इस तरह पूजा और उपासना करके आर्थिक कष्ट का करें निवारण
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-प्राचीन ग्रंथों में शंख और कौड़ियों का लक्ष्मी संबंधित अनुष्ठान में विशिष्ट महत्व है। कौड़ी को देवी लक्ष्मी का सहोदर कहा गया है। 21 पीत कौड़ियां प्राप्त कर लें या श्वेत कौड़ियों को केसर व हल्दी मिश्रित घोल से पीत वर्ण प्रदान कर दें। उन्हें लक्ष्मी पूजन में शामिल करने के पश्चात लाल पोटली में बांधकर धन के साथ रखें। नित्य उस पोटली को धूप-गंध अर्पित करके लक्ष्मी और माया के बीज मंत्रों का जाप करते रहे। प्रचंड आर्थिक लाभ की भूमिका बनेगी, ऐसा मैं नहीं मान्यताएं कहती हैं।
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भद्रा सदैव अशुभ नहीं होती। यूं तो भद्रा में उत्सव, गृह प्रवेश, यात्रा, विवाह सहित कई प्रकार के शुभ कर्म निषिद्ध हैं, परंतु यज्ञ, विभाजन, वाद-विवाद, प्रतियोगिता, वैज्ञानिक, तकनीकी या तंत्र कार्य, मुकदमे व राजनैतिक प्रायोजनों में भद्रा को सफलता प्रदायक माना गया है। प्राचीन ग्रंथों में भद्रा को सूर्य की कन्या और शनि की बहन माना गया है। कहते हैं कि इनकी उग्र प्रकृति को शांत करने के लिए ब्रह्मा ने भद्रा को कालगणना यानि पंचाग के करण में स्थान दिया, जहां उसका नाम विष्टि भद्र या विष्टिकरण रखा गया।
प्रश्न: क्या दान पुण्य, पूजा और उपासना से आर्थिक कष्ट का निवारण संभव है? या ये सब काल्पनिक बातें हैं?
उत्तर: सद्गुरुश्री कहते हैं कि ध्यान और योग के माध्यम से स्वयं के अंदर प्रविष्ट होने की उस पद्धति का नाम उपासना है, जिसके माध्यम से आप अपना और अपनी आत्मा और स्वयं का वास्तविक बोध करके खुद को आंतरिक ऊर्जा और शक्ति प्रदान करने की दिशा में सक्रिय होते हैं। यह आध्यात्म का हिस्सा है। आप जिसे पूजा कह रही हैं, दरअसल वह प्राचीन कर्मकांड का एक हिस्सा मात्र हैं, जिसमें पुराने कर्मों पर तकनीकी रूप से नए सकारात्मक कर्मों की परत चढ़ाने का प्रयास किया जाता है। लेकिन कालांतर में इस पद्धति पर वक्त की धूल के साथ कई असत्य, अतार्किक, अवैज्ञानिक, अनावश्यक और व्यक्तिगत स्वार्थपरक कर्मों की तहें चढ़ गईं, जिससे इसकी गुणवत्ता और प्रामाणिकता में फर्क आ गया, और काफी हद तक वह भटक कर बेमानी हो गईं। लेकिन किसी विद्वान की सहायता से इसे आजमाने में कोई बुराई भी नहीं है। दान-पुण्य एक प्रकार का सकारात्मक कर्म है, जिससे किसी की सहायता ही होती है और अपना हर कर्म लौट कर स्वयं पर ही आता है। सनद रहे कि शुद्ध अंत:करण व स्वयं पर पूर्ण विश्वास से सही दिशा में अनवरत सटीक कर्म अवश्य ही आपकी आर्थिक स्थिति बदल सकता है।
प्रश्न: मेरी पत्नी मेरा कहा नहीं मानती। गृह क्लेश से बिखर गया हूं। कोई उपाय बताइए, जिससे जीवन बर्बाद होने से बच जाए।
उत्तर: सद्गुरुश्री कहते हैं कि आपकी राशि मकर और लग्न वृष है। आपके दांपत्य भाव में सूर्य बैठकर जहां वैवाहिक जीवन पर नकारात्मक असर डाल रहे हैं, वहीं पत्नी भाव का स्वामी मंगल लग्न में बैठकर आपको मांगलिक भी बना रहे हैं। यदि आपकी पत्नी मांगलिक न हुईं, तो यह योग भी पारिवारिक जीवन में मनमुटाव व तनाव के लिए जिम्मेदार है। ध्यान रहे, पति-पत्नी ही नहीं, किसी भी शय पर नियंत्रण की कामना या प्रयास सदैव दुःख ही प्रदान करते हैं। दांपत्य जीवन चाबुक या आदेश की कोई जगह नहीं है। पति-पत्नी के संबंधों में समझदारी और प्रेम पूर्ण आचरण जीवन को नृत्य बना सकते हैं। पति-पत्नी ही क्यों, संसार में किसी भी साझेदारी की सफलता के लिए लचीला व्यवहार अनिवार्य शर्त है। किसी से अपेक्षा अंत में कष्ट को ही जन्म देती है। रविवार को गुड़ व गेहूं का दान, मंगलवार को कुत्ते को गुड़ युक्त तंदूरी रोटी देने, नित्य सौंफ और शहद का सेवन लाभ प्रदान करेगा, ऐसा मैं नहीं ज्योतिष की पारंपरिक मान्यताएं कहती हैं।
उत्तर: सद्गुरुश्री कहते हैं कि आपकी राशि वृष और लग्न कर्क है। आपके पति भाव का स्वामी ग्रह विवाह में कुछ विलंब की चुगली कर रहा है। कर्म भाव में बुध विराजकर जहां आपको बुद्धिमान बना रहा है, वहीं लग्न में चंद्रमा के घर में केतु बैठकर आपको अपने स्वास्थ्य और वजन को लेकर चौकन्ना रहने का संकेत दे रहा है। षष्ठेश बृहस्पति के व्यय भाव में विराजने के कारण मैं आपको नियमित रूप से योगासन और वर्जिश की सलाह देता हूं। यूं तो पिछले कई वर्षों में आपको अनेक प्रस्ताव मिले होंगे, पर आपको शायद अनुकूल नहीं लगा होगा। आपके विवाह का मध्यम योग आरंभ हो गया है। 11 अगस्त, 2019 से विवाह का उत्तम योग शुरू होगा, जिसमें आपके परिणय की पूर्ण संभावना है।
प्रश्न: पारिवारिक कलह से त्रस्त हूं। क्या इसका कारण रसोई में मंदिर है?
उत्तर: सद्गुरुश्री कहते हैं कि वास्तु के नियम रसोईघर में मंदिर को उचित नहीं मानते। ये स्थिति निश्चित रूप से पारिवारिक मनमुटाव का कारक बनती है। आपने अपने घर की दिशाओं का उल्लेख नहीं किया है। यदि उत्तर-पूर्व में रसोई हो या दक्षिण-पूर्व में बाथरूम हो, तो यह स्थिति भी गृह क्लेश की वजह बनती है।