इस संन्यासी की कहानी में है कुछ ऐसा, आप भी करेंगे इन्हें नमन
बात उस समय की है जब स्वामी रामतीर्थ लाहौर में बीए की परीक्षा की तैयारी कर रहे थे। उस समय उन्हें परीक्षा शुल्क भी भरना था लेकिन मुश्किल यह थी कि उनके पास परीक्षा शुल्क भरने के लिए पूरे पैसे नहीं थे।
अपने पास जमा पूरा धन एकत्र कर लेने के बाद भी इसमें तय राशि से पांच रुपए कम पड़ रहे थे। वे परेशान हो गए। उन्हें परेशान देखकर काॅलेज के पास ही मिठाई की दुकान चलाने वाले चंदू ने उनसे चिंता का कारण पूछा।
उन्होंने पूरी बात उसे बता दी। बात सुनने के बाद चंदू ने उन्हें पांच रुपए तुरंत ही दे दिए। बीए की परीक्षा पास करने के बाद स्वामी रामतीर्थ ने गणित के प्रोफेसर के रूप में नौकरी हासिल कर ली।
सरकारी नौकरी में आने के बाद वे हर माह चंदू हलवाई को पांच रुपए का मनीआॅर्डर भेजने लगे। यह क्रम चलता रहा। एक बार वे वहां से गुजरे तो चंदू ने कहा- आप मेरी दुकान से कुछ नहीं लेते, लेकिन हर माह रुपए भेज देते हैं। अब तक पैंतीस रुपए हो चुके हैं। ऐसा क्याें करते हैं आप?
तब रामतीर्थ बोले- यदि आपने उन मुश्किल स्थितियों में मुझे पांच रुपए न दिए होते तो मैं आज इस योग्य न बन पाता। यह मेरी ओर से आपके प्रति आभार है।
स्वामी रामतीर्थ ने बाद में संन्यास ग्रहण कर लिया और उन्होंने भारतीय दर्शन का प्रचार-प्रसार किया। लाखों लोग उनके विचारों से प्रभावित हुए। मात्र 33 वर्ष की आयु में वे मानव देह त्याग कर अमर हो गए। संन्यासी बनने के बाद उन्होंने कभी धन को स्पर्श नहीं किया।
सबक- मदद छोटी हो या बड़ी, मददगार को हमेशा याद रखना चाहिए। जो दूसरों की मदद करता है, परमात्मा भी उसकी मदद करते हैं।