देहरादून । उत्तराखंड आयुर्वेद विश्वविद्यालय, राज्य औषधीय पादप बोर्ड एवं आरोग्य भारती के संयुक्त तत्वावधान में ‘लोक स्वास्थ्य परंपरा में हिमालयी क्षेत्र की वनौषधियां’ विषय पर संगोष्ठी आयोजित की गई। संगोष्ठी में मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति को वर्तमान समय में भी अद्वितीय एवं उत्कृष्ट बताया। उन्होंने कहा कि इसमें शोध कार्यों को बढ़ावा देने की जरूरत है। कार्यक्रम में कई विख्यात वैद्य व वैज्ञानिकों ने अपनी बात रखी व शोध पत्र पढ़े।
निरंजनपुर स्थित होटल में आयोजित संगोष्ठी का उद्घाटन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत व कृषि मंत्री सुबोध उनियाल ने किया। मुख्यमंत्री ने कहा कि आयुर्वेद की स्वीकार्यता भारत के अतिरिक्त विदेशों में भी बढ़ती जा रही है। साइड इफेक्ट न होने के कारण इस पद्धति को दुनिया ने भी अपनाना शुरू कर दिया है। जरूरी है कि आयुर्वेद की धरती पर एक बार पुन: इसका पुनरोदय हो।
मुख्यमंत्री ने कहा कि आयुष के क्षेत्र में अभी भी शोध किए जाने की जरूरत है, तभी वैश्विक स्वास्थ्य की हमारी संकल्पना को पूर्ण किया जा सकता है। राज्य सरकार भी आयुष को बढ़ावा देने के लिए लगातार प्रयास कर रही है। उन्होंने कहा कि आज हींग अफगानिस्तान से आयात की जा रही है जबकि उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों उत्कृष्ट क्लालिटी की हींग उगाने के लिए सबसे उपयुक्त हैं।
ऐसे में इन तमाम पहलू पर काम करने की आवश्यकता है। आयुर्वेद विवि की कुलसचिव प्रो. माधवी गोस्वामी ने विवि की वर्तमान गतिविधियों एवं जड़ी बूटियों के क्षेत्र में विवि के विजन से मुख्यमंत्री को अवगत कराया। कार्यक्रम अध्यक्ष आरोग्य भारती के राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष डॉ. रमेश गौतम ने राष्ट्रीय स्तर पर संगठन द्वारा स्वास्थ्य रक्षण के लिए किए जा रहे प्रयास की जानकारी दी।
कार्यक्रम के दूसरे सत्र में वरिष्ठ वैज्ञानिक विजय भïट्ट ने औषधीय पौधों के बारे में जानकारी दी। आयुर्वेद विवि के द्रव्यगुण विभाग ने प्रदर्शनी का आयोजन किया। मंच संचालन आदित्य कुमार ने किया। इस दौरान प्रो. अरुण त्रिपाठी, प्रो. अनूप कुमार गक्खड़, प्रो. राधा बल्लभ सती, डॉ. प्रदीप गुप्ता, डॉ. राजीव कुरेले, डॉ. शैलेंद्र प्रधान, डॉ. नवीन जोशी, डॉ. दीपक सेमवाल, डॉ. नरेंद्र बिष्ट आदि उपस्थित रहे।
जड़ी बूटी शोध संस्थान की खुलें शाखाएं
कृषि मंत्री सुबोध उनियाल ने मुख्यमंत्री से अनुरोध किया कि जड़ी बूटी शोध संस्थान की सीमांत जनपद चमोली, पिथौरागढ़ व उत्तरकाशी में शाखाएं खोली जाएं। उन्होंने कहा कि संस्थान के पास क्योंकि सीमित मैनपावर है, यह बहुत ज्यादा आगे काम नहीं कर पा रहा है। जबकि उत्तराखंड जड़ी-बूटी के लिहाज के लिहाज से राज्य के उच्च हिमालयी क्षेत्र में अपार संभावनाएं हैं। यहां वैज्ञानिक शोध व तकनीक के माध्यम से इस क्षेत्र को बढ़ावा दिया जा सकता है। कहा कि सगंध खेती के लिए राज्य सरकार सवा बीघा तक निश्शुल्क पौध उपलब्ध कराती है।
उन्होंने मुख्यमंत्री से अनुरोध किया कि इसका दायरा बढ़ाया जाए। ताकि अधिकाधिक लोग इससे जुड़ सकें। पर्वतीय इलाकों में जहां जमीन बंजर हो चुकी है। जंगली जानवर खेती को नुकसान पहुंचा रहे हैं वहां सगंध पौधों की खेती किसानों के लिए वरदान साबित होगी। उन्होंने कहा कि उत्तराखंड देवभूमि ही नहीं औषधीय भूमि भी है। प्रदेश में दुर्लभ व औषधीय वनस्पतियों का भंडार है। हममें बहुत क्षमताएं हैं। प्रदेश में करीब 500 से ज्यादा औषधीय व 192 से ज्यादा सगंध वनस्पतियां हैं। पर यह भी सही है कि जितना इस क्षेत्र में हम लोगों को आगे बढ़ना चाहिए था उतना हम अभी तक नहीं बढ़ पाए हैं। आज इस क्षेत्र को संगठित करने की आवश्यकता है।
किसानों को दे रहे व्यवसायिक मदद
राज्य औषधीय पादप बोर्ड के सीईओ एवं सगंध पौधा केंद्र के निदेशक डॉ. नृपेंद्र चौहान ने बताया कि जड़ी-बूटी शोध संस्थान गोपेश्वर एवं सगंध पौधा केंद्र देहरादून व्यवसायिक रूप से किसानों की मदद कर रहे हैं। आज इन संस्थानों का 120 करोड़ का वार्षिक टर्नओवर है और लगभग 40 हजार किसान इन संस्थान से जुड़े हैं।