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एअर इंडिया को बेचने से पहले 15 हजार कर्मचारी किए जाएंगे रिटायर?

देश की सरकारी एयरलाइन्स एअर इंडिया के निजीकरण की तैयारी चल रही है. इस तैयारी के बीच एअर इंडिया एक अहम योजना तैयार कर रही है, जिसके मुताबिक वह बड़ी संख्या में अपने कर्मचारियों की छटनी करेगी. न्यूज एजेंसी रॉयटर के हवाले से आई खबर के मुताबिक एअर इंडिया अपने एक तिहाई स्टाफ की छटनी करने की योजना पर काम कर रही है. इसके चलते कंपनी लगभग 15 हजार कर्मचारियों को वॉलंटरी रिटायरमेंट देकर अपने ऊपर भार को कम करेगी.हालांकि केन्द्र सरकार ने मीडिया रिपोर्ट का खंडन करते हुए कहा है कि उसने ऐसी कोई योजना नहीं बनाई है. केन्द्र सरकार  की सफाई के मुताबिक एयर इंडिया और उसकी इकाइयों के देश में महज 20,000 कर्मचारी हैं जबिक मीडिया रिपोर्ट ने दावा किया है कि कंपनी के 40,000 कर्मचारी हैं.

राइटर का दावा है कि एअर इंडिया यह कदम कंपनी को 2018 में बेचने से पहले उठाएगी जिससे बेचते समय कंपनी की ऑपरेटिंग कॉस्ट को कम दिखाया जा सके. देश में किसी सरकारी कंपनी के लिहाज से वॉलंटरी रिटायरमेंट का यह सबसे बड़ा मसौदा होगा. गौरतलब है कि मौजूदा समय में एअर इंडिया के लगभग 40,000 कर्मचारी हैं. कर्मचारियों की इतनी बड़ी संख्या को एअर इंडिया के डूबने के पीछे का एक अहम कारण माना जाता है.

गौरतलब है कि हाल ही में एअर इंडिया ने अपने विमान के बेड़े को बढ़ाने के लिए दिए गए सभी ऑर्डर को स्थगित कर कर दिया था. साथ ही कंपनी ने बड़े साइज के 8 बोइंग 787 को लीज पर लेने की योजना को भी रद्द कर दिया था. एअर इंडिया बोर्ड ने हाल ही में इस प्रस्ताव को मंजूरी दी थी लेकिन अब निजीकरण की केन्द्र सरकार से मंजूरी मिलने के बाद इस दिशा में कोई काम नहीं किया गया है.

सूत्रों का दावा है कि केन्द्र सरकार चाहती है कि एअर इंडिया को बेचने से पहले इस स्थिति में ले आया जाए जिससे वह किसी भी निजी कंपनी को आकर्षित कर सके. मोदी कैबिनेट ने अभी पिछले महीने ही कर्ज में डूबी एयर इंडिया के निजीकरण की मंजूरी दी थी. केन्द्र सरकार की योजना के मुताबिक कंपनी के निजीकरण की प्रक्रिया को 2018 में शुरू कर साल के अंत तक पूरा कर लिया जाएगा.

केन्द्रीय कैबिनेट से निजीकरण की मंजूरी के बाद एअर इंडिया की खरीदने के लिए टाटा, इंडिगो और स्पाइसजेट ने दिलचस्पी जाहिर की है. जानकारों का दावा है कि इन भारतीय कंपनियों ने एयर इंडिया को पाने के लिए बड़ी बोली लगाने का मन बना लिया है.

गौरतलब है कि इससे पहले एअर इंडिया को बचाने की कई बार कवायद की गई लेकिन केन्द्र सरकार की सभी कोशिशें बेकार गई. 2007 से 2010 तक में तत्कालीन यूपीए सरकार ने एयर इंडिया और इंडियन एयरलाइन्स का मर्जर कर स्थिति सुधारने की कोशिश की लेकिन उससे भी यह कंपनी अपने पैर पर खड़ी नहीं हो सकी. वहीं 2012 में तत्कालीन यूपीए सरकार ने एअर इंडिया को 30 हजार करोड़ का बेलआउट पैकेज लेकिन कंपनी की फाइनेंशियल स्थिति में कोई सुधार देखने को नहीं मिला. मौजूदा समय में सरकारी एयरलाइन्स पर लगभग 55 हजार करोड़ रुपए का कर्ज है.

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