उन दिनों डीएमके का ‘स्वयं मर्यादा कल्याणम्’ नाम से एक कार्यक्रम चल रहा था। इसके अनुसार, लड़का और लड़की शादी के लिए न तो कोर्ट जाते थे और न ही किसी मंत्रोच्चार से विवाह करते थे। इसके लिए उन्होंने रास्ता निकाला था कि युवक और युवती पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के बीच जिंदगी भर साथ निभाने की कसम खाएंगे।
करुणानिधि ने भी इसी रास्ते पर चलते हुए रजती के साथ पार्टी नेताओं से आशीर्वाद ले लिया। इसके बाद से दयालु जहां करुणानिधि की पत्नी रहीं, वहीं रजती को संगिनी कहा जाने लगा। एक साल बाद ही 1968 में कनिमोझी का जन्म हो गया। कानूनी तौर पर दयालु को ही उनकी पत्नी होने का हक हासिल है लेकिन दुनिया यही जानती है कि दोनों उनकी पत्नियां हैं।