एजेन्सी/ नई दिल्ली: उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन लागू किए जाने के खिलाफ कांग्रेस की अर्जी पर मंगलवार को नैनीताल हाइकोर्ट में सुनवाई जारी रहेगी। कांग्रेस की ओर से वरिष्ठ नेता और वकील अभिषेक मनु सिंघवी इस मामले की पैरवी कर रहे हैं।
दूसरी ओर पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत की अगुवाई में पार्टी की राज्य ईकाई पहले से और ज्यादा सक्रिय हो गई है। सोमवार को हरीश रावत ने राज्यपाल से मुलाकात की और अपने साथ 34 विधायक होने का दावा किया। अपने दावे को पुख़्ता करने के लिए रावत ने विधायकों की साइन की हुई चिट्ठी भी सौंपी।
कोर्ट में विचाराधीन होने की वजह से अब राज्य की राजनीति की नई तस्वीर क्या होगी ये अभी साफ नहीं है। कांग्रेस और बीजेपी के इस राजनीतिक घमासान में कांग्रेस के 9 बागी विधायक अब भी सांसत में हैं। उन्हें अंदेशा है कि बगावत का नतीजा उनके अनुकूल नहीं निकला तो क्या होगा? अब तो सवाल यह भी है कि अदालत क्या कहती है और राज्यपाल क्या करते हैं?
उत्तराखंड के राज्यपाल के सामने अब तीन विकल्प हैं
पहला विकल्प : राज्यपाल दूसरे बड़े दल यानी बीजेपी को सरकार बनाने का मौका दे सकते हैं।
दूसरा विकल्प : विधानसभा को भंग कर राज्य में फिर से चुनाव कराए जा सकते हैं।
तीसरा विकल्प : विधानसभा का कार्यकाल पूरा होने तक राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाकर रखा जा सकता है।
क्या है धारा 356
– केन्द्र को किसी भी राज्य सरकार को भंग करने का अधिकार।
– बशर्ते राज्य में संवैधानिक तंत्र नाकाम हो गया हो।
– किसी दल को साफ बहुमत नहीं होने पर भी राष्ट्रपति शासन लागू हो सकता है।
– राज्यपाल के जरिए राष्ट्रपति संभालते हैं राज्य की सत्ता।
धारा 356 पर अहम फैसला
(एसआर बोम्मई बनाम केन्द्र सरकार)
– 1989 में कर्नाटक की एसआर बोम्मई सरकार बर्खास्त।
– गवर्नर ने सदन में बहुमत साबित करने का मौका नहीं दिया।
– बोम्मई ने केन्द्र के फैसले को चुनौती दी।
– मार्च 1994 में सुप्रीम कोर्ट का अहम फैसला, सरकार के बहुमत का फैसला सदन के भीतर ही होगा।