
लखनऊ। प्रदेश में जल्द ही लोकसभा की एक व विधानसभा की बारह सीट के लिये होने वाले उपचुनाव को लेकर भाजपा में टिकट पाने वालों के बीच होड़ मची हुई है। विधानसभा की जिन बारह सीटों पर उपचुनाव होना है उनमें 11 भाजपा के कब्जे में थी। एक सीट अपना दल की अनुप्रिया पटेल के जीतने से खाली हुई है। वही लोकसभा की मैनपुरी सीट को लेकर भी भाजपा में टिकट मांगने वालों की लंबी कतार है। सपा के लोकसभा की मैनपुरी सीट व विधानसभा की सात सीटों पर उम्मीदवार घोषित करने के बाद भाजपा में टिकट पाने वालों की भागदौड़ और तेज हो गयी है। छह माह के भीतर यह उपचुनाव सम्पन्न हो जाने हैं। चुनाव लड़ने की उम्मीद रखने वाले लोगों को लग रहा है कि विधानसभा उपचुनाव में भी मोदी लहर के सहारे उनकी नैया पार हो जाएगी। लिहाजा टिकट के लिए अभी से लॉबीइंग शुरू हो गयी है। पार्टी सूत्रों के अनुसार लखनऊ पूर्व से संतोष सिंह, सुधांशु त्रिवेदी, विजय बहादुर पाठक, अमित पुरी तथा भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ के पुत्र पंकज सिंह आदि के नाम चर्चा में हैं। पंकज सिंह को नोएडा से भी चुनाव मैदान में उतारने की बात हो रही है। यहां से नवनिर्वाचित सांसद डा. महेश शर्मा की पत्नी, हरीश सिंह तथा अमरोहा से लोकसभा टिकट की दावेदार रही अनिला सिंह का नाम भी चर्चा में है। सहारनपुर से सुरेन्द्र शर्मा तथा दिनेश सेठी और ठाकुरद्वारा से नवनिर्वाचित सांसद कुंवर सर्वेश सिंह के पुत्र सुशांत सिंह, चरखारी से प्रदेश भाजपा के महामंत्री स्वतंत्र देव सिंह के नाम चर्चा में हैं। कौशाम्बी जिले की सिराथू सीट से भरवारी नगर पंचायत के चेयरमैन संजय गुप्ता, कड़े के ग्राम प्रधान अरुण केसरवानी तथा जनक पाण्डेय के नाम चर्चा में हैं। बहराइच जिले की बलहा सीट से अछैबर लाल और अछैबर कनौजिया के नाम चर्चा में हैं। मैनपुरी सीट से आधा दर्जन से ज्यादा उम्मीदवार मैदान में हैं। सूत्रों से जो जानकारी मिल रही है, उसके मुताबिक मैनपुरी में भाजपा इस बार भी चुनाव किसी क्षत्रिय को ही लड़ायेगी। खबरें हैं कि भाजपा इस बार प्रदेश इकाई की उपाध्यक्ष और तेज तर्रार नेत्री सरिता भदौरिया को मैनपुरी से चुनाव लडवा सकती है। पार्टी के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष और देश के गृहमंत्री राजनाथ सिंह से उनकी नजदीकी होना भी पार्टी उम्मी्दवार बनने में सहायक सिद्ध होगा, लेकिन सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि उपचुनाव में बसपा ने चुनाव लड़ने से इंकार कर दिया है। ऐसे में भाजपा को दलित समेत कुछ अन्य जातियों के वोट भी आसानी से मिल सकते हैं। बात कांग्रेस की करें तो हो सकता है कि अपने निराशाजनक प्रदर्शन के चलते शायद ही वह उपचुनाव में अपना प्रत्याशी उतारे।