैं कि यहां सेवा का भाव मरीजों की धमनियों में रक्त बनकर बहता है।
इन्सान में सेवा और संवेदना का भाव हो तो धन इसमें कहीं आड़े नहीं आता। मदद में पल्लू से कितना खर्च हो रहा है, इसका भी हिसाब-किताब नहीं रखा जाता। दरअसल, जिंदगी में कभी-कभार ऐसी घटना हो जाती है, जिससे खुद की सोच के साथ ही दूसरों की जिंदगी भी बदल जाती है।
गिरीताल निवासी डॉ. संतोष श्रीवास्तव की सोच भी ऐसे ही बदली। उन्होंने 2001 में रूस से एमबीबीएस की पढ़ाई पूरी की और इसके बाद डॉ. अरुण कुमार निछारिया के साथ छह साल तक काम किया। यहीं से उन्हें गरीबों की मदद करने की प्रेरणा मिली।
डॉ. संतोष बताते हैं कि 12 साल पहले उनके ससुर योगेश सक्सेना के गुर्दे में दिक्कत हो गई थी। दो साल तक डायलिसिस के लिए बहुत परेशान रहे। ससुर की इस पीड़ा ने उनको झकझोर दिया। इसी दौरान कुछ गरीब मरीजों का हाल देखा तो जिंदगी में कुछ कर गुजरने का जज्बा जागा।
आम लोगों को सस्ता इलाज देने के साथ ही गरीबों का निश्शुल्क इलाज करने की ठान ली और फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। वर्ष 2008 में उन्होंने ए टू जेड डायग्नोस्टिक सेंटर खोला और 2015 में एमपी मेमोरियल हॉस्पिटल की स्थापना की।
यहां उन मरीजों का निश्शुल्क डायलिसिस किया जाता है, जो आर्थिक रूप से कमजोर हैं। डॉ. संतोष कहते हैं कि डायलिसिस बेहद महंगी प्रक्रिया है। ऐसे में गरीबों की सेवा का माध्यम बनना मन को सुकून देता है।
उन्होंने बताया कि डायलिसिस पर एक बार में 1500 रुपये से पांच हजार रुपये तक खर्च आता है। हमारे अस्पताल में अब तक 200 डायलिसिस निश्शुल्क किए जा चुके हैं। हेल्थ केयर में मानवीय पहलू का अवश्य ध्यान रखा जाना चाहिए।