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एक तरफ मेजर शैतान सिंह दूसरी तरफ चीन की पूरी सेना…फिर जो हुआ आज तक नही भूला चीन

साल 1962 को भारतीय सेना के लिटमस टेस्ट के तौर पर याद किया जाता था। भारत और चीन की सेनाएं आपस में भिड़ पड़ी थीं। भारतीय सेना न्यूनतम संसाधनों के बावजूद चीन की सेना से लड़ती रही। इस क्रम में भारत ने अपने कई जाबांज सैनिक और अफसर भी खोए। मेजर शैतान सिंह भी एक ऐसे ही शख्स का नाम है। वे साल 1962 में महज 37 वर्ष के थे और देश पर कुर्बान हो गए थे।

एक तरफ मेजर शैतान सिंह दूसरी तरफ चीन की पूरी सेना…फिर जो हुआ आज तक नही भूला चीन18 नवंबर 1962 को मेजर शैतान सिंह भाटी के नेतृत्व में चार्ली कंपनी ने महज 120 जवानों के साथ,1300 चीनी सैनिकों को मार गिराया था और रेजांग ला की इस लड़ाई में भारतीय जवान चीनी सैनिकों को खदेड़ने में कामयाब रहे थे। इस बटालियन में ज्यादातर सैनिक हरियाणा के रेवारी गांव के थे। 13वीं कुमाऊं बटालियन की चार्ली कंपनी चुशुल में मौजूद एयरफील्ड की रक्षा कर रही थी। चुशुल को गंवा देने का मतलब था लद्दाख की सुरक्षा में सेंध, साथ ही यह उस समय भारत के लिए नाक की लड़ाई बन चुका था। एयरफील्ड की सुरक्षा पर निगरानी के बीच 18 नवंबर की सुबह चीन के लगभग 5000 सैनिकों ने इस जगह पर हमला कर दिया। गौरतलब है कि चीन के 5000 से ज्यादा सैनिकों के जवाब में उस समय भारत के महज 120 सैनिक ही मौजूद थे।

लेकिन दुश्मन की परवाह न करते हुए इंडियन आर्मी ने जबरदस्त आक्रमण करने की ठानी और थोड़ी ही देर में दोनों तरफ से भयंकर गोलीबारी होने लगी। सैनिकों की तादाद के साथ ही चीन के पास आधुनिक हथियारों की भी कोई कमी नहीं थी, लेकिन भारतीय सैनिक जानते थे कि दुश्मन का डटकर मुकाबला करना ही एकमात्र उपाय है। असलहा-बारूद खत्म होने के बाद भी भारत के जवानों ने 1300 चीनी सैनिकों को मार गिराया और ये काम मेजर शैतान सिंह की देख-रेख में ही अंजाम दिया गया। कई जवानों ने तो अपने हाथों से इन सैनिकों को मार गिराया।

भारतीय गुप्तचर एजेंसी रॉ (रिसर्च एंड एनेलिसेस विंग) के पूर्व अधिकारी आर के यादव ने अपनी किताब ‘मिशन आर एंड डब्लू’ में रेज़ांगला की लड़ाई का वर्णन करते हुए लिखा है कि इन बचे हुए जवानों में से एक सिंहराम ने बिना किसी हथियार और गोलियों के चीनी सैनिकों को पकड़-पकड़कर मारना शुरु कर दिया। मल्ल-युद्ध में माहिर कुश्तीबाज सिंहराम ने एक-एक चीनी सैनिक को बाल से पकड़ा और पहाड़ी से टकरा-टकराकर मौत के घाट उतार दिया। इस तरह से उसने दस चीनी सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया।

भारत के इन 120 योद्धाओं में से 114 जवान शहीद हो गए, पांच जवानों को चीन ने युद्ध कैदी के तौर पर गिरफ्तार कर लिया। हालांकि ये जवान बाद में बच निकलने में कामयाब रहे। वहीं एक सैनिक को मेजर शैतान सिंह ने वापस भेज दिया, ताकि वह पूरे घटनाक्रम को दुनिया के सामने बयान कर सके।

मेजर शैतान सिंह जब अपने सैनिकों को प्रोत्साहित करने के लिए एक पलटन से दूसरी पलटन की तरफ घूम रहे थे, तभी एक चीनी एमएमजी की चोट से वह घायल हो गए। लेकिन घायल होने के बावजूद उन्होंने लड़ना जारी रखा, जिसके बाद चीनी सेना ने उन पर मशीन गन से हमला कर दिया। उन्होंने अपनी MMG से चीन के 410 से ज्यादा सैनिकों को मार गिराया।

चीन की सेना से मेजर शैतान सिंह को बचाने के लिए एक सैनिक ने उनके जख्मी शरीर को अपने शरीर के साथ बांधा और पहाड़ों में लुढ़कते हुए उन्हें एक सुरक्षित स्थान पर लेटा दिया, जहां उनकी मौत हो गई। 1963 की फरवरी में जब मेजर शैतान सिंह की बॉडी पाई गई, तब उनका पूरा शरीर जम चुका था और मेजर मौत के बाद भी अपने हथियार को मजबूती से थामे हुए थे।

भारतीय सैनिकों की बहादुरी से हारकर चीनी सैनिकों ने अब पहाड़ से नीचे उतरने का साहस नहीं दिखाया। और चीन कभी भी चुशुल में कब्जा नहीं कर पाया। हरियाणा के रेवाड़ी स्थित इन अहीर जवानों की याद में बनाए गए स्मारक पर लिखा है कि चीन के 1700 जवानों को मौत के घाट उतार दिया था। हालांकि इसमें कितनी सच्चाई है कोई नहीं जानता। क्योंकि इन लड़ाईयों में वीरगति को प्राप्त हुए जवानों की वीरगाथा सुनाने वाला कोई नहीं है। और चीन कभी भी अपने सेना को हुए नुकसान के बारे में नहीं बतायेगा। लेकिन इतना जरुर है कि चीनी सेना को रेज़ांगला में भारी नुकसान उठाना पड़ा।

मेजर शैतान सिंह को अपने अद्भुत साहस और दृढ़ इच्छाशक्ति के लिए शहीद होने के बाद परमवीर चक्र से नवाज़ा गया। मेजर शैतान सिंह और उनके वीर अहीर जवानों की याद में चुशुल के करीब रेज़ांगला में एक युद्ध-स्मारक बनवाया गया। हर साल 18 नवम्बर को इन वीर सिपाहियों को पूरा देश और सेना याद करना नहीं भूलती है। इसके अलावा लता मंगेशकर द्वारा गाए सदाबहार और अमर गीत ‘ए मेरे वतन के लोगों’ को लिखने वाले प्रदीप की प्रेरणा भी मेजर शैतान सिंह और उनके बहादुर साथी ही थे।

चीन के साथ हुए युद्ध में भारत को भले ही हार से जूझना पड़ा हो, लेकिन 16000 फीट की ऊंचाई पर बर्फीली ठंड में चार्ली कंपनी और मेजर शैतान सिंह के लड़ाकों ने जिस साहस का परिचय दिया, वह हमेशा-हमेशा के लिए इतिहास के सुनहरे पन्नों में दर्ज होकर रह गया।

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