इस मंदिर में नहीं लिया जाता है दान, न ही चढ़ता है चढ़ावा, तो कैसे होता है मंदिर का प्रबंधन
सामान्य तौर पर हर मंदिर में दानपेटी होती है और श्रद्धालु अपनी स्वेच्छा से रुपए-पैसे, गहने-आभूषण आदि चढ़ावे में देकर अपनी श्रद्धा और विश्वास को तुष्ट करते हैं। भगवान वेंकटेश्वर बालाजी के मंदिरों में तो यह खास तौर पर होता है। यहां भक्तों से यह अपेक्षा की जाती है कि वे अधिक-से-अधिक धन का दान दें।
लेकिन आंध्र प्रदेश की राजधानी हैदराबाद में भगवान वेंकटेश्वर बालाजी का एक ऐसा मंदिर है, जहां पर दान नहीं लिया जाता है। यहां तक कि मंदिर के प्रांगण में कोई दानपेटी भी नहीं है। यह मंदिर पांच हजार वर्ष पुराना है, जो हैदराबाद के उस्मान झील के पास स्थित है और चिलकुर बालाजी मंदिर नाम से जाना जाता है।
इस मंदिर में नहीं है वीआईपी दर्शन की व्यवस्था
चिलकुर बालाजी एक ऐसा मंदिर है जहां पर वीआईपी लोगों के लिए कोई जगह नहीं है। यहां सभी को बराबर समझा जाता है। इसलिए अन्य मंदिरों की तरह यहां कोई स्पेशल एंट्री गेट नहीं है। यह जानकर आश्चर्य होता है, लेकिन लेकिन यह सच है।
यह मंदिर हैदराबाद का सबसे पुराना मंदिर माना जाता है। मान्यता है कि जो श्रद्धालु आंध्र प्रदेश में ही स्थित तिरुपति बालाजी के दर्शन के लिए नहीं जा पाते हैं, वे यहां के चिलकुर बालाजी के दर्शनमात्र से तिरुपति बालाजी के बराबर का फल पा लेते हैं। यही कारण है कि यहां प्रति वर्ष लाखों की तादाद में श्रद्धालु और पर्यटक आते हैं।
ऐसे होता है मंदिर का रखरखाव और प्रबंधन
सवाल यह उठता है कि इस मंदिर का रखरखाव और प्रबंधन के लिए धन की व्यवस्था कैसे होती है? दरअसल यह खर्च यहां आनेवाले भक्तों और पर्यटकों से ली गई पार्किंग फीस से जुटाया जाता है। मालूम हो कि भारत में इस मंदिर के आलावा गुजरात के राजकोट में जलाराम मंदिर में भी कोई चढ़ावा या दान नहीं लिया जाता है।
लोगों की मान्यता है कि इस मंदिर में स्थापित भगवान वेंकटेश्वर की प्रतिमा पृथ्वी से स्वयं निकली है अर्थात स्वयंभू है, जो भूदेवी और श्रीदेवी के साथ विराजमान हैं।