इस सुहावने मौसम में घूमने के लिए बेहतरीन जगह है लेपाक्षी
मानसून के बाद आसमान साफ हो चुका हो, बादल के टुकड़े इधर-उधर छितरा रहे हों और हवा के झोंकों में आसपास के खेतों में पक रहे धान की खुशबू घुली हो, तब कौन पूर्वीघाट की पहाडि़यों के बीच खुली-खुली सड़कों के सहारे उस स्थल तक नहीं पहुंचना चाहेगा, जो किस्से-कहानियों की दुनिया-सा लगता है। यहां पूर्वीघाट की पहाडि़यां अपनी अलग खूबसूरती लेकर आती हैं। खेतों के बीच कहीं से निकल आई एक पहाड़ी समंदर में खड़े टापू-सा एहसास देती है।
हरे-भरे खेतों के बीच खड़ी हरी पहाड़ी-दुनिया। सोचकर ही मन रोमांच से भर जाता है। पश्चिमी घाट की पहाडि़यां बेशक अपने सौंदर्य और जैव विविधता के लिए प्रसिद्ध हैं, लेकिन पूर्वीघाट की ओर हमारा कम ही ध्यान गया है। हालांकि सुंदरता में ये भी किसी तरह कम नहीं हैं। पश्चिमी घाट की पहाडि़यां जहां अपने मेखलाकार रूप के लिए जानी जाती हैं तो दूसरी ओर पूर्वीघाट में पहाडि़यां एक-दूसरे से दूर खड़ी निहारती रहती हैं।
ग्रामीण भारत का अनुपम सौंदर्य
ग्रामीण भारत का वास्तविक सौंदर्य नजर आता है यहां! दूर-दूर तक फैले खेत और खेतों के बीच पूर्वीघाट के खूबसूरत पहाड़। उन्हीं के बीच बसी है एक ऐतिहासिक भूमि। वृहत आंध्र प्रदेश के प्रसिद्ध रायलसीमा क्षेत्र का यह स्थान कुर्नूल, कडप्पा और चित्तूर जिलों के अलावा कर्नाटक के एक हिस्से से भी घिरा हुआ है। इस पहाड़ी क्षेत्र में ग्रेनाइट की चट्टानें मिलती हैं। मूंगफली, मक्का आदि यहां खूब होती है और बारिश ने साथ दिया तो धान की फसल भी जोरदार होती है।
रामायण काल से जुड़ा इतिहास
स्थानीय लोग इस स्थल का संबंध रामायण काल से जोड़ते आए हैं। लोकमान्यता है कि उस काल में जब रावण ने सीता का हरण कर लिया तथा जटायु नामक पक्षी ने सीता को बचाना चाहा तो रावण ने उस पर हमला कर दिया। पक्षी इस हमले में घायल हो गया। माना जाता है कि इसी स्थल पर घायल पक्षी से सीता की तलाश में निकले राम और लक्ष्मण की भेंट हुई। राम ने घायल पक्षी से कहा चले पक्षी’ अर्थात ‘पक्षी उठो’। तब से इस स्थल का नाम ‘लेपक्षी’ पड़ा, जो कालांतर में लेपाक्षी के नाम से जाना जाने लगा।
इतिहासकारों के अनुसार, विजयनगर साम्राज्य के दौरान यह स्थान व्यापार और तीर्थ के प्रमुख स्थल की मान्यता हासिल कर चुका था। वाणिज्य के प्रमुख केंद्र के रूप में लेपाक्षी का उपयोग विजयनगर साम्राज्य के पतन के बाद भी जारी रहा। हथकरघा पर बने कपड़े काफी प्रसिद्ध रहे। पर्यटन स्थल के रूप में इसकी पहचान धार्मिक और सांस्कृतिक विविधता के कारण रही! यहां बढ़ता हुआ हर अगला कदम आपको अपनी सभ्यता-परंपरा से वाकिफ करवाता है।
कैसे पहुंचें
लेपाक्षी सड़क मार्ग से देश के विभिन्न हिस्सों से भलीभांति जुड़ा हुआ है। आंध्र प्रदेश की सरकारी बसों से लेकर निजी बसें भी यहां तक आती हैं। यहां का नजदीकी रेलवे स्टेशन हिंदपुर है, जो लगभग पंद्रह किलोमीटर दूर स्थित है। वहां से यहां तक के लिए बस, ऑटो और टैक्सी की सुविधा आसानी से उपलब्ध है। यहां का नजदीकी हवाई अड्डा बेंगलुरु अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा है, जो लगभग सौ किलोमीटर दूर स्थित है। वहां से चौबीसों घंटे सवारी उपलब्ध रहती है।