बहुत से घरेलू रिटेलर्स ने ई-टेलर्स के साथ प्रतिकूल प्रतियोगिता के कारण व्यवसाय में हो रहे घाटे की शिकायत की है। इसके अलावा नोटबंदी और जीएसची के प्रभाव को लेकर भी अपनी परेशानी जाहिर की है। लॉबी समूह जैसे कि द कंफेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स (सीएआईटी) और स्वदेशी जागरण मंच (आरएसएस संबद्ध) ने स्थानीय किराना और छोटी दुकानों के मालिकों की तरफ से इस मुद्दे को उठाया है।
हालांकि सरकारी अधिकारियों का कहना है कि इस कदम का मतलब स्थानीय ट्रेडर्स को लुभाना नहीं है। बल्कि इसका उद्देश्य विश्व व्यापार संगठन द्वारा वैश्विक तौर पर एक ऐसी नीति बनाना है जिससे कि ई-कॉमर्स को विनियमित किया जा सके। कुछ ऐसा जिससे कि अमेरिका और चीन को एकजुट किया जा सके जो इस समय ट्रेड वॉर में लिप्त हैं।
एक ड्राफ्ट ई-कॉमर्स नीति, जिसे बीते जुलाई में हितधारकों के साथ साझा किए जाने के कुछ दिनों के भीतर ही सभी व्यावहारिक उद्देश्यों के लिए अस्वीकार कर दिया गया था, इसमें छूट को नियंत्रित या उसपर प्रतिबंध लगाने की मांग की गई थी। इसमें प्रस्ताव दिया गया था कि घरेलू ई-कॉमर्स कंपनियों को सहयोग प्रदान किया जाए जबकि कुछ हिस्सों में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) को मंजूरी दी गई थी।
हालांकि एफडीआई को लागू नहीं किया गया था। इसके बाद ई-कॉमर्स को नियंत्रित करने का मुद्दा वापस आ गया है। वरिष्ठ अधिकारियों का कहना है कि इससे जुड़े विवरण अभी तक बाहर नहीं आए हैं। वैश्विक तौर पर हमने रिटेल स्टोर्स को गायब होते हुए देखा है, चाहे वो किताब की दुकाने हों या छोटी दुकानें। यहां तक कि इससे फॉर्मेट क्षेत्र पर भी दवाब बनता है।