
इस दुनिया में हर सदी में कोई न कोई शक्स ऐसा पैदा होता है, जो आने वाली सभी पीढ़ियों के लिए एक मिसाल बना जाता है. वहीँ आज के इस आर्टिकल में हम आपको एक ऐसी ही महान शक्सियत से रूबरू करवाने जा रहे हैं, जिसको भारत और बाकी अन्य देश आज भी बुला नहीं पाएं हैं. दरअसल, आज हम बात करने वाले हैं मार्कस टुलियस सिसरो की. मार्कस टुलियस सिसरो जुलियस सीजर और पोम्पेइ के वक्त का राजनीतिज्ञ, महान वक्ता, वकील और दार्शनिक था. एक रिपोर्ट के अनुसार सिसरो को अपने आप को राजनीतिज्ञ कहलवाना काफी पसंद था. जबकि, लोग उसको एक वक्ता और गद्याकार कह कर बुलाते थे. आपकी जानकारी के लिए हम आपको बता दें कि सिसरो को राजनीतिक पहचान उसके वक्ता बनने के बाद ही मिली थी.
आपको ये जानकर हैरानी होगी कि भारतीय प्रतिनिधि सोनिया गाँधी की तरह ही सिसरो को भी विदेशी और बाहरी नेता कहा जाता था. भारत देश में जब सोनिया गांधी ने प्रधानमंत्री की रेस में हिस्सा लिया था, तो उनके साथ भी सिसरो जैसा ही हाल हुआ था. मिली जानकारी के अनुसार सोनिया गांधी की तरह ही मार्क्स सिसरो भी इटली का रहने वाला था. भले ही वह रोम के चुनाव के लिए काउंसलिंग कर रहा था परंतु उस समय रोम शहर की इटली से अलग आइडेंटिटी थी. आपको हम बता दें कि सिसरो इस शहर से बाहर लगभग 100 किलोमीटर दूर बसे अपरनियम नामक एक कस्बे से आया करता था. इटली का रहने के कारण उसका रोम राजनीति पर कोई भी दबदबा नहीं था. हालांकि उसने जिस मुकाम को हासिल किया, उस तक पहुंचना हास्यास्पद था परंतु फिर भी उसके शब्दों के पकड़ के चलते ही वह इस मुकाम तक पहुंच गया. इन सब होने के बावजूद भी सिसरो ने रोम का इलेक्शन जीतकर रोम को अपना दायां हाथ बनाकर रखा. सिसरो के 2 प्रतिनिधियों में से एक उसका कट्टर दुश्मन बन चुका था जिसको बाद में देश निकाला दे दिया गया.
आपकी जानकारी के लिए हम आपको बता दें कि सिसरो ना केवल सोनिया गांधी से मेल खाता था बल्कि, वह भारत के मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जैसे सिद्धांतों को ही फॉलो करता था. मिली जानकारी के अनुसार सिसरो को रोमन साम्राज्य का अंतिम “न्यूमैन” कहा जाता. न्यूमैन से मतलब यह था कि जो अपने राज्य से परिवार से ना होकर भी सर्वोच्च पदों की सीढ़ियां चढ़ चुका हो. सिसरो का परिवार काफी अमीर था परंतु इसके बावजूद भी उसका राजनीति पर कोई दबदबा नहीं था.
एक समय में लैटिन भाषा को प्रमुख भाषा का दर्जा दिया जाता था और लगभग सभी कविताएं इसी भाषा में लिखी जाती थी. महान कवि कुलीन भी इसी भाषा में कविताएं लिखते थे. आपकी जानकारी के लिए हम आपको बता दे लैटिन भाषा यूरोप देश की ही पहचान थी. इसके इलावा सिसरो ने इस भाषा में कई प्रकार के प्रोज़ लिखें. चलिए एक नजर डालते हैं सिसरो की लिखी गई लाइनों की तरफ़…इंसान अपने सुख को भूल जाता है और दुख को याद रखता है.
जैसे किताबों के बिना कमरा है वैसे ही आत्मा के बिना शरीर है.
यदि आपके पास एक बगीचा और एक किताबों की लाइब्रेरी है तो आपके पास आपकी जरूरत का सब कुछ है.
बुरा वक्त चल रहा है, अब बच्चे अपने माता पिता की आज्ञा का पालन नहीं कर रहे और किताब लिख रहे हैं
अगर हम किसी चीज को सोचने में शर्मिंदा नहीं होते तो उस को बोलने में भी शर्म नहीं आनी चाहिए.
कुदरत ने हमें जो दिया है वह बहुत छोटा है लेकिन अगर अच्छे से बिताएं तो इस जीवन की समृद्धि बहुत बड़ी है.
मरे हुए लोगों का जीवन जिंदा व्यक्तियों की याद में रहता है.
जहां उम्मीद है वही जिंदगी है.
मैं रचना से आलोचना करता हूं गलतियां ढूंढ कर नहीं.
हर गलती एक मूर्खता है, ऐसा हमें नहीं कहना चाहिए।
ऐसा कहना बिल्कुल गलत होगा कि सिसरो ने आर्कमिडीज को कब्र से खोज निकाला. बल्कि इसकी जगह में यह कहना चाहिए कि सिसरो ने आर्कमिडीज की कब्र को खोज निकाला. दरअसल, एक प्रवास के दौरान सिसरो ने “आर्कमिडीज ऑफ सिरैक्यूज़” की कब्र खोज निकाली थी जो कई सालों से भुलाई जा चुकी थी. सिसरो के अनुसार यह कब्र उसको एक घनी झाड़ियों में छिपी हुई मिली थी जिसके ऊपर काफी पत्थर उकेरे गए थे.
सिसरो के राजनीतिक समय में उसके कई दुश्मन बने जिनमें से एंटोनी ने सिसरो के कत्ल के लिए सैनिक भेजें. जिसके बाद सैनिकों ने सिसरो का सर और हाथ काट कर उसको प्रदर्शन के लिए रख दिया. सिसरो के जाने से पहले आखिरी बोल आज भी हमें उसकी याद दिलाते हैं. मरने से पहले वह सैनिकों को बोला कि,
” जो तुम मेरे साथ कर रहे हो उसमें कुछ भी सही नहीं है, कम से कम मेरी हत्या तो अच्छे से करो!”