देहरादून: उद्योग सेक्टर हों या स्कूल-कॉलेज, शॉपिंग कॉम्पलेक्स या फिर आवासीय परियोजनाएं, सभी की निर्भरता भूजल पर दिनों-दिन बढ़ती जा रही है। शहरी क्षेत्रों में बोरिंग की भरमार से इस बात का अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है। लेकिन जब बात भूजल के नियंत्रित दोहन की आती है तो हर सेक्टर अपनी जिम्मेदारी से कन्नी काटता नजर आता है।
यही वजह है कि भूजल दोहन करने वाले प्रतिष्ठानों के लिए एनजीटी की ओर से डेडलाइन 31 दिसंबर किए जाने के बाद अब तक केंद्रीय भूजल बोर्ड को 784 आवेदन ही प्राप्त हुए हैं। यह स्थिति तब है, जब एनजीटी के निर्देश के दायरे में आने वाले प्रतिष्ठानों की संख्या जनगणना 2011 के अनुसार ही 68 हजार के पार है।
एनजीटी को भूजल दोहन के लिए आवेदन करने वाले प्रतिष्ठानों की सूची भेजने की जिम्मेदारी जल संसाधन मंत्रालय को सौंपी गई है। इसे लेकर केंद्रीय भूजल बोर्ड के सभी क्षेत्रीय कार्यालय नियमित तौर पर रिपोर्ट भेज रहे हैं। केंद्रीय भूजल बोर्ड देहरादून से भेजी गई रिपोर्ट पर ही गौर करें तो जनगणना 2011 के अनुसार दायरे में आने वाले कुल प्रतिष्ठानों में से महज 1.15 फीसद प्रतिष्ठानों ने ही भूजल दोहन के लिए आवेदन किया है। सबसे अधिक भूजल का दोहन देहरादून, हरिद्वार, ऊधमसिंहनगर व नैनीताल जिले में किया जाता है और यहां एनजीटी के निर्देश के दायरे में आने वाले प्रतिष्ठानों की संख्या 31 हजार 500 से अधिक है। मैदानी क्षेत्रों में ही भूजल दोहन की बात स्वीकार की जाए और यह माना जाए कि यहां के 25 फीसद प्रतिष्ठान ही भूजल का दोहन कर रहे हैं, तब भी यह आंकड़ा 7800 से अधिक होना चाहिए।
इस श्रेणी के लिए भूजल दोहन का आवेदन जरूरी: यदि उद्योग (फैक्ट्री, वर्कशॉप आदि) स्कूल, कॉलेज, यूनिवर्सिटी, होटल, लॉज, गेस्ट हाउस आदि भूजल दोहन कर रहे हैं तो उन्हें इससे पहले केंद्रीय भूजल बोर्ड में आवेदन करने की अनिवार्यता की गई है। केंद्रीय भूजल बोर्ड के क्षेत्रीय निदेशक अनुराग खन्ना ने बताया कि भूजल दोहन के लिए आए आवेदनों की संख्या बेहद कम है, जो वास्तविकता से कोसों दूर हैं। हालांकि ये आवेदन भी पिछले कुछ माह में ही प्राप्त हुए हैं। आगे की कार्रवाई डेडलाइन पूरी होने के बाद एनजीटी के निर्देश पर की जाएगी।