राजनीति

उलझन में मुलायम सिंह यादव का गढ़ इटावा

इटावा के सियासी माहौल में अजब सा असमंजस है, हालांकि यह समाजवादी पार्टी के ही अंदर हो रहा है। बेरोजगारी, फैक्ट्रियों के अभाव के मुद्दे दर किनार हैं।

इटावा। समाजवादी पार्टी के संरक्षक मुलायम सिंह के गढ़ में साइकिल चलाने वाले उलझ कर रह गए हैं। बेरोजगारी, फैक्ट्रियों के अभाव के मुद्दे दर किनार हैं। अगर कोई बात हो रही हैं तो सोशलिस्ट से समाजवादी पार्टी बनाने के मुलायम सिंह यादव के सफर, उनके भाई शिवपाल सिंह यादव के संघर्ष और कमान अखिलेश यादव के हाथ में पहुंचने की। मुखिबर…पकड़, गद्दारी। यह शब्द सामान्यत: अपराध की दुनिया में इस्तेमाल होते हैं, मगर इस बार के विधानसभा चुनाव में इटावा की सियासत में इन शब्दों का जोर है।

जिन्होंने मुलायम सिंह यादव को धरती पुत्र बनाया, उनमें से कई गद्दार (भितरघाती) कहे जा रहे। जिन पर दूसरे गुट तक बातें पहुंचाने का संदेश है, वह मुखबिर ठहराये जा रहे हैं और दूसरों के करीबियों को पाले में लाने पर पकड़ की संज्ञा मिल रही है। इटावा के सियासी माहौल में अजब सा असमंजस है, हालांकि यह समाजवादी पार्टी के ही अंदर हो रहा है।

मुलायम सिंह यादव का अभेद्य गढ़ माने जाने वाले इस क्षेत्र में लोग चुनावी बातें करते हुए असमंजस में नजर आते हैं। बेरोजगारी, फैक्ट्रियों के अभाव पर कोई भी चर्चा नहीं करता। मतदान में जब चंद दिन शेष हैं, उस समय भी इटावा जिले में अगर कोई बात हो रही हैं तो सोशलिस्ट से समाजवादी पार्टी बनाने के मुलायम सिंह यादव के सफर, उनके भाई शिवपाल यादव के संघर्ष और कमान अखिलेश यादव के हाथ में पहुंचने की। इटावा में भविष्य से अधिक इतिहास और वर्तमान के किस्सों का जोर है।

समाजवादी पार्टी को पिछले दो दशकों से यहां की सियासत का पर्याय माना जाता है लेकिन अब एक ही दल के समर्थकों में कुछ ऐसी खेमेबंदी हो गई है कि क्षेत्रीय, जातीय समीकरण भी गडमड हो गए हैं। आलम यह है कि नत्थू सिंह के शिष्य मुलायम सिंह यादव के कुनबे के दीगर सदस्यों के समर्थक एक-दूसरे के खिलाफ जाल बिछाते सुनाई दे रहे हैं। शाक्य, मुस्लिम यादव गठजोड़ की नींव पर खड़ी सपा ने शाक्य समाज के बड़े नेता और मुलायम के निकट सहयोगी रघुराज शाक्य का टिकट काट दिया। उनके स्थान पर इटावा नगर पालिका के चेयरमैन कुलदीप गुप्त उर्फ संतू को टिकट दे दिया जिन्हे प्रोफेसर राम गोपाल यादव का करीबी माना जाता है। भाजपा ने सरिता भदौरिया और बसपा ने नरेन्द्र चतुर्वेदी को प्रत्याशी बनाया है।

इटावा निवासी अशफाक अहमद कहते हैं कि समाजवादी पार्टी के एक दिग्गज ने नगर पालिका चुनाव में शिवपाल-मुलायम के करीबी नफीसुल हसन को हरवा दिया था। विधानसभा चुनाव उस दर्द का जवाब देने का समय है। तकरीबन 40 हजार मुस्लिम वोटों वाली इस विधानसभा में यह चुनावी मुद्दा है क्योंकि रूठे मुस्लिमों को मनाने वाला सपा मे कोई नहीं है।

एकदिल के अलताफ कहते हैं कि वोट कहां जाएगा, इस बार कहा नहीं जा सकता क्योंकि अभी तो मुलायम परिवार का झगड़ा ही नहीं निपटा है। कोई बात भी नहीं करने आ रहा है। इटावा कस्बे के मुख्तलिफ मुहल्लों के लोगों से बात करो तो वह उल्टे जिज्ञासावश सवाल करते हैं कि ‘परिवार’ में चल क्या रहा है। कवि देवेश शास्त्री कहते हैं कि यहां का चुनाव इस बार बड़ा गडमड है। वह कहते है कि कभी मुलायम सिंह खुद उनके यहां आते थे, मगर अब परिवार का कोई नहीं आता। वह कहते है कि मुलायम को पिछड़ी जातियों के साथ ब्राह्मण, मुसलमानों का वोट मिलता था, मगर अब भी ऐसा होगा, इसे दावे से नहीं कहा जा सकता।

भरथना के मिजाज में भी इस बार बगावत झलक रही है। फिलहाल यहां पर सपा, बसपा, भाजपा के बीच त्रिकोणीय लड़ाई है। क्या होगा, कहना कठिन है, लेकिन एक बात साफ है कि अगर एसपी ने अपना गढ़ ठीक नहीं किया, तो उसे इसकी कीमत चुकानी पड़ेगी। लोग जातीय खांचे में बंटे हुए साफ दिखाई देते हैं। किसी एक दल या नेता के प्रति उनका झुकाव साफ नहीं है। मगर यह साफ है कि हार जीत के समीकरणों की जोड़तोड़ के स्थान पर चाय-पान की दुकानों और हाईवे के ढाबों पर बातचीत का मुख्य विषय परिवार का झगड़ा और उसके परिणाम ही हैं।

इटावा- 2012 विधानसभा परिणाम

विजेता : रघुराज सिंह शाक्य (सपा) वोट : 74,874

उपविजेता: महेन्द्र सिंह राजपूत ( बसपा) वोट: 68,610

भरथना- 2012

सुखदेवी वर्मा (सपा)-वोट 85964

राघवेन्द्र कुमार (बसपा) वोट-67999

सावित्री कठेरिया (भाजपा)-वोट-30625।

Related Articles

Back to top button