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उत्तराखंड में डगमगाने लगी डबल इंजन की सरकार

डबल इंजन सरकार की बात करें तो इसकी बोगियां आपस में भिड़ती दिख रही हैं। छह महीने पुरानी त्रिवेंद्र सरकार का ‘लेटेस्ट स्टेटस’ यदि कोई पूछे तो यह एक वाक्य ही पूरा हाल बताने के लिए पर्याप्त नजर आता है। डबल इंजन वाली त्रिवेंद्र सरकार में बोगियां इंजन की दिशा में दौड़ने के बजाय आपस में इस कदर भिड़ रही हैं कि उन्हें खींचने में डबल इंजन की सारी ताकत कम पड़ रही है। आलम यह है कि बोगियों को सीधा करने की कोशिश में इंजन खुद हांफने लगा है। विधानसभा चुनाव से ठीक पहले जब आल वैदर रोड परियोजना का शिलान्यास करने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देहरादून आए तो उन्होंने उत्तराखंड के मतदाताओं से डबल इंजन की सरकार बनाने का आग्रह किया।

-गोपाल सिंह,  देहरादून

उत्तराखंड में चुनाव के दौरान भाजपा ने जनता से वादा किया था कि डबल इंजन की सरकार बनाओ तो राज्य तेजी के साथ विकास के पथ पर चलेगा। खैर सरकार तो डबल क्या त्रिपल इंजन वाली बन गई, लेकिन राज्य के हालात नहीं सुधरे। पिछले छह माह की बात करें तो सरकार के कामों से अधिक उसमें बैठे मंत्रियों की चर्चा हो रही है। यह चर्चा भी किसी अच्छे काम के लिए नहीं, बल्कि उनके विवादों से नाते के लिए। खासकर यह भी हुआ कि जो नेता कांग्रेस से आकर मंत्री बनाए उनकी घुटन की भी चर्चाएं जोरों पर रहीं। हरिद्वार में मदन कौशिक व सतपाल महाराज के समर्थकों के बीच क्या कुछ हुआ यह बताने की जरूरत नहीं है। इसके अलावा छह माह में सरकार ने कुछ भी ऐसा नहीं किया कि वह उसका बखान आने वाले चुनावों में कर सके। बड़ी बातें करें तो जिस 108 सेवा को जोरशोर से निशंक सरकार में शुरू किया गया, वह आज खुद दम तोड़ रही है। इसके अलावा पलायन की बात करें तो पहाड़ से हो रहे पलायन पर केंद्रीय गृह मंत्री तक चिंता जता चुके हैं। वहीं सरकार ने इस पर ठोस निर्णय लेने के बजाय एक आयोग बना डाला। यानि अब तक विभिन्न मामलों में बने आयोग और उनकी रिपोर्ट का क्या कुछ होता है यह सबको पता है।
पहले डबल इंजन सरकार की बात करें तो इसकी बोगियां आपस में भिड़ती दिख रही हैं। छह महीने पुरानी त्रिवेंद्र सरकार का ‘लेटेस्ट स्टेटस’ यदि कोई पूछे तो यह एक वाक्य ही पूरा हाल बताने के लिए पर्याप्त नजर आता है। डबल इंजन वाली त्रिवेंद्र सरकार में बोगियां इंजन की दिशा में दौड़ने के बजाय आपस में इस कदर भिड़ रही हैं कि उन्हें खींचने में डबल इंजन की सारी ताकत कम पड़ रही है। आलम यह है कि बोगियों को सीधा करने की कोशिश में इंजन खुद हांफने लगा है। विधानसभा चुनाव से ठीक पहले जब आल वैदर रोड परियोजना का शिलान्यास करने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देहरादून आए तो उन्होंने उत्तराखंड के मतदाताओं से डबल इंजन की सरकार बनाने का आग्रह किया। उन्होंने कहा कि प्रदेश में डबल इंजन की सरकार बनेगी तो विकास भी दोगुनी स्पीड से होगा।
बीते दिनों हरिद्वार में हुआ वाकया इसका सबसे ताजा प्रमाण है। त्रिवेंद्र सरकार के दो सीनियर मंत्रियों सतपाल महाराज के ‘चेलों’ और मदन कौशिक के समर्थकों के बीच ऐसी जूतम-पैजार हुई कि पूरे प्रदेश में हंगामा हो गया। दोनों गुटों के बीच लड़ाई किस कदर हिंसक थी इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि शहर के मेयर को अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा। हरिद्वार शहर में अतिक्रमण हटाने के नाम पर नगर निगम द्वारा की गई कार्रवाई से सतपाल महाराज के समर्थक इसलिए नाराज हो गए थे क्योंकि इस कार्रवाई की जद में उनके प्रेमनगर आश्रम का एक हिस्सा आ गया था। नगर निगम के बुलडोजर ने जैसे ही आश्रम के हिस्से को तोड़ना शुरू किया महाराज के समर्थक निगमकर्मियों पर टूट पड़े। दोनों तरफ से एक दूसरे पर खूब लात-घूंसे और लाठी-डंडे चले। मामला इतना ज्यादा बिगड़ गया कि इसे अपनी प्रतिष्ठा का सवाल बना कर सतपाल महाराज कोपभवन में चले गए। दूसरा धड़ा, जिसे कि मंत्री मदन कौशिक का समर्थन बताया जाता है भी सतपाल महाराज के खिलाफ अपने स्टैंड पर अड़ा रहा। इस बीच मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत से लेकर प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष अजय भट्ट तथा अन्य नेतागण ‘आग’ बुझाने की कोशिश में जुटे रहे, मगर सतपाल महाराज के तेवर इस कदर गर्म थे कि वे ठंडा होने को मानो तैयार ही नहीं थे। आखिरकार भाजपा के केंद्रीय अध्यक्ष अमित शाह को सीन में आना पड़ा। बताया जा रहा है कि उन्होंने सतपाल महाराज से फोन पर लंबी बातचीत की जिसके बाद जाकर महाराज नरम हुए। इस मामले का पटाक्षेप हो जाने के बाद सरकार और भाजपा संगठन बेशक राहत महसूस कर रहा हो, मगर इस वाकये ने सरकार के भीतर मंत्रियों में चल रहे कोल्ड वार को एक बार फिर सबके सामने लाकर रख दिया। मंत्रियों के बीच चल रहे शीतयद्ध के सार्वजनिक होने का यह पहला वाकया नहीं है। इससे पहले सरकार के एक और मंत्री हरक सिंह रावत और सतपाल महाराज के बीच कैबिनेट बैठक में हुई तू तू मैं मैं भी सबके सामने आ चुकी है। महीनेभर पहले देहरादून स्थित सचिवालय में कैबिनेट बैठक के दौरान दोनों मंत्रियों के बीच मंदिरों की व्यवस्थाएं देखने के लिए प्राधिकरण के गठन के मुद्दे पर जोरदार बहस हुई। दरअसल प्रदेश के गढ़वाल मंडल के अधिकतर मंदिरों की व्यवस्था का जिम्मा जिस बदरी-केदार मंदिर समिति के पास था उसे त्रिवेंद्र सरकार ने भंग कर दिया था, जिसके बाद पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज ने एक नए प्राधिकरण के गठन का प्रस्ताव बैठक में रखा। महाराज के इस प्रस्ताव पर हरक सिंह रावत ने कड़ी आपत्ति जताई और कहा कि प्राधिकरण का गठन सरकारी धन की बर्बादी है। बताया जाता है कि इस मुद्दे पर दोनों मंत्रियों के बीच काफी देर तक तीखी बहस हुई। महाराज और हरक सिंह के बीच हुई इस तकरार को लेकर अगले कुछ दिनों तक खूब चटखारे लिए गए। तब माना गया कि इन दोनो नेताओं के बीच गढ़वाल संसदीय क्षेत्र का ‘नेता’ बनने को लेकर भयंकर शीतयुद्ध चल रहा है जो प्राधिकरण के गठन के बहाने खुल कर सामने आ गया। इस घटना के चलते भी त्रिवेंद्र सरकार की खूब किरकिरी हुई।
त्रिवेंद्र सरकार की किरकिरी कराने वालों में मंत्रियों के साथ-साथ राज्यमंत्री भी कम पीछे नहीं हैं। पहली बार मंत्रिमंडल में शामिल हुए उच्च शिक्षा राज्य मंत्री धन सिंह रावत और महिला सशक्तिकरण एवं बाल विकास राज्यमंत्री दोनों ही अपनी हरकतों से त्रिवेंद्र सरकार का खूब ‘प्रचार-प्रसार’ करा चुके हैं। धन सिंह रावत की बात करें तो तीन महीने पहले नई दिल्ली में ‘प्रोटोकाल’ न मिलने से वे इस कदर नाराज हुए कि उन्होंने वहां तैनात राज्य संपत्ति विभाग के अधिकारी को हटाने की मांग कर दी। परिवार समेत दिल्ली पहुंचे मंत्री जी को रिसीव करने जब राज्य संपत्ति विभाग के अफसर समय पर नहीं पहुंचे तो मंत्री जी का पारा चढ़ गया।
धन सिंह रावत के बारे में कहा जाता है कि वे प्रदेश के चंद सर्वसुलभ और सादगीपसंद नेताओं में से हैं। इसी साल 19 अप्रैल को केंद्र सरकार द्वारा वीआईपी कल्चर खत्म करने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए नेताओं अफसरों की गाड़ियों से लालबत्ती हटाए जाने का फैसला लिया गया था तो धन सिंह प्रदेश के उन मंत्रियों में से थे जिन्होंने दो दिन के भीतर अपने वाहन से लाल बत्ती उतरवा दी थी। तब उन्होंने न केवल प्रधानमंत्री मोदी के कसीदे पढे़ थे, बल्कि खुद भी सादगी से रहने का वादा किया था। मगर दिल्ली में अफसरों से आगवानी में चूक क्या हुई, सारे वादे-दावों की असलियत बे-पर्दा हो गई। रेखा आर्य का मामला भी कम हैरानी भरा नहीं है। इस साल चार अप्रैल को अल्मोड़ा जिले की विभागीय समीक्षा बैठक के दौरान उन्होंने मूल मुद्दों से हट कर जिलाधिकारी से अपने पति के खिलाफ चल रहे न्यायिक मामलों के निस्तारण से जुड़े सवाल पूछने शुरू कर दिए। उनके सवालों पर जिलाधिकारी ने उनसे दो-टूक कह दिया कि विभागीय बैठक में व्यक्तिगत सवालों पर चर्चा नहीं की जा सकती है। इसके बाद भी जब बात नहीं सुलझी तो जिलाधिकारी ने यहां तक कह दिया कि मंत्री जी यदि उनके काम से खुश नहीं हैं तो उनका तबादला करा सकती हैं। दिलचस्प बात है कि इसके तीन महीने बाद जिलाधिकारी का तबादला हो गया। इसके अलावा पिछले दिनों अपने विधानसभा क्षेत्र में शराब की दुकान का ठेका खुलने को लेकर देहरादून के महापौर व पहली बार विधायक बने विनोद चमोली ने अपनी ही सरकार के खिलाफ डीएम कार्यालय के बाहर धरना दिया। इससे भी सरकार का जनता के प्रति अच्छा संदेश नहीं गया है। इस मामले ने भी काफी तूल पकड़ा। हालांकि इस पूरे मामले में भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष अजय भट्ट ने सफाई दी कि विधयकों को अधिकारियों के बजाय सीधे संगठन के पास आना चाहिए। इसके अलावा इसी बीच नैनीताल सांसद भगत सिंह कोश्यारी का पिथौरागढ़ में कार्यक्रम था, जिसमें जिला स्तर के अधिकार ही नहीं पहुंचे। इस पर कोश्यारी ने कड़ी नाराजगी जताई तथा बैठक लिए बिना चलते बने। वहीं पिछले दिनों गढ़वाल सांसद भुवन चंद्र खंडूड़ी के फर्जी ट्विट से भी खासा बवाल हुआ। खंडूड़ी की ओर से किए गए ट्वीट में लिखा गया था कि पार्टी मुझे मान सम्मान दे या नहीं मुझे कोई दुख नहीं। जनता के दिलों में मेरे प्रति जो प्यार है वही मेरे लिए बहुत बड़ी बात है। इसके कुछ देर बाद इस अकाउंट से एक और ट्वीट आया। जिसमें लिखा गया कि मैंने देश की सेवा की। हालांकि खुद खंडूड़ी ने इस तरह के किसी भी ट्वीट से इन्कार किया। यहां तक कि उनकी बेटी और यमकेश्वर विधायक ने भी इसे लेकर मुकदमा दर्ज कराया कि फर्जी ट्वीट किया गया है।
कुल मिलाकर कहना गलत नहीं होगा कि इन घटनाओं के चलते जनता के मन में त्रिवेंद्र सरकार की छवि को लेकर अच्छा संदेश नहीं जा रहा है। लगातार हो रही फजीहतों के बाद भी न तो मंत्री बाज आ रहे हैं और ना ही मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत कुछ कर पा रहे हैं। ऐसे में सवाल यही है कि जिस सरकार के भीतर का घमासान ही खत्म न हो पा रहा हो, उससे जनता के सपने पूरे करने की उम्मीद आखिर कैसे की जा सकती है? 

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