कानपुर। उत्तर प्रदेश के औद्यागिक नगर कानपुर में भगवान जगन्नाथ का अतिप्राचीन मंदिर सदियों से मानसून की सटीक भविष्यवाणी के लिए आसपास के क्षेत्रों में विख्यात है। जिले में भीतरगांव विकास खंड मुख्यालय के बेहटा गांव में स्थित मंदिर की छत से पानी की बूंद टपकने से क्षेत्रीय किसान समझ जाते हैं कि मानसून के बादल नजदीक ही हैं।
चिलचिलाती गर्मी के बीच मानसून आने से करीब एक सप्ताह पहले मंदिर की छत से पानी टपकना शुरू हो जाता है मगर वर्षा शुरू होने के साथ छत का अंदरूनी भाग पूरी तरह सूख जाता है। पुरातत्व विभाग ने मंदिर के इतिहास को लेकर अब तक तमाम सर्वेक्षण किए हैं लेकिन जीर्ण हालत के मंदिर की आयु के बारे में जानकारी नहीं मिल सकी है।
पुरातत्व वैज्ञानिकों के अनुसार मंदिर का अंतिम बार जीर्णोद्धार 11वीं सदी के आसपास प्रतीत होता है। बौद्ध मठ जैसे आकार वाले मंदिर की दीवारें करीब 14 फीट मोटी हैं। मंदिर में भगवान जगन्नाथ, बलदाऊ और सुभद्रा की काले चिकने पत्थरों की मूर्तियां विराजमान हैं।
इसके अलावा मंदिर प्रांगण में सूर्य और पद्मनाभम की भी मूर्तियां हैं। मंदिर के बाहर मोर का निशान और चक्र बने होने से चक्रवर्ती सम्राट हर्षवर्धन के काल में मंदिर के निर्माण का अंदाज लगाया जाता है। मंदिर के पुजारी दिनेश शुक्ल ने बताया कि मंदिर की आयु और पानी टपकने की जांच करने यहां कई बार पुरातत्व विभाग के वैज्ञानिक आए मगर न तो मंदिर के वास्तविक निर्माण का समय जान पाए और न ही बारिश से पहले पानी टपकने की पहेली सुलझा पाए।
मंदिर में वर्षा की बूंद जितनी मोटाई में गिरती हैं, बरसात भी उसी तरह की होती है। मंदिर में पानी की बूंद टपकते ही किसान हल-बैल लेकर खेतों में पहुंच जाते हैं। मंदिर जीर्णशीर्ण हालत में है। यहां आमतौर पर इलाके के लोग ही दर्शन करने आते हैं।