वन विभाग की रिपोर्ट के अनुसार उत्तराखंड में 16 सालों में 448 बच्चे जंगली जानवरों का शिकार बने हैं। मुआवजे के रूप में वन विभाग अब तक दो करोड़ 97 लाख 28 हजार भी खर्च चुका है।
देहरादून: राज्य गठन से अब तक 448 बच्चे जंगली जानवरों का शिकार बने हैं। शिकार बने बच्चों के परिजनों को मुआवजे के रूप में वन विभाग अब तक दो करोड़ 97 लाख 28 हजार रुपये भी खर्च चुका है। यह जानकारी राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग के समक्ष रखी गई वन विभाग की रिपोर्ट में सामने आई।
बच्चों के निरंतर शिकार बनने की यह स्थिति तब है, जब मानव-वन्यजीव संघर्ष थामने के लिए वन विभाग हर साल तमाम योजनाओं के नाम पर भारी-भरकम बजट खर्चता है। राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग के अध्यक्ष योगेंद्र खंडूड़ी ने संघर्ष विराम की दिशा में वन विभाग की कार्रवाई को अप्रभावी माना और मानव-वन्यजीव संघर्ष को लेकर उच्च न्यायालय में लंबित विभिन्न मामलों को देखते हुए यह रिपोर्ट कोर्ट को भी भेजी है।
आयोग ने जंगली जानवरों का शिकार बन रहे बच्चों की संख्या में लगातार इजाफे को देखते हुए 12 फरवरी 2015 को स्वत: संज्ञान लिया था। तमाम मामलों पर आयोग ने प्रमुख वन संरक्षक (वन्यजीव) से रिपोर्ट भी तलब की थी। आयोग को जो जवाब मिला, उसके आधार पर अध्यक्ष योगेंद्र खंडूड़ी ने निष्कर्ष निकाला कि विभाग प्रभावी कार्रवाई के नाम पर सिर्फ खानापूर्ति कर रहा है। इसके चलते बच्चों को अकाल मौत का शिकार बनना पड़ रहा है।
विभाग के इन जवाबों से संतुष्ट नहीं आयोग
देहरादून स्थित वन अनुसंधान संस्थान (एफआरआइ) परिसर में 17 वर्षीय किशोरी को गुलदार के निवाला बनाए जाने पर विभाग ने कहा कि गुलदार को पकड़ने व मारने का पूरा प्रयास किया गया।
- चमोली के घाट क्षेत्र में ऊपरी मंजिल से बंदर के ईंट फेंकने से हुई बच्ची की मौत पर वन विभाग ने जवाब दिया कि यह एक दुर्घटना थी और विभिन्न स्तर पर बंदरों को पकड़ने की कार्रवाई की जा रही है।
- पौड़ी के बांदर गांव में ढाई साल की बच्ची को गुलदार का निवाला बनने पर जवाब दिया गया कि मुख्यमंत्री की फ्लैगशिप योजना के तहत मंकी रैपलर लगाने, बंदर बाड़े बनाने ग्राम सभाओं को पैलेट गन देने व विभिन्न क्षेत्रों में सोलर फेंसिंग करने की कार्रवाई की जा रही है।