एक ऐसा किला जिसने युद्ध में दागे थे चांदी के गोले, अंग्रेजों का छुटाया था पसीना
भारतीय इतिहास में स्वाभिमान का एक अद्भुत वाक़या है, जब स्वाभिमान के लिये अपना सब कुछ दांव पर लगा दिया। लेकिन दुश्मन के सामने घुटने नहीं टेके, ऐसे पराक्रम और शौर्य के जिवंत उदाहरण तब ही देखने को मिलते हैं जब शासक के साथ प्रजा भी अपना सब कुछ बलिदान करने के लिए तत्पर हो। इसी घटना में शासक और प्रजा सब स्वाभिमान के लिये ऐसे तत्परता से पेश आए की दुश्मन हौसला हार भागने को मजबूर हो गया।
राजस्थान के जर्रे में पराक्रम और शौर्य की गाथायें रची बसी है। ऐसी ही एक पराक्रम की कहानी राजस्थान के चूरू किले की हैं। चूरू का यह किला जो राजस्थान के चूरू जिला मुख्यालय पर स्थित है। इस किले का निर्माण ठाकुर कुशल सिंह ने 1694 ई० में करवाया था। उनका इस किले के निर्माण का उद्देश्य आत्म-रक्षा के साथ नागरिकों की सुरक्षा प्रदान करना था।
वही इस किले में चांदी के गोले बरसाने का वाक़या अगस्त 1814 ईस्वी का जब अंग्रेजो ने इसे अपने साथ मिलाने के लिये बीकानेर की सेना भेजी। चूरू के नजदीक बीकानेर के शासक सूरत सिंह ने अंग्रेजों के इशारे पर चूरू पर चढ़ाई कर दी। चूरू के ठाकुर शिवजी सिंह ने दुश्मन से जमकर लोहा लिया लेकिन बीकानेर की सेना से लड़ते हुए उनका गोला बारूद समाप्त हो गया। ठाकुर गोला बारूद खत्म होने से निराश हो गए।
तब चूरू की जनता और व्यापारियों ने इन्हे आर्थिक मदद देते हुए अपने राज्य की रक्षा के लिए अपना सोना और चांदी न्यौछावर कर दिया। जिससे उन्होंने चांदी के गोले बनाकर दागे। चांदी के गोलों की बरसात देखकर दुश्मन भाग खड़ा हुआ। चांदी के गोले दाग कर चूरू ने अपना नाम विश्व इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों में लिख दिया जिसके कारण इसके बारे में कहा जाता है।