28 जनवरी को उसकी विकलांग पुत्री का विवाह है और उसके परिवार में कोई पुरुष सदस्य नहीं है। इस कारण उसने राज्य सरकार को प्रार्थना पत्र देकर अपने पति को पैरोल में छोड़ने की प्रार्थना की थी, लेकिन उसका प्रार्थना पत्र 7 नवंबर 2016 से शासन में लंबित है।
याची ने मांग की कि यह नियम उत्तराखंड में भी लागू होने चाहिए ताकि किसी के साथ पक्षपात न हो और सभी को समान रूप से न्याय मिल सके।
पक्षों को सुनने के बाद हाईकोर्ट की एकलपीठ ने उत्तराखंड सरकार को कैदियों को पेरोल पर छोड़ने के लिए नियम बनाने के निर्देश देते हुए उन्हें सार्वजनिक करने को कहा है। कोर्ट ने राज्य के गृह सचिव को याचिकाकर्ता के लंबित प्रार्थना पत्र को दो सप्ताह के भीतर निस्तारित करने के निर्देश दिए हैं।
इस मामले में खानपुर के पूर्व विधायक प्रणव चैंपियन और पूर्व मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा ने खुल कर विरोध किया था।
उत्तराखंड में विधानसभा चुनाव से पहले लक्कड़पाला की पैरोल मंजूर होने के बाद सियासी हलचल तेज हो गई थी। भाजपा के नेताओं की ओर से लगातार इस पर सवाल उठाए जा रहे थे, इसके बावजूद प्रदेश सरकार ने इसको दरकिनार कर दिया था।
विधायक महेंद्र सिंह भाटी हत्याकांड में सजा काट रहे लक्कड़पाला की 23 दिसंबर 2016 को दो माह के लिए पैरोल मंजूर हुई थी लेकिन पैरोल को हुए एक माह भी नहीं बीत सका था कि शासन के आदेश पर 11 जनवरी की देर शाम उसे गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया।