जोशीमठ स्थित मंदिर में मौजूद नृसिंह भगवान की मूर्ति की दाहिनी भुजा के कारण बदरीनाथ धाम लुप्त हो जाएगा।
प्राचीन मान्यता है कि जब आठवीं वीं शताब्दी में 12 साल की उम्र में आदि गुरु शंकराचार्य हिमालय क्षेत्र की ओर आए तो उन्होंने बदरीनाथ क्षेत्र में हिंदू धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए राम कथाएं, रामलीलाएं और अन्य धार्मिक आयोजन कराए।
शंकराचार्य ने लोगों को श्रृष्टि की रचना से लेकर देव उत्पत्ति के बारे में बताया। इस दौरान शंकराचार्य ने जोशीमठ में विष्णु के अवतार नृसिंह भगवान की प्रतिमा स्थापित की। जिसकी दाहिनी भुजा पतली है। जो धीरे-धीरे और अधिक पतली होती जा रही है।
केदारखंड के सनत कुमार संहिता में कहा गया है कि जब भगवान नृसिंह की मूर्ति से उनका हाथ टूट कर गिर जाएगा तो विष्णुप्रयाग के समीप पटमिला नामक स्थान पर स्थित जय व विजय नाम के पहाड़ आपस में मिल जाएंगे और बदरीनाथ के दर्शन नहीं हो पाएंगे।
तब जोशीमठ के तपोवन क्षेत्र में स्थित भविष्य बदरी मंदिर में भगवान बदरीनाथ के दर्शन होंगे। केदारखंड के सनतकुमार संहिता में भी इसका उल्लेख मिलता है।