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उत्तराखंड में बांधों को लेकर मोदी के मंत्रियों में टकराव के हालात

uma-bharti_650x400_81461084323एजेंसी/ नई दिल्ली: उत्तराखंड के बांधों के मामले में केंद्र सरकार के मंत्रियों के बीच घमासान मचा हुआ है। पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर और विद्युत (पावर) मंत्री पीयूष गोयल एक ओर हैं जबकि जल संसाधन और गंगा संरक्षण मंत्री उमा भारती दूसरी ओर। केदारनाथ आपदा के बाद सुप्रीम कोर्ट में बांधों को लेकर बहस चल रही है और उमा भारती उस हलफनामे से बहुत नाराज हैं जो पर्यावरण मंत्रालय ने अदालत में दिया है। विद्युत मंत्रालय इस मामले में पर्यावरण मंत्रालय का साथ दे रहा है।

नदियों पर बेतरतीब बांधों को न मिले हरी झंडी
सूत्रों ने एनडीटीवी इंडिया को बताया कि अब उमा भारती के मंत्रालय ने एक कड़ा हलफनामा तैयार किया है। इस हलफनामे में अब तक बनी सभी विशेषज्ञ कमेटियों की राय का हवाला दिया गया है। इन कमेटियों ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि उत्तराखंड की नदियों पर बेतरतीब बन रहे बांधों को झंडी नहीं मिलनी चाहिए। हलफनामे में यह भी कहा गया है कि नदियों में जितना पानी छोड़ने की बात पर्यावरण मंत्रालय कह रहा है वह अपर्याप्त है और इससे नदियों की जैव विविधता (जलीय जीवन) खत्म हो जाएगी। एफिडेविट में बांधों की खराब और त्रुटिपूर्ण इंजीनियरिंग का भी हवाला दिया गया है। उच्च अधिकारियों की ओर से तैयार किया गया यह हलफनामा इस महीने के अंत तक सुप्रीम कोर्ट को दिया जाना है।

पर्यावरण मंत्रालय ने उमा भारती के विरोध को किया अनदेखा
इसी साल जनवरी में अपनी नाराजगी जताते हुए उमा भारती ने पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर को चिट्ठी भी लिखी थी। इस चिट्टी में उमा भारती ने इस बात को लेकर आपत्ति जताई थी कि केंद्र सरकार के तमाम मंत्रालयों में बनी एक साझा सहमति के बाद भी पर्यावरण मंत्रालय पांच बांधों के निर्माण के लिए हरी झंडी क्यों दे रहा है। उमा भारती ने पर्यावरण मंत्रालय की ओर से नदियों में छोड़े जाने वाले न्यूनतम पानी की मात्रा को लेकर भी अपना विरोध दर्ज कराया था। उमा भारती की चिट्ठी मिलने के एक दिन बाद ही 6 जनवरी को पर्यावरण मंत्रालय ने सुप्रीम कोर्ट में एफिडेविट दिया जिसमें भारती के विरोध को नजरअंदाज कर दिया गया था।

सरकार को पर्यावरण से मतलब नहीं
उमा भारती की चिट्ठी के लीक होने के बाद ही सारा बवाल खड़ा हुआ। इस मामले में केस लड़ रहे प्रशांत भूषण ने सुप्रीम कोर्ट के सामने उमा भारती की चिट्ठी का मामला उठाया। उन्होंने एनडीटीवी इंडिया को बताया “इस सरकार ने तय कर लिया है कि उसे पर्यावरण से कोई मतलब नहीं है। यह लोग सोचते हैं कि चाहे पर्यावरण भाड़ में जाए लेकिन प्रोजेक्टों को मंजूरी मिलनी चाहिए और कंपनियों का काम होना चाहिए।”

ताजा हलफनामे में नदी विरासत और संस्कृति का संगम
सूत्रों ने एनडीटीवी इंडिया को बताया कि उमा भारती ताजा हलफनामे में नदी विरासत और संस्कृति का मामला जोड़ना चाहती हैं साथ ही उनका मंत्रालय यह दलील भी देगा कि इन नदियों से करोड़ों लोगों का रोजगार किसी न किसी तरह से जुड़ा है इसलिए बांधों को हरी झंडी न मिले क्योंकि इन बांधों से नदियों को खतरा है। जल संसाधन मंत्रालय में एक उच्च अधिकारी ने एनडीटीवी इंडिया से कहा, “मंत्री जी (उमा भारती) हलफनामे के ताजा प्रारूप से बहुत खुश हैं। हलफनामा अभी मंत्री जी के पास है। जैसे ही वह इसे मंजूरी देंगी हम इसे सुप्रीम कोर्ट में जमा कर देंगे।”

आपदाओं के पीछे बांध भी अहम कारण
केदारनाथ में 2013 में आई बाढ़ और आपदा के बाद सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड में बन रहे बांधों पर रोक लगा दी। उस वक्त कोर्ट ने केंद्र सरकार से सवाल पूछे थे कि केदारनाथ आपदा में बांधों का क्या रोल रहा। सरकार ने इस मामले के अध्ययन के लिए जाने माने पर्यावरणविद रवि चोपड़ा की अध्यक्षता में एक कमेटी बनाई जिसने कहा कि आपदा के असर को बढ़ाने में बांधों की भूमिका रही। उसके बाद बनी कई और कमेटियों ने भी आपदा में बांधों के रोल की बात कही।

पीएमओ किसके साथ?
अब देखना है कि प्रधानमंत्री कार्यालय इस मामले में क्या रुख अपनाता है। क्या पीएमओ उमा भारती का साथ देगा? जानकार यह डर जता रहे हैं कि प्रधानमंत्री मोदी अगर इस मामले में उमा भारती का साथ नहीं देते तो उन्हें (उमा भारती को) कोर्ट में दिए जाने वाले हलफनामे की भाषा को नरम करना पड़ सकता है। अभी इस मामले में दो प्रमुख बिंदु हैं। पहला कि क्या आपदा में बांधों का रोल रहा और दूसरा कि जिन नदियों में बांध बन रहे हैं उनमें कितना पानी छोड़ा जाए। अगर विशेषज्ञों की बात सुनें, तो वह बांधों के खिलाफ भारती का साथ देंगे वरना बांधों की यह लड़ाई सिर्फ इस बात सिमट सकती है कि नदियों में कितना पानी छोड़ा जाए।

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