उत्तराखंड में किसी भी प्राइवेट यूनिवर्सिटी का एक्ट पास होने से पहले भले ही सरकार जमीन से लेकर हर पैमाने की जांच करती हो, लेकिन अपने सरकारी विश्वविद्यालयों के लिए कोई पैमाना नहीं है।
हालात यह है कि आयुर्वेद विवि, एचएनबी मेडिकल विवि की तर्ज पर सेंट्रल लॉ यूनिवर्सिटी भी सरकारी लापरवाही का शिकार है। छह साल से इस विवि को भी जमीन का इंतजार है।
राज्य सरकार सरकारी विवि की घोषणा तो कर देती है, प्रक्रिया भी शुरू कर देती है, लेकिन सबसे जरूरी जमीन पर कोई ध्यान नहीं होता। उत्तराखंड आयुर्वेद विवि कई साल तक जमीन न होने की वजह से एक कमरे में संचालित होता रहा। बाद में हर्रावाला में शिफ्ट किया गया।
एचएनबी मेडिकल यूनिवर्सिटी आज भी किराए के तीन कमरों में संचालित हो रही है, जिसके पास सूबे के सभी मेडिकल व नर्सिंग कॉलेजों की जिम्मेदारी है। इस फेहरिस्त में एक नाम सेंट्रल लॉ यूनिवर्सिटी का है। छह साल पहले जब एक्ट पास हुआ तो सरकार ने भवाली जगह बताई लेकिन यह जमीन आइडेंटिफाई नहीं की।
मामले में छह साल से प्रक्रिया गतिमान तो है लेकिन जमीन मयस्सर नहीं हो पाई है। हालांकि सेंट्रल लॉ यूनिवर्सिटी के नोडल अधिकारी प्रो. एचएस धामी के मुताबिक भवाली में जमीन तो थी लेकिन पूरी 20 एकड़ एक साथ नहीं थी। दूसरी जगह भी इसी वजह से जमीन नहीं मिली। अब तीसरी जगह से उम्मीदें हैं।
हाईकोर्ट के जवाब का इंतजार
मामले में सरकार ने तीसरी जगह जमीन तलाशकर इसका प्रस्ताव हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश और सेंट्रल लॉ यूनिवर्सिटी के के चांसलर को भेजा हुआ है। अब हाईकोर्ट के जवाब का इंतजार है। जमीन को हरी झंडी मिलने के बाद ही आगे की प्रक्रिया बढ़ सकती है।