इस शिव मंदिर के कारीगर बन गए थे पत्थर
भारत की सबसे ख़ास बात ये हैं कि यहाँ आपको लगभग हर धर्म के लोग मिल जाएंगे. इनमे से यहाँ हिंदू धर्म के लोग सबसे अधिक मात्रा में रहते हैं. ऐसे में पुरे भारत में हिंदू देव देवताओं के कई मंदिर बने हुए हैं. इन हर एक मंदिर की अपनी एक दिलचस्प कहानी या महत्ता होती हैं. आप ने भी कई मंदिरों से जुड़े ढेर सारे दिलचस्प किस्से सुने होंगे. लेकिन आज हम आपको एक ऐसे मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं जिसकी प्राचीन कहानी सबसे अलग और अनोखी हैं.
दरअसल आज हम मध्य प्रदेश के एक ऐसी मंदिर के बारे में जानेंगे जो एक श्राप के चलते अधूरा रह गया था. और तब से लेकर अब तक उसका पूर्ण निर्माण नहीं हो सका हैं. इस मंदिर के अधूरे रह जाने की वजह और श्राप के बारे में जान आपको और भी बड़ा झटका लगेगा. ऐसा कहा जाता हैं कि इस मंदिर को बनाने वाले कारीगर खुद पत्थर की मूर्ति में बदल गए थे. तो चलिए फिर बिना किसी देरी के इस मंदिर के बारे में विस्तार से जान लेते हैं.
हम यहाँ जिस मंदिर का जिक्र कर रहे हैं उसका नाम हैं सिद्धेश्वरनाथ महादेव मंदिर. ये यह मध्यप्रदेश के बैतूल जिले के भैंसदेही में पूर्णा नदी के किनारे बना हुआ हैं. इस प्राचीन मंदिर के बारे में बहुत कम लोग जानते हैं. इस मंदिर का निर्माण 11वीं सदी में शुरू हुआ था. इस मंदिर का निर्माण करवाने वाला शख्स राजा गय था. 11वी और 12वी सदी में भैंसदेही रघुवंशी राजा गय की राजधानी महिष्मति नाम से जानी जाती थी. किंवदंतियों और कुछ पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक राजा गय शिवजी का बहुत बड़ा भक्त था. ऐसे में उसने अपनी नगरी में एक शिव मंदिर बनाने का सोचा.
इस शिव मंदिर को बनाने के लिए राजा ने उस दौर के प्रसिद्ध वास्तुशिल्पी भाई नागर-भोगर काम पर रखा. राजा ने उन्हें आदेश दिया कि महिष्मति में एक शानदार शिव मंदिर बनाओ. नागर भोगर भाइयों के बारे में एक विचित्र बात बहुत प्रचलित थी. ऐसा कहा जाता हैं कि ये दोनों भाई नग्न अवस्था में मंदिर का निर्माण कार्य करते थे. ये दोनों एक ही रात में बड़े से बड़ा मंदिर बनाकर खड़ा कर देते थे. हालाँकि इस काबिलियत के साथ उन्हें एक श्राप भी मिला हुआ था. श्राप ये था कि यदि उन्हें नग्न अवस्था में मंदिर निर्माण करते हुए किसी ने देख लिया तो वे दोनों पत्थर के बन जाएंगे.
फिर एक रात जब ये दोनों भाई नग्न अवस्था में मंदिर निर्माण का कार्य कर रहे थे तो अचानक से उनकी बहन खाना लेकर वहां आ गई और इन दोनों को इस अवस्था में देख लिया. इसके बाद नागर-भोगर पत्थर के बन गए. और इस तरह मंदिर निर्माण का काम अधूरा ही रह गया. इस घटना के बाद मंदिर का गुंबद फिर कभी नहीं बना.
इस प्राचीन मंदिर के गर्भगृह में मौजूद शिवलिंग को पौराणिक अभिलेखों में उप ज्योतिर्लिंग का दर्जा दिया हुआ हैं. इस मंदिर में लगे हर एक पत्थर में स्थापत्य कला दिखाई देती हैं. इस मंदिर का निर्माण कुछ ऐसा किया गया हैं कि सूर्य की पहली किरण और पूर्णिमा के चांद की पहली किरण दोनों ही मंदिर के गर्भगृह को छूती है.