एंटिबायोटिक का गैर जरूरी इस्तेमाल सेहत के लिए हो सकता है खतरनाक
विश्व स्वास्थ संगठन (डब्ल्यूएचओ) के दक्षिण पूर्व एशिया क्षेत्र के पूर्व निदेशक (गैर संचारी रोग) डॉ. राजेश भाटिया ने कहा कि कुछ साल पहले इंडोनेशिया में एक सर्वे कराया गया था।
नई दिल्ली। लेडी हार्डिंग मेडिकल कॉलेज में आयोजित एक सम्मेलन में विशेषज्ञों व केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के राष्ट्रीय रोग नियंत्रण केंद्र (एनसीडीसी) के अधिकारियों ने एंटिबायोटिक्स के बढ़ते इस्तेमाल पर चिंता जाहिर की है। विशेषज्ञों का कहना है कि 30-40 वर्षों से कोई नई एंटिबायोटिक दवा नहीं आई। पुरानी एंटिबायोटिक दवाओं के बेतहाशा और गैरजरूरी इस्तेमाल के चलते प्रतिरोधकता उत्पन्न हो रही है। साथ ही जल और मिट्टी प्रदूषण भी बढ़ रहा है। इसलिए एंटिबायोटिक के गैर जरूरी इस्तेमाल पर रोक नहीं लगी तो सेहत के लिए खतरनाक साबित होगा।
विश्व स्वास्थ संगठन (डब्ल्यूएचओ) के दक्षिण पूर्व एशिया क्षेत्र के पूर्व निदेशक (गैर संचारी रोग) डॉ. राजेश भाटिया ने कहा कि कुछ साल पहले इंडोनेशिया में एक सर्वे कराया गया था। वहां 96 फीसद घरों में एंटिबायोटिक दवाएं मिली थीं। भारत में इस तरह का सर्वे नहीं हुआ है। पर यहां भी स्थिति कुछ वैसी ही है। दवाओं के इस्तेमाल पर कोई रोकटोक नहीं है। कोई भी व्यक्ति बिना पर्ची के मेडिसिन स्टोर से दवाएं खरीद लेता है। विशेषज्ञों ने कहा कि भारत में दवा की कंपनियां सबसे अधिक हैं, जो एंटिबायोटिक बनाती हैं। उन कंपनियों से निकला रसायन और दवा का मॉलिक्यूल पानी और मिट्टी को प्रदूषित कर रहा है। जो सब्जियों और खाने पीने की चीजों में मिलकर शरीर में पहुंच रहा है। यही हाल रहा तो बीमारियों में उन दवाओं का असर नहीं होगा। इससे मरीजों को नुकसान पहुंचेगा।
एनसीडीसी के अतिरिक्त निदेशक(माइक्रोबायोलॉजी) प्रमुख डॉ. सुनील गुप्ता ने कहा कि एंटिबायोटिक का गैरजरूरी इस्तेमाल रोकने के लिए कदम उठाए जा रहे हैं।