पुलवामा में हुई आतंकी वारदात के कारण मीडिया में इस समय केवल उसी से जुड़ी खबरें प्रमुखता से छाई हुई हैं। लेकिन शांत ढंग से ही सही, चुनावी गतिविधियां भी धीरे-धीरे आगे बढ़ रही हैं। खबर है कि भाजपा उत्तर प्रदेश में बड़ी संख्या में मौजूदा सांसदों के टिकट काट सकती है। पार्टी के निचले स्तर से जिन सांसदों की रिपोर्ट अपेक्षाकृत खराब आ रही है, माना जा रहा है कि इस बार उनका टिकट काटना है। हालांकि इस पर अंतिम फैसला पार्टी के संसदीय बोर्ड के ही द्वारा किया जाएगा।
पूर्वांचल में लगभग 41 संसदीय क्षेत्र आते हैं। अगर केवल इन्हीं सीटों की बात करें तो कई मौजूदा सांसदों की सीट खतरे में है। पार्टी के एक नेता के मुताबिक जौनपुर से भाजपा सांसद केपी सिंह अपने क्षेत्र में लगभग कभी न मिलने वाले नेताओं के रूप में देखे जाते हैं। स्थानीय जनता के काम करने के मुद्दे पर भी उन्हें बेहद कम सक्रिय पाया गया है। लिहाजा जनता में उनकी व्यक्तिगत छवि शून्य के बराबर है। उनकी यह छवि इस चुनाव में उन्हें भारी पड़ सकती है।
जौनपुर जिले की ही दूसरी सीट मछली शहर से रामचरित निषाद का टिकट कटना भी तय माना जा रहा है। स्थानीय जनता में उनकी काम न करने वाले नेता की छवि के साथ-साथ उनका जाति प्रमाणपत्र का विवाद भी है। बताया जाता है कि उन्होंने चुनाव जीतने के बाद अपना दिल्ली में निवास दिखाकर अनुसूचित जाति प्रमाणपत्र बनवा लिया था जबकि यूपी में निषाद ओबीसी कैटेगरी में आते हैं। एक स्थानीय नेता के विरोध के बाद यह मुद्दा राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग तक पहुंच गया था।
अंतिम फैसला पीएम मोदी व पार्टी अध्यक्ष शाह लेंगे
बहराइच से भाजपा के टिकट पर चुनाव जीती सावित्री बाई फुले पहले ही पार्टी से इस्तीफा दे चुकी हैं। बस्ती से भाजपा सांसद हरीश द्विवेदी की छवि भी पार्टी में बहुत अच्छी नहीं बताई जा रही है। क्षेत्र में उपस्थिति के मामले में आगे रहने वाले द्विवेदी पार्टी कार्यकर्ताओं पर भी अच्छी पकड़ रखते हैं। लेकिन पिछले दिनों कभी प्रियंका गांधी पर टिप्पणी को लेकर तो कभी सांसदों के वेतन को लेकर कमीशनखोरी को सही बताने के उनके तथाकथित विवादित बयान से पार्टी को असहज स्थिति का सामना करना पड़ा था। उनकी स्थिति भी बहुत अच्छी नहीं बताई जा रही है।
रॉबर्ट्सगंज से सांसद छोटेलाल खरवार की दावेदारी भी इस बार बहुत कमजोर बताई जा रही है। स्थानीय जमीनी विवादों में रहने के कारण उनकी छवि भूमाफिया जैसी बताई जा रही है जो इस चुनाव में उनके लिए मुसीबत का कारण बन सकती है, और पार्टी इस बार उनका टिकट काट सकती है।
सांसदों की रिपोर्ट कार्ड तैयार करने में जुटे पूर्वांचल भाजपा के एक वरिष्ठ नेता के मुताबिक़ सपा-बसपा के गठजोड़ के साथ-साथ प्रियंका की इस क्षेत्र में सीधी दखल बढ़ जाने के कारण इस बार चुनौती बढ़ गई है। यही कारण है कि पार्टी इस बार कोई रिस्क नहीं ले सकती। नेता के मुताबिक जिन सांसदों के क्षेत्र में उनके पक्ष में अच्छी हवा नहीं है, उन्हें इस बार टिकट से वंचित रहना पड़ेगा।
दूसरी अहम बात यह है कि इस बार टिकटों पर अंतिम फैसला स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पार्टी अध्यक्ष अमित शाह करेंगे, और वे इतने महत्त्वपूर्ण चुनाव में जरा सी भी ढील देने के पक्ष में नहीं हैं। जाहिर है कि ऐसे में पार्टी के पैमाने पर कमजोर प्रदर्शन करने वाले नेताओं को निराश होना पड़ेगा।