नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक(कैग) ने उत्तराखंड सरकार के विभिन्न विभागों की उपयोग प्रमाणपत्र जमा कराने में देरी करने के लिए खिंचाई की है. कैग ने कहा कि प्रमाणपत्र के अभाव ने इस संदेह को जन्म दिया है कि क्या धन का इस्तेमाल निर्धारित उद्देश्य के लिये किया गया अथवा नहीं. राज्य की वित्तीय दशा पर कैग की वित्त वर्ष 2016-17 की रिपोर्टकल गैरसैण में राज्य विधानसभा में बजट सत्र के आखिरी दिन पेश की गई. इसमें कहा गया है कि इस दौरान वित्तीय प्रबंधन में अनेक अनियमितताएं पाई गईं हैं.
कैग ने उपयोग प्रमाणपत्र जमा कराने के देरी करने की आदत के लिए सरकारी विभागों की खिंचाई करते हुए कहा मार्च 2017 तक 490.04 करोड़ रुपये की राशि के कुल 353 उपयोग प्रमाणपत्र लंबित हैं. इसमें कहा गया है कि प्रमाणपत्र जमा नहीं कराने से यह तय नहीं किया जा सका कि प्राप्तकर्ताओं ने कोष का इस्तेमाल उसी उद्देश्य में किया है जिसके लिए वह आवंटित की गई थी अथवा नहीं.
आवंटित धनराशि पर कुंडली मारकर बैठा रहा मंत्रालय
आपको बता दें कि पिछले साल नमामि गंगे प्रोजेक्ट पर नियंत्रक एवं महालेख परीक्षक (कैग) की रिपोर्ट में कहा गया था कि कि वास्तविक आधार पर जल की गुणवत्ता की निगरानी के लिये गंगा नदी के किनारे पहचाने गए 113 स्थलों में केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड केवल 36 स्वचालित गुणवत्ता प्रणालियों की तैनाती कर सका.
साथ ही राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन, विभिन्न राज्य कार्यक्रम प्रबंधन समूहों तथा कार्यपालक एजेंसी एवं केंद्रीय क्षेत्र के उपक्रमों के पास काफी मात्रा में धनराशि खर्च ही नहीं की जा सकी. संसद में पेश गंगा नदी का पुनरुद्धार ‘नमामि गंगे’ पर नियंत्रक एवं महालेख परीक्षक की रिपोर्ट में कहा गया है कि वर्ष 2014-15 से वर्ष 2016-17 के दौरान संशोधित अनुमान की तुलना में निधि का उपयोग आठ से 63 प्रतिशत तक था.
31 मार्च 2017 को राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन, विभिन्न राज्य कार्यक्रम प्रबंधन समूहों तथा कार्यपालक एजेंसी एवं केंद्रीय क्षेत्र के उपक्रमों के पास क्रमश: 2133.76 करोड़ रूपये, 422 करोड़ रुपये तथा 59.28 करोड़ रूपये अनुपयोगी पड़े थे.